राज्य ने गोद लेने के कानून की भाषा में लैंगिक पूर्वाग्रह को समाप्त किया

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राज्य सरकार ने सौ साल पुराने दत्तक ग्रहण अधिनियम में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया है, जिसके तहत सभी कानूनी दस्तावेजों में 'दत्तक पुत्र' शब्द के स्थान पर 'दत्तक बालक' शब्द का प्रयोग किया गया है। इसे लैंगिक समानता और सामाजिक सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

राज्य के वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने कहा, "1908 के अधिनियम में, गोद लेने के लिए केवल 'पुत्र' शब्द का उल्लेख किया गया था, जो उस समय की पितृसत्तात्मक मानसिकता को दर्शाता है। हमने अब इसमें संशोधन करके 'दत्तक बालक' शब्द का प्रयोग किया है, ताकि लैंगिक तटस्थता और महिलाओं के प्रति सम्मान सुनिश्चित किया जा सके।"

यह कदम पद्म विभूषण तीजन बाई जैसी महिलाओं की भावना को प्रतिध्वनित करता है, जिन्होंने पारंपरिक रूप से पुरुषों की 'कापालिक' शैली में पंडवानी करके सामाजिक मानदंडों को तोड़ा, और पद्म श्री फूलबासन बाई, जिन्होंने ग्रामीण छत्तीसगढ़ में स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से 8 लाख से अधिक महिलाओं को सशक्त बनाया।


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