सुबह और शाम काम ही काम
लेखक- संजय दुबे
इन्फोसिस कंपनी के संस्थापक कृष्णमूर्ति ने देश को विकसित बनाने के लिए युवाओं से सप्ताह में सत्तर घंटे काम का आव्हान किया। इसके बाद काम के घंटे को लेकर बहस जारी है। अदाणी के ये कहने पर कि हर दिन अवकाश को छोड़कर बारह घंटे काम करने पर बीबी छोड़ देगी।परस्पर विरोधाभास की स्थिति बनी है। काम के घंटे कितने हो और कितने है,ये बड़ी रोचक बात है।
देश दुनियां में मानसिक और शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्ति है। मानसिक श्रम करने वालो के पास कार्य स्थल शारीरिक रूप से कार्य करने वालों की तुलना में बेहतर होता है। सरल भाषा में इसे कार्यालय कहा जाता है।पुराने समय और आज के समय में कार्यालय सुविधाओं से भरपूर है। वहीं शारीरिक रूप से कार्य करने वालो के लिए कार्य स्थल जोखिम से भरे होते है और न्यूनतम सुविधाओं में कार्य करने की मजबूरी होती है। कृष्णमूर्ति ने मानसिक रूप से श्रम करने वालो से सत्तर घंटे काम करने की अपेक्षा की है। जिसमें बारह घंटे सामान्य और दो घंटे ओवर टाइम है।जिसका भुगतान भी अलग होगा यह अवधि वर्तमान में सप्ताह में पांच दिन में किए जाने वाले कार्य के पैतालीस घंटे से पच्चीस घंटे अधिक है जिसमें पांच दिन कार्य करने की अपेक्षा है। शनिवार रविवार अवकाश रहेगा
दुनियां भर में जितने भी शोध हुए है उनमें ये बात कही गई है कि कार्य चाहे शारीरिक हो या मानसिक अधिकतम आठ घंटे का होना चाहिए, एक दिन में, इसमें आधा घंटा भोजन अवकाश कभी शामिल होता है। जिन कार्य स्थल में नौ घंटे की समयावधि में पंद्रह मिनट का चाय काल भी होता है।
वर्तमान में कार्य करने के घंटे का विश्लेषण करे तो नीदरलैंड में सबसे कम सत्ताइस घंटे, योरोप में छत्तीस घंटे, अमेरिका में चालीस संयुक्त अरब अमीरात में साढ़े बावन घंटे कार्यवधि है। इस आधार पर ये कार्य मुश्किल दिखता है कि देश में आई टी कंपनी आसानी से कृष्णमूर्ति की बात पर सहमत हो जाएगी।
शारीरिक रूप से कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए वर्तमान में कारखाना नियम अनुसार आठ घंटे तय है। 1760से1840 के दौर में दुनियां भर में श्रमिकों से सोलह घंटे कार्य कराया जाता था। ये शोषण की पराकाष्ठा थी। अमेरिका जैसे देश में साल भर में तीन हजार घंटे कार्य कराया जाता था। 1886में शिकागो में श्रमिकों का आंदोलन हुआ। हेमार्केट
एरिया में आंदोलन करने वाले श्रमिकों पर बम फेंका गया।कुछ श्रमिकों की मृत्यु हुई ।परिणाम ये हुआ कि मजदूरों के नेता रॉबर्ट ओवन ने "आठ घंटे काम आठ घंटे मनोरंजन और आठ घंटे आराम" का नारा दिया। 1941में फोर्ड मोटर ने आठ घंटे की कार्यविधि तय कर दिया। भारत में 1891से पहले श्रमिकों के कार्य करने की समय सीमा तय नहीं था। 1891में भारत में कारखाना नियम आया जिसमें बारह घंटे काम और रविवार अवकाश की सुविधा दी गई। इसका श्रेय भी श्रमिक नेता नारायण मेघानी लोखंडे को जाता है।
मानसिक श्रम करने वालो के लिया कालांतर में सप्ताह पांच दिन के हो गए। कार्य स्थल और सुविधाएं बढ़ते जा रही है। कृष्णमूर्ति मानते है कि कोई भी व्यक्ति घर में रह कर बेहतर कार्य कर सकता है ऐसे में ऑफिस का दबाव कम होता है,ऐसा माना गया। कोरोना काल में वर्क फ्राम होम पद्धति ने जन्म लिया।
स्वास्थ्य पर निगरानी रखने वाले शोध कहते है कि किसी भी हालत में काम करने की अवधि सप्ताह में पचपन घंटे से अधिक मानसिक श्रम नहीं होना चाहिए। इससे अधिक होने पर मनुष्य के जैविक साइकल पर पड़ता है। अधिक मानसिक श्रम अवसाद, स्ट्रोक्स, ह्रदय से संबंधी बीमारी, नींद की कमी और पेट की खराबी जैसी बीमारी को बढ़ाती है। कृष्णमूर्ति जी को स्वास्थ्य का ख्याल नहीं आया और न ही पारिवारिक संरचना की समझ आई, ये तय है
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