मनु भाकर को खेल रत्न देने की घोषणा राष्ट्रपति करे

लेखक- संजय दुबे

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बड़े शर्म के साथ लिखना पड़ रहा है कि भारतीय खेल इतिहास में एक ओलंपिक खेल में दो पदक जीतने वाली मनु भाकर को खेल रत्न सम्मान से फिलहाल वंचित कर दिया है।ये भी संभव है कि उनकी भावनाओं की कद्र होगी और खेल मंत्रालय अपनी गलती सुधार कर खेल रत्न सम्मान दे भी देगा लेकिन जो प्रश्न सारगत है कि विलक्षण कार्य जिसके लिए देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित खेल मंत्री समय निकाल कर देश को गौरवान्वित करने पर मोबाइल लगा कर बधाई दे रहे थे क्या उन्हें अभी ऐसा नहीं लगा कि कुछ बाते नियम कानून से भी ऊपर होना चाहिए। मनु भाकर,इस साल अकेली ऐसी खिलाड़ी थी जिन्हें दो पदक मिलने के साथ ही खेल मंत्रालय को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न सम्मान देने की घोषणा कर देनी थी।दुख इस बात का है कि इस देश में नौकरशाहों के लकीर के फकीर होने के कारण नियम कानून की दुहाई देकर सम्मान देने के बजाय भीख मांगने की स्थिति ला दी जाती है।मनु भाकर के साथ भी ऐसा हो रहा है।

खेल सम्मान के लिए दो तरीके प्रचलित है पहला संबंधित खेल संघ खेल मंत्रालय को नाम विचारार्थ भेज दे या फिर स्वयं खिलाड़ी आवेदन कर दे। ऐसी स्थिति तब आती है जब बहुत से खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केवल भाग लेते है लेकिन पदक नहीं ले पाते है। शूटिंग से ही संबंधित खिलाड़ी है अंजलि भागवत, आप गूगल में सर्च कर ले, ये तीन बार ओलंपिक खेलों में भाग ली है।2002में कामनवेल्थ खेलो में गोल्ड जीता है लेकिन खेल रत्न है। खेल रत्न प्राप्त करने वालो की सूची देख लीजिए मल्लेश्वरी, अभिनव बिंद्रा, मेरी कॉम , विजेन्द्र सिंह,सुशील कुमार,विजय कुमार, पी वी संधू, देवेंद्र झांझरिया, ने एक एक पदक प्राप्त किया है खेल रत्न बने है।ऐसी स्थिति में दो पदक एक ही आयोजन में पाने वाले के लिए कानून कायदे ताक में रख कर घोषणा होना चाहिए वो भी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के स्तर से, खेल मंत्री ऐसी घोषणा करने के लिए सक्षम नहीं माने जाने चाहिए।

मनु भाकर देश की इकलौती खिलाड़ी है जिनके पास राष्ट्र मंडल खेल के अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले जूनियर और सीनियर स्पर्धाओं के गोल्ड,सिल्वर, और ब्रॉन्ज मैडल है। ऐसे खिलाड़ी का नाम शूटिंग से जुड़े संघ के द्वारा न भेजा जाना शर्मनाक है। आमतौर पर माना जाता है कि प्रतिभा का सम्मान दो कारणों से किया जाना चाहिए। पहला जिसने समर्पण कर उपलब्धि हासिल की है।दूसरा ऐसे उपलब्धि पाने वाले से दीगर लोग प्रेरणा पा सके। खेल मंत्रालय में दिमागी रूप से बीमार लोगो की कौम बैठी हुई है जो कागज की कार्यवाही से इस कारण खुश होते है कि उनसे मांगा गया तब उन्होंने दिया है मानो कोई भीख मांग रहा है और इन्होंने दे दिया है।

 देश के राष्ट्रपति के हाथों दिए जाने वाले मेजर ध्यानचंद खेल रत्न सम्मान का सम्मान कम किया जा रहा है।जिस खिलाड़ी ने पेरिस ओलम्पिक खेलों में देश के पदकों के सूखे को खत्म किया।दो पदक दिलाई,तीसरा पाते पाते रह गई।आने वाले सालों में उनसे गोल्ड की उम्मीद है ऐसे खिलाड़ी को कागजी कार्रवाई के लिए बाध्य किया जाना राष्ट्रीय शर्म है।

राष्ट्रपति महोदया को तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप कर मनु भाकर को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न सम्मान देने की घोषणा करना चाहिए।याद करिए सचिन तेंडुलकर अपना दो सौवां टेस्ट खेल कर रिटायर हो रहे थे और उसी समय उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा सारे नियम कानून को ताक में रख कर की गई थी। सचिन तेंडुलकर ने कोई आवेदन नहीं किया था।


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