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जजों के रिश्तेदार नहीं बनेंगे जज!
उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर ऐसी धारणा अकसर बनाई जाती रही है कि पहली पीढ़ी के वकीलों को चयन प्रक्रिया में तवज्जो नहीं दी जाती। इसकी बजाय ऐसे लोगों को जज के तौर पर प्रमोट किया जाता है, जो दूसरी पीढ़ी के वकील हों और उनके परिजन पहले से जज हों। अब इस धारणा को खत्म करने की पहल कॉलेजियम की ओर से हो सकती है।
अब कहा जा रहा है कि कॉलेजियम ऐसे लोगों के नामों को आगे बढ़ाने से परहेज करेगा, जिनकी परिजन या रिश्तेदार पहले से हाई कोर्ट या फिर उससे उच्चतम न्यायालय के जज हों। यदि ऐसा हुआ तो फिर जजों का चयन करने वाली कॉलेजियम की प्रक्रिया में यह बड़ा बदलाव होगा।
बता दें कि जजों में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जिनका कोई फैमिली मेंबर या फिर रिश्तेदार पहले भी लीगल प्रोफेशन से जुड़े रहे हैं। कॉलेजिमय में शामिल कुछ जजों का ही प्रस्ताव था कि ऐसे लोगों के नामों को आगे न बढ़ाया जाए, जिनके परिजन या रिश्तेदार पहले से जज हैं या फिर रह चुके हैं। इस बारे में जब मंथन हुआ तो यह बात भी उठी कि इस तरह का फैसला लेने से तो कुछ ऐसे लोग भी छंट जाएंगे, जो योग्य हैं। इस पर कॉलेजियम में ही दलील दी गई कि ये लोग एक सफल वकील के तौर पर अच्छी जिंदगी गुजार सकते हैं।
इन लोगों के पास पैसे कमाने के अवसरों की भी कमी नहीं होगी। भले ही कुछ लोगों के लिए यह नुकसानदायक होगा, लेकिन व्यापक हित में यह फैसला गलत नहीं है। क़ॉलेजियम की ओर से खुद ही इस तरह का फैसला लेना मायने रखता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को खारिज कर दिया था।
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