भावनाओं के समुद्र थे राजेश खन्ना

लेखक - संजय दुबे

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  भारतीय फिल्म उद्योग में सत्तर का दशक एक अजीब दौर से गुजर रहा था। दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, सुनील दत्त जैसे बड़े कलाकारों की उम्र ऐसी हो चली थी कि उनके नायकत्व का दौर खत्म होने के कगार पर था। शून्य की स्थिति बन सी गई थी।ऐसे में निर्माताओं ने नायक खोजने के लिए एक स्पर्धा आयोजित की।दस हजार से अधिक नामांकन आए। एक लड़का इनमें प्रथम आया जतिन खन्ना। कॉलेज के साथी रवि कपूर के कहने पर जतिन खन्ना ने अपनी प्रविष्टि डाली थी।

  स्पर्धा में प्रथम आने वाले को बतौर नायक के रूप में फिल्म मिलनी थी।मिली भी, फिल्म का नाम था आखरी खत। इस फिल्म के बाद लगभग दो साल तक स्पर्धा में प्रथम आने वाले प्रतियोगी का नाम नेपथ्य में रहा।कुछ फिल्मे भी की।

1969 का साल था और ये साल एक ऐसे नायक के स्थापित होने का साल था जिसके नायकत्व में पूरा देश बह गया। जतिन खन्ना याने राजेश खन्ना, फिल्म थी "आराधना"। इस फिल्म में दार्जिलिंग के हेरिटेज ट्रेन में शर्मिला टैगोर के लिए राजेश खन्ना "मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू" गाने के साथ आए थे। अभिनय की पराकाष्ठा का पर्याय बनने की आराधना थी। राजेश खन्ना के अभिनय ने एक ऐसे कलाकार को जन्म दिया जो स्टार परंपरा से आगे जाकर "सुपर स्टार" बना। राजेश खन्ना अकेले ही सुपर स्टार नहीं बने बल्कि किशोर कुमार को भी गायकी का सुपर स्टार बना दिया। अगले पांच साल तक राजेश खन्ना बेमिसाल रहे। एक के बाद एक बेइंतहा खूबसूरत अभिनय की अदाकारी के लिए राजेश खन्ना गारंटी थे। उनकी फिल्मी जिंदगी के साथ साथ अफवाहों(गॉसिप) के कसीदे लिखने वालों का भी दौर चला ।प्रिंट मीडिया में एक से एक किस्सागोई, जैसे की राजेश खन्ना की फोटो तकिया के नीचे रखकर लड़कियां सोती है, खून से लिखे खत राजेश खन्ना को रोज मिलते है, राजेश खन्ना की दीवानगी का ये आलम है कि लड़कियां घर से भागकर मुंबई आ गई।

बहरहाल, राजेश खन्ना सफलता के पर्याय थे, अमर प्रेम, दाग,दुश्मन, मेरे जीवन साथी, खामोशी, आन मिलो सजना, कटी पतंग, आनंद,आपकी कसम, सच्चा झूठा,प्रेम नगर, नमक हराम, बावर्ची जैसी सफल फिल्म के अकेले नायक थे। मैने राजेश खन्ना की लगभग सभी फिल्मे देखी लेकिन "आनंद" फिल्म उनकी सबसे भाव पूर्ण फिल्म रही। उन्होंने कम समय की जिंदगी में जीने का ऐसा दर्शन दिया कि आज भी लगता है "आनंद मरा नहीं करते है"। इस फिल्म के शुरू से अंत तक केवल और केवल राजेश खन्ना ही थे। ये फिल्म राजेश खन्ना की सभी फिल्मों से बहुत ऊपर है। कहानी, पटकथा, दृश्य तभी जीवंत होते है जब अभिनय जीवंत होता है।ये राजेश खन्ना आने वाली पीढ़ी को सीखा गए। कभी राजेश खन्ना के प्रेम और शाहरुख ए के प्रेम की तुलना कर के देखिएगा। शाहरुख खान, राजेश खन्ना के पैर के धोवन भी साबित नहीं होंगे। 

प्रेम में जीना और भावों को चेहरे पर लाना राजेश खन्ना की खासियत थी। देश के किसी भी नायक के चेहरे पर उतने भाव मैने नहीं देखे ,जो राजेश खन्ना के चेहरे पर देखा था।

 एक आम धारणा भी राजेश खन्ना के जमाने में देखी गई कि स्थापित कलाकार नृत्य कला में कमजोर रहे।राजेश खन्ना भी इस मामले में कमजोर रहे।दो ऑफ स्पिन के बीच एक लेग स्पिन फेंकना ही नृत्य था। अमिताभ बच्चन भी आगे चल कर सुपर स्टार से भी बड़े मेगा स्टार बने या कहे हिंदी में सदी के महानायक, तो वे भी नृत्य के मामले में कच्चे रहे।

 राजेश खन्ना सुपर स्टार बने तो, नखरेबाज भी बन गए। अनुशासनहीन भी हुए।सफलता को पचा नहीं पाए और इसका परिणाम भी भुगते कि 1969से1974 के साल के बाद उनकी फिल्मे असरहीन हो गई। जितनी तेजी से आसमान छूए उतनी ही तेजी से जमीन पर गिरे। 1974के नौ साल बाद एक मात्र फिल्म "अवतार" में अभिनय कर पाए। एक युग जो बहुत सालों चल सकता था, उसका अवसान बहुत जल्दी हो गया। इसके बावजूद मेरा मानना है राजेश खन्ना जैसे कलाकार मरा नहीं करते हैं ।जिंदा रहते है आनंद ,बावर्ची जैसी फिल्मों के माध्यम से।


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