कांग्रेस के लिए दिल्ली दूर ही है
लेखक- संजय दुबे
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आजादी के पहले जन्म लिए राजनैतिक दल के रूप में कांग्रेस का आजादी के अमृत काल में अनुभव कड़वा ही होते जा रहा है। दिल्ली के विधान सभा चुनाव में शून्य की शून्यता ने एक बार फिर लोगों के मन में ये बात डाल दी है कि आखिरकार कांग्रेस के शिखर पर बैठे लोगों के मन में क्या है?
लोकसभा चुनाव में 542लोक सभा चुनाव में दो अंकों की सबसे बड़ी संख्या 99 में सफल होने के बाद नेता प्रतिपक्ष का दर्जा भले मिल गया है लेकिन सिर्फ एक साल में कांग्रेस को तेलंगाना,महाराष्ट्र और दिल्ली में बुरी कदर हार का सामना करना पड़ा है।झारखंड में जे एम एम के साथ गठबंधन के चलते सत्ता में सहभागिता है। केवल आंध्र प्रदेश कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है।
15राज्यों में भाजपा की सरकार है और छः राज्यों में एनडीए की सरकार है।आखिर ऐसा क्या कारण है कि लोक सभा चुनाव में बहुमत न पाने ओर सहयोगी दलों के भरोसे चल रही सरकार ने अपनी हार को कैसे आंकलन कर विधान सभा चुनाव में जीत दर्ज करने में सफलता हासिल की और कांग्रेस ने सबक नहीं सीख 99के फेर में फंस कर रह गई।
कांग्रेस की सबसे बड़ी कमी इस पार्टी का गांधी परिवार के वर्चस्व से न निकल पाने का है। भले ही मल्लिकार्जुन खड़गे राष्ट्रीय अध्यक्ष बने है लेकिन कांग्रेस की कार्यप्रणाली में कोई बदलाव नहीं आया है उल्टे नेता प्रतिपक्ष बनने और प्रियंका गांधी वाड्रा के सांसद बनने के बाद कांग्रेस में धारणा बलवती हो गई है कि कांग्रेस पुनः गांधी परिवार के निर्णय का गुलाम हो गया है।
दिल्ली चुनाव को इंडिया ब्लॉक अगर मिल कर लड़ती तो मत विभाजन नहीं होता और इंडिया ब्लॉक के मूल उद्देश्य कि "भाजपा को कही भी सत्ता में आने से रोका जाए " पूरा होता। कांग्रेस को ये पता था कि दिल्ली लोकसभा और विधानसभा में "शून्य" हिस्सेदारी है, चाहकर भी जीत नसीब नहीं होती लेकिन इंडिया ब्लॉक केवल राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी को रोकने के लिए बनी है कहकर कांग्रेस ने इंडिया ब्लॉक के मुख्य उद्देश्य को ही भूल गई।नतीजा ये निकला कि कम से कम बारह सीट पर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को हरवा दिया जिसमें अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे दिग्गज शामिल है।
दिल्ली में तीन राष्ट्रीय दल भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस चुनाव मैदान में थे। वोट प्रतिशत देखे तो भाजपा को,आम आदमी पार्टी को और कांग्रेस को प्रतिशत वोट मिले है।देश की राजधानी में अगर कांग्रेस जनाधार खो रही है तो इस साल बिहार राज्य के चुनाव होने वाले है वोटर्स का मोहभंग होना स्वाभाविक है। वैसे भी बिहार में कांग्रेस तीन दशक से सत्ता से बाहर है। गठबंधन मजबूरी है याने किसी के पीछे पीछे चलना होगा।
2026में असम,केरल, तमिलनाडु,पश्चिम बंगाल और पांडिचेरी और 2027में उत्तर प्रदेश,गुजरात और हिमाचल प्रदेश राज्य के विधान सभा चुनाव होना है। इसमें केवल हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। समय रहते यदि कांग्रेस ये तय नहीं कर पाई कि किस राज्य में क्या निर्णय करना है तो जैसे दिल्ली दूर होते जा रही है वैसे ही अन्य राज्यों में परिणाम आएंगे
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