घड़ी की मौत..!
लेखक - संजय दुबे
रात अलसाई हुई थी.....।अंधेरा था, लाइट जला कर दीवाल में टांगी घड़ी को देखा।सवा दस बज रहे थे।लाइट बंद कर खिड़की से बाहर झांक कर देखा।समय के हिसाब से ज्यादा सुनसान था।मानो कि बारह बजे से अधिक का समय हो चला हो।घड़ी तो सवा दस बजना बता रही थी। बिस्तर पर पड़े पड़े सोच रहा था कि वक्त भी अजीब है।एक समय था कि कब दिन होती थी कब रात होती थी पता नही चलता था।अब वक्त को काटने के लिए जतन उठाने पड़ रहे है।
कब आंख लगी, कब सुबह हुई पता चलते रहा।
चिड़ियों की चहचहाट से ये अंदाजा हो जाता था कि सुबह के पांच बजने वाले है। अनमने मन से उठ कर लाइट जला कर देखा घड़ी अभी भी सवा दस ही बजा रही थी। समझते देर न लगी कि घड़ी में लगी बैटरी का सामर्थ्य खत्म हो गया है, सो घड़ी भी सवा दस पर अटक गई। इतने सुबह किराना दुकान भी खुलने वाली नहीं थी, सो घड़ी में सवा दस ही बजने दिया।घर में एक ही दीवाल घड़ी थी इस कारण बार बार ख्याल आ रहा था कि सही समय देखने के लिए यही आसान साधन है।मोबाइल में कितने बार समय देखूंगा? सही मायने में बड़ी घड़ी में वक्त देखने की आदत हो गई थी।
चाय पीते पीते कई बार घड़ी पर नजर गई। सवा दस पर घंटे और मिनट के कांटे सांस रोके पड़े थे।सेकंड का कांटा छ पर रुका हुआ था।मुझे लगा तीनों कांटे कितने बेसब्र होंगे बैटरी के लिए। बैटरी डली और चली।
घर के पास ही में किराना दुकान था। साढ़े छः बजे के आसपास खुल जाती थी।कई बार छत पर जा कर देखा ।खुली नही थी।शायद साढ़े छः नहीं बजा होगा?
सूरज की किरणे बिखरने लगी थी।छत पर जाकर देखा तो पास की किराना दुकान खुल चुकी थी। तेज कदमों से जाकर दो नई बैटरी लाकर घड़ी में लगे पुराने बैटरी को कचड़े के डब्बे में फेक, नई बैटरी लगा कर मोबाइल से समय देख 6.42पर घंटे और मिनट के कांटे सेट कर दिया।
सेकंड के कांटे में कोई हलचल नहीं हुई। लगा कि बैटरी ठीक से नहीं लगी होगी। दोनो बैटरी को निकाल उसके प्लस माइनस को ध्यान से देख कर वापस लगाया। मोबाइल में समय देख 6.47सेट किया।इस बार भी सेकंड का कांटा नही हिला।
ये नई परेशानी थी!"
कहीं बैटरी आउट डेटेड या डुप्लीकेट तो नहीं? प्रश्न मन में आया।कहीं नई बैटरी फेंक पुरानी बैटरी ही तो नहीं लगा दिया? खुद को आश्वस्त किया कि नहीं ऐसा नहीं हो सकता ,फिर भी पुरानी बैटरी को कचड़े के डब्बे से निकाल कर लगा कर देखा।सेकंड का कांटा इस बार भी कोई हरकत नहीं किया।
इस प्रक्रिया से ये पुख्ता हो गया कि लगाई गई बैटरी पुरानी है। एक बार फिर नई बैटरी लगा कर देखा कोई कांटे में हरकत नहीं थी। घड़ी के पिछले हिस्से को कान में लगाकर मशीन के चलने से आने वाली आवाज को सुनने की कोशिश किया।कोई आवाज नही आई।
बैटरी ठीक है,घड़ी ही बिगड़ गई है।
दीवाल में टंगने वाली घड़ी को डाइनिंग टेबल में लेटा दिया।
इसका घरेलू इलाज असफल हो गया था। नई बैटरी लगाने के बाद भी हरकत नहीं हुई थी।
घड़ी बनाने वाला ही अगला विकल्प था लेकिन वो भी ग्यारह बजे के बाद दुकान खोलता था। दिनचर्या,पूजा और खाना खाने तक अमूमन रोज ग्यारह बज जाते थे।आज घड़ी नहीं थी।खाली दीवाल पर कई बार नजर गई।
मोबाइल में वक्त देखा ग्यारह बज चुके थे।घड़ी को उठाकर, घड़ी सुधारने वाले के दुकान पहुंचा।दुकान खुल गई थी
"भईया, कल रात सवा दस बजे से घड़ी बंद है।सुबह पुरानी बैटरी बदल कर नई बैटरी डाला लेकिन चली नहीं।शायद मशीन खराब हो गई है।"
"घड़ी छोड़ दीजिए,शाम को आ जाईयेगा।"
"मैं एकात घंटा इंतजार कर लूंगा।हाथो हाथ ले जाऊंगा।"
बहुत काम है।आप शाम को आजाइए।"
मन में आया कही मशीन को ही खराब ही बता दिया तो ?
"भईया,देखिएगा, घड़ी कल ही बिगड़ी है।सात साल से कभी बिगड़ी नही थी"
"भईया,सही सलाह दूं,घड़ी बदल लीजिए। नई घड़ी नया वक्त बताएगी।कुछ नयापन आएगा।पुरानी चीजे भले ही पुरानी याद का दस्तावेज होती है लेकिन बदलाव को भी स्वीकारना चाहिए।कहे तो नई घड़ी दिखाऊं?"
बात पते की थी लेकिन मोह था पुरानी घड़ी से।
"इसी को बना दीजिए।समय ही तो देखना है।सभी घड़ी आखिरकार समय ही तो बताती है।"
रुकिए,देख लेता हूं,आप भी काहे को परेशान हो। ये कहते हुए छोटी सी दुकान के भीतर की कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए घड़ी को खोलने का क्रम शुरू कर दिया।
घड़ी, निगाहों पर थी।एक एक करके सारे कल पुर्जे खोल कर बंदे ने देखा। एक पुर्जा निकाल कर लेंस से देखने के बाद बोला "भाई साहब,इस घड़ी का ब्रेन डेड हो गया है। अब ये नहीं चल पाएगी। इसे बदल कर दूसरा भी नही लगा सकते। कहे तो इसे वापस बंद कर आपको दे दूं।अच्छा हुआ आपके सामने देख लिया वरना आप मुझ पर शक करते।"
आंखों के सामने वक्त को कल रात दस बजे मरा हुआ देखा था।सुबह कोशिश भी की थी। वक्त की भी मौत होती है।
"क्या सोंच रहे है भाई साहब?"
"कुछ नही, नई घड़ी दिखा दीजिए"
इसका क्या करूं,वापस ले जायेंगे?
नही,नई घड़ी नया वक्त बताएगी,आप ही ने तो कहा था ना।
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