मनमोहन सिंह के वित् मंत्रालय सँभालने से पहले और बाद का भारत

लेखक- संजय दुबे

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वित्त मंत्री मनमोहन सिंह से पहले और बाद का भारत

 आमतौर पर देश के वित्त मंत्री, प्रधानमंत्री सहित पार्टी लाइन पर चलने वाले लकीर के फकीर होते हैं। बजट में वित्त मंत्री की जगह पार्टी की नीतियां झलकती है लेकिन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव , पार्टी लाइन के प्रधानमंत्री नहीं थे। देश की खस्ता हाल वित्तीय स्थिति और देश के होनहार लोगों के लिए रोजगार के अवसर की प्रासंगिकता को नरसिम्हा राव ने समझा था।इसे अमल करने का जिम्मा तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को दिया। ऐसे जोखिम के प्रयास सराहे नहीं जाते है। नरसिम्हा राव, कांग्रेस में अछूत मान लिए गए लेकिन मनमोहन सिंह की प्रासंगिकता बनी रही। आगे चलकर एक ईमानदार व्यक्ति ,सत्ता के भंवर में केवल एक्सीडेंटल ही माना गया। प्रधान मंत्री होने के बाद उनसे कहलवाया गया कि "देश के सभी संसाधनों में पहला हक एक संप्रदाय विशेष का है।,"

 सफल वित्त मंत्री, सफल प्रधान मंत्री नहीं रहे इस कारण मनमोहन सिंह का मूल्यांकन प्रधानमंत्री की तुलना में वित्त मंत्री के रूप में करना ज्यादा बेहतर है।

मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री बनने से पहले देश में रोजगार के नाम सरकारी सेवा के अलावा सेना, रेल्वे, बैंक सहित निजी क्षेत्रों के उद्योगों में सीमित था। व्यापार, नियंत्रित था।इसके अलावा आरक्षण की अनिवार्यता के चलते रोजगार की संभावना कम ही थी। विदेशों की कंपनियों का भारत प्रवेश निषेध था। इस मकड़जाल का बयान अकसर आता की विदेशी कंपनियां देश को आर्थिक औपनिवेशिकवाद की ओर ले जाएगी, भारतीय पूंजी पर विदेशी कब्जा हो जाएगा। ईस्ट इंडिया कंपनी जैसी अनेक कंपनी देश को आर्थिक रूप से गुलाम बना देगी।इसके अलावा स्वाभाविक विकास की आड़ में गरीबी को बनाए रखना राजनैतिक जरूरत थी ताकि वोट बैंक बना रहे।

नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ने बीड़ा उठाया और महज तीन दशक में देश के शहर पुणे, चेन्नई, हैदराबाद,बंगलुरू, मुंबई, दिल्ली, आई टी सेक्टर के हब बन गए। अन्य शहरों में भी संभावनाएं थी लेकिन राजनैतिक दलों की दलित मानसिकता ने केवल कागजों पर दिखावा किया। छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के अगले साल ,पच्चीस साल हो जाएंगे लेकिन किसी भी बहु राष्ट्रीय कंपनी के भवन का एक ईट 

 नहीं जुड़ा। यही दुर्गति कमोबेश मन से कमजोर राजनैतिक सत्ताधारियों के चलते है।

 बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन से देश के होनहार युवा को रोजगार के अवसर उनके काबिलियत के कारण मिले। उनकी आय और रहन सहन के साथ वैचारिक परिपक्वता देखने को मिली। भाषाई गतिरोध टूटा, हिंदी को गैर हिंदी भाषी राज्यों में स्वीकार्य मिली और आई टी सेक्टर की मजबूती ने जीवन स्तर से जुड़े व्यापार व्यवसाय को गति देकर एक नए हिंदुस्तान को खड़ा कर दिया। इस कार्य के लिए श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को जाता है। सीधे साधे मनमोहन सिंह ,राजनीति के तिकड़मों से न तो वाकिफ थे और न ही हुए बाद दस साल प्रधान मंत्री रहे लेकिन उन्हें देश एक ऐसे वित्त मंत्री के रूप में हमेशा याद रखेगा जिसने बुद्धि, की सर्वश्रेष्ठता को जगह दी, मूल्यांकन किया और परिणीति भी दे। आपको नमन


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