सरल नहीं है रेखा...!
लेखक - संजय दुबे
यदि आप मैथ्स के स्टूडेंट है तो आपको लाइंस या रेखा को समझना होगा। सामान्य तौर पर दो पॉइंट्स को मिलाने वाली आकृति को रेखा का नाम दिया जाता है।
पैरेलल,इंटरसेक्टिंग, होरिजेंटल, वर्टिकल, परपेडिकुलर और स्लांटिंग लाइंस या रेखा के प्रकार है।
गणितीय रेखा से परे फिल्मों की भी एक रेखा और भी है जिन्हे आजकल "लेडी देवानंद" का नाम दिया जा रहा है। उम्र के उन्हतरवे पड़ाव में रेखा की ऊर्जा हतप्रभ करती हैं।
रेखा की नायिका से अभिनेत्री का सफर अन्य स्थापित अभिनेत्रियों के समान सरल रेखा सा नही रही।गणितीय रेखा के समान कभी पैरेलल, होरिजेनटल, ओपेक सी उतार चढ़ाव, रेखा के फिल्मी सफर में रहा ।
फिल्म इंडस्ट्री में उत्तर के अभिनेता और दक्षिण की नायिका का तालमेल का सीधा समीकरण बनते रहा है। वैयजन्ती माला, पद्मनी, हेमा मालिनी, की परंपरा में रेखा का आगमन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 1971को हुआ। रेखा के आने के पहले "अधिकार"नाम की एक फिल्म आई थी।इस फिल्म में एक गाना था - रेखा ओ रेखा,जब से तुम्हे देखा,खाना पीना दुश्वार हो गया,मैं आदमी था काम का बेकार हो गया।ये गाना अभिनेत्री रेखा पर फिल्माया गया था लेकिन आज भी लोग मानते है कि गाया ये गाना रेखा पर फिल्माया गया था।
भारतीय पुरुष दर्शकों की एक कमी हमेशा रही कि वे फिल्म में ग्लैमरयुक्त नायिकाओं को देखना पसंद करते रहे है। लो कट ब्लाउज, मोटी जांघें, मांसल सौंदर्य या कहे उत्तेजनात्मक दृश्य पसंदगी में रही है।रेखा में ये सब था। सात साल तक रेखा सेक्स सिंबल बन कर अंग प्रदर्शन करते रही। उन्हे केवल गदराए अंगो के चलते ही फिल्मे मिलते रही। सफलता असफलता मायने नहीं रखती थी। अपनी मां की महत्वाकांक्षा की बलि पर रेखा चढ़ते गई, रेखा की मां पुष्पावली को जुआ खेलने की लत थी ।इस दौर में 58फिल्मों में रेखा नायिका बनी।नायक रहे राज कुमार, राजेंद्र कुमार,सुनील दत्त,विश्वजीत, धर्मेंद्र, जितेंद्र, फिरोज खान। इनके अलावा शशि कपूर, संजीव कुमार,राजेश खन्ना,विनोद खन्ना ,विनोद मेहरा,के साथ रेखा ने काम किया।
1978में दिनेश ठाकुर लिखित पटकथा पर "घर" फिल्म आई। गुलजार के लिखित गाने आजकल पांव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे, तेरे बिना जिया जाए ना, आपकी आंखों में कुछ महके हुए से राज है और फिर भी रात है, रात है ख्वाब की,ने फिल्म की कथानक में शानदार तड़के का काम किया था। रेखा पहली बार नायिका से अभिनेत्री की श्रेणी में आई। इसी दरम्यान अमिताभ बच्चन के साथ उनकी जोड़ी सफलता के झंडे गाड़ना
शुरू की।1976में अमिताभ बच्चन रेखा के साथ दो अंजाने में काम किया था लेकिन आगे के सालो में मुकद्दर का सिकंदर, नटवरलाल, गंगा की सौगंध,राम बलराम, जैसी अनेक सफल फिल्मों में जोड़ी बनी। फिल्मों को सफल बनाने के लिए अक्सर नायक नायिका के प्रेम संबंध के कल्पित किस्से गढ़े जाते है। इस किस्सागोई से कोई नहीं बचा तो अमिताभ और रेखा किस खेत की मूली थे। इनके रील लाइफ की बाते रियल लाइफ में आने लगी। इसी दौर में सिलसिला आई। अमिताभ ,रेखा और जया बच्चन के बीच त्रिकोण के एक कोण थे। इस फिल्म के बनने के दौरान कई किस्सों ने जन्म लिया।बहरहाल सिलसिला फिल्म के बाद इस जोड़ी का सिलसिला टूट गया।
1980 "खूबसूरत" फिल्म ने रेखा को घर फिल्म के बाद दूसरी बार फिल्म फेयर अवार्ड दिलवाया। यही साल रेखा के अप्रत्याशित रूप से मुकेश अग्रवाल के विवाह की भी खबर लेकर आया। ये विवाह, क्षणिक रहा और मुकेश अग्रवाल ने आत्म हत्या कर ली।रेखा पुनः फिल्मों में वापस आ गई।
1981में रेखा मुजफ्फर अली ने मिर्जा हादी रूश्वा की उपन्यास " उमराव जान वफा" पर फिल्म "उमराव जान" बनाई।बरसो तक तवायफ की भूमिका निभाने वाली रेखा ने इस फिल्म में उमराव जान को जी लिया।बदले में मिला सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय नायिका का अवार्ड। कालांतर में बढ़ते उम्र के चलते रेखा ने फिल्मों में बजाय खुद पर ध्यान देना शुरू किया। आहार और योगा उनकी जिंदगी का हिस्सा बनते गए। सुंदरता की चादर ओढ़े हुए रेखा बसेरा,खून भरी मांग, जुबेदा,लज्जा,कामसूत्र,आस्था, जैसी फिल्मों में आई।
राकेश रोशन की फिल्म"कोई मिल गया" में रेखा ने उम्र के हिसाब से ऋतिक रोशन की मां बनकर आई।
पिछले आठ सालो से रेखा या तो कास्मेटिक सर्जरी के बाद खूबसूरत नजर आने के लिए चर्चा में आती है या फिल्मों के समारोह में मंहगी सिल्क की साडियो अथवा स्वर्ण आभूषण के लिए।रील लाइफ से रियल लाइफ में 69साल की उम्र में तरोताजा दिखने के लिए रेखा,देवानंद के नक्श कदम पर बनी बनाई रेखा पर चल रही है
2012 मे रेखा को भारत के राष्ट्रपति ने कला के क्षेत्र से राज्यसभा में मनोनीत किया।कहा जाता है कि राजनीति के गलियारों में रेखा को लाने का काम कांग्रेस ने किया था।राज्यसभा में रेखा,सरल रेखा ही रही।373बैठको में से केवल 18में उपस्थित रही वह भी गणितीय तरीके से कि सदस्यता खत्म न हो जाए। न सवाल पूछा न ही कोई बात कही।
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