एक गुरु क दो चेले - सचिन कहां, विनोद कहां..!
लेखक- संजय दुबे
भारतीय क्रिकेट टीम में कई खिलाड़ी ऐसे हुए जिनके प्रदर्शन को देख कर लगता था कि वे स्थाई खिलाड़ी बनेंगे लेकिन बाहरी दुनिया के प्रभाव ने उनको अंधकार की दुनियां में धकेल दिया।ऐसे ही एक खिलाड़ी रहे विनोद कांबली। पिछले दिनों एक रील वायरल हुई जिसमें विनोद कांबली और सचिन तेंडुलकर के प्रशिक्षक दिवंगत (स्वर्गीय उचित शब्द नहीं है)रमा कांत आचरेकर के सम्मान में आयोजन हुआ।इस आयोजन में दोनों शिष्य मौजूद रहे।आयोजन के आकर्षण निःसंदेह सचिन तेंडुलकर रहे वही एक कोने में विनोद कांबली दरकिनार हुए नजर आए।
सचिन और विनोद चर्चा में तब आए थे जब हैरिस शील्ड स्पर्धा में शारदाश्रम विद्या मंदिर की तरफ से सेंट जेवियर स्कूल के विरुद्ध दोनों ने मिलकर रिकॉर्ड 664रन की भागेदारी की थी। बाएं हाथ के विनोद कांबली ने 349और दाएं हाथ के सचिन तेंडुलकर ने 326नाबाद रन की पारी खेली थी। इन खिलाड़ियों के संभावनाओं पर चर्चा शुरु हो गई थी।दोनो ही खिलाड़ी अपने प्रदर्शन के बल पर आए।एक खिलाड़ी 200टेस्ट और टेस्ट सहित एक दिवसीय मैच100शतक का अनोखा रिकॉर्ड बनाकर क्रिकेट के भगवान बन गए और दूसरा महज साल में 17टेस्ट और 102एक दिवसीय मैच खेल क्रिकेट के देश,राज्य की टीम से बाहर हो गया।
विनोद कांबली, गरीब परिवार से आए थे,वैसे भी किसी अमीर औद्योगिक घराने या पढ़े लिखे संभ्रांत परिवार से क्रिकेट के खिलाड़ी निकलने का चलन नहीं है लेकिन अधिकांश खिलाड़ी शोहरत और पैसे की गर्मी को सम्हालने की कला समझ जाते है।इसके पलट विनोद कांबली इस गर्मी को सम्हाल नहीं पाए और आज स्थिति ये हो गई है कि उनका मानसिक संतुलन भी बिगड़ते दिख रहा है। ये नजारा पिछले कुछ दिनों से देखने को मिल रहा है।
एक दौर ऐसा भी आया था जब विनोद कांबली अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन से ज्यादा सफल हो गए थे। 1993के दौर में विनोद कांबली ने वानखेड़े स्टेडियम में इंग्लैंड के खिलाफ224और जिम्बाब्वे के खिलाफ227रन की पारी खेली और श्रीलंका के खिलाफ 125और 120रन की पारी खेलकर धूम मचा दिया था। विनोद तीन टेस्ट में लगातार तीन शतक लगाए थे,ये उनकी प्रतिभा थी लेकिन बाहरी दुनिया के तड़क भड़क ने उनका खेल जीवन तबाह कर दिया। अनुशासन के दायरे से बाहर हुए और परिणाम ये रहा कि महज 28साल की उम्र में विनोद कांबली निष्क्रिय करार दिए गए। भले ही सालो पुरानी भागेदारी को लेकर बाल सखा के रूप में विनोद कांबली, सचिन तेंडुलकर को मानते होंगे लेकिन क्रिकेट की भागेदारी को दोस्ती का नाम नहीं दिया जा सकता है। धोनी और युवराज साथ साथ खेलते थे लेकिन दोस्त नहीं थे। दरअसल दोस्त की परिभाषा ही अलग है।लोग सहकर्मी,सहपाठी,को दोस्त का दर्जा दे देते है। सचिन तेंडुलकर पर आरोप भी लगाता है कि उन्होंने विनोद कांबली से दोस्ती नहीं निभाई। सच तो ये है कि सचिन की दोस्ती राहुल द्रविड़,सौरव गांगुली से हो सकती है क्योंकि ये दोनों खिलाड़ी गंभीर खिलाड़ियों की श्रेणी में आते है। विनोद कांबली में उथलापन था जिसके चलते उन्होंने ग्लैमर को चुना और परिणाम सामने है । एक मुख्य अतिथि है और एक की तिथि ही नहीं है
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