ट्रिपल इंजिन सरकार...

लेखक- संजय दुबे

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आमतौर पर इंजिन शब्द का उपयोग रेलगाड़ी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर डब्बों के लिए होता है।जबकि हर मशीन को चलाने को एक इंजिन की आवश्यकता होती है।इंजिन को चलाने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। कोयला, डीजल और इलेक्ट्रिसिटी के जरिए ऊर्जा निर्माण कर इंजिन चलाई जाती है।भारत में भारतीय रेल कश्मीर से कन्या कुमारी और मुंबई से कोलकाता तक विस्तार लिए हुए है। इसके जरिए यात्री और सामान दोनों का परिवहन होता है। भारत में 

रेल्वे (Rail +way का अर्थ)लौह पथ माना जाता है। इस पर चलने वाले ट्रेनों चाहे वे यात्री के लिए हो या सामान के लिए हो, इंजिन जरूरी है।

 भारत में भारतीय जनता पार्टी के संगठन ने केंद्र के लिए सिंगल इंजिन, राज्य के लिए डबल इंजिन और स्थानीय निकायों के लिए ट्रिपल इंजिन सरकार शब्द का प्रयोग कर अपनी ट्रेन में मतदाताओं को बैठाने का प्रयास किया और छत्तीसगढ़ में सफल भी हो गए। ऐसा माना जाता है कि जितना ज्यादा बोझ लेकर ट्रेन को लेकर चलना होता है उतने ही इंजिन की आवश्यकता होती हैं।भारतीय जनता पार्टी केंद्र, और छत्तीसगढ़ राज्य में काबिज थी अब स्थानीय निकाय चुनाव में भी सफल हो गई है।

राजधानी रायपुर में नरेंद्र मोदी राज्य में विष्णु देव साय के बाद तीसरे इंजिन के रूप में मीनल चौबे को मतदाताओं ने जोड़ दिया है।नौ अन्य नगर निगम सहित नगर पालिका और नगर पंचायत में भी ऐसा बहुमत हुआ है।

हर पार्टी के पास देश,राज्य और स्थानीय शहरों, नगरों के विकास का रोड मैप होता है। एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव की अवधि में योजनाओं को मूर्त रूप देकर जनता में ये विश्वास दिलाना कि उनकी सरकार फिक्रमंद है, ये समय की जरूरत है। नरेंद्र मोदी ने दो लोकसभा चुनाव में केंद्र में बहुमत की सरकार बनाए तो मसला यही था लेकिन तीसरे चुनाव में अति आत्म विश्वास दिखाए तो एक ही ट्रेन में चार पांच इंजिन जुड़ गए।देश के पंद्रह राज्यों में डबल इंजिन की भाजपा ट्रेन दौड़ रही है और छः राज्यों में दूसरी कंपनी के इंजिन जुड़े है।कुछ राजनैतिक कंपनियों के अन्य सात राज्यों में सिंगल या सहयोगी इंजिन की सरकार है।

 जब तक कांग्रेस के अलावा देश में किसी अन्य राजनैतिक दल का अस्तित्व ऐसा नहीं था तब तक ऐसा माना जाता था कि देश की ट्रेन कोयले के भाप से ही चलती रहेगी, डीजल और इलेक्ट्रिसिटी से पहल की गति धीमी थी।इसे स्वाभाविक विकास भी मान सकते है। 1977में गैर कांग्रेसी सरकार आई भी तो इंजिन में इतनी कंपनियों के कल पुर्जे लगे थे कि ट्रेन ढाई साल में ही रुक गई। एक बार फिर कांग्रेस का इंजिन जुड़ा और कालांतर में ढेर सारे कंपनियों के कल पुर्जे वाले इंजिन बनते बिगड़ते गए। 2004से 2013तक कांग्रेस का इंजिन केंद्र में सहयोगी इंजिन के भरोसे चला लेकिन देश की नब्ज पहचान न सका। 2013में देश के लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के सिंगल इंजिन सरकार को लाया और पिछले दो कार्यकाल में तो एक ही कंपनी के कल पुर्जे वाली दौड़ रही थी।इस बार फिर अन्य कंपनी(नीतीश कुमार, चंद्रा बाबू सहित एकनाथ शिंदे और चिराग पासवान)के कल पुर्जे से सरकार चल रही है।भाजपा का संगठन जानता है कि एक से अधिक दल के इंजिन की ट्रेन का मतलब कही पर भी गाड़ी का खड़ा होना या रद्द हो जाना है। ऐसे ट्रेन की अपनी राजनैतिक मजबूरी होती है।किसी भी स्टेशन में खड़ी करो। ऐसे में राजनैतिक कारखाने से मजबूत इंजिन बनाने की योजना है ये दिख रहा है।

 छत्तीसगढ़ का सौभाग्य है कि उनके पास तीन इंजिन की सरकार है। इसे राजनैतिक यात्रियों के उम्मीदों के बोझ के संदर्भ से भी देखा जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी इंजन को बदलकर राजनैतिक यात्रियों ने विष्णु देव साय चलित इंजिन को अवसर दिया है।ये डबल इंजिन हुआ। अब राजधानी में तीसरे इंजिन को चलाने का दायित्व महिला पायलट मीनल चौबे को दिया गया है। आधी आबादी का ये जश्न भी है।

तीन इंजिन की ट्रेन द्रुत गति से चलने वाली शताब्दी,दुरंतो या वंदे भारत ही हो सकती है। रायपुर के सत्तर वार्डो में इसे अगले पांच साल चलना है। स्मार्ट सिटी योजना में रायपुर शामिल है। स्वच्छता के मामले में कभी भी एक नंबर नहीं बन सका है।ये जरूर है कि जब ऐसा सर्वेक्षण होता है तो दीवाले उम्मीदों के शब्दो से रंग भर जाते है।मीनल चौबे की ट्रेन से ये उम्मीद है कि वे रायपुर को एक नंबर पर लाएंगी।वे चाहे तो अधिकारियों के साथ साथ पार्षदों और सफाई का ठेका लेने वालों के साथ साथ सफाई कर्मियों और नागरिकों को देश के सबसे साफ सुथरे शहर इंदौर का भ्रमण करा कर नई कोशिश कर सकती है।एक बात और कि एक अच्छा प्रबंधक अपनी टीम से बेहतर काम कराने वाला होता है। मीनल चौबे के पास पर्याप्त अनुभव है,हौसला है और ऊर्जा है, वे अब तक के पूर्ववर्ती महापौरो से उत्कृष्ट सिद्ध हो,ऐसी आशा है।भविष्य में राजनीति के बड़े मंचों की भी नेतृत्वकर्ता बने ये शुभ कामनाएं भी है


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