चले गए मनोज "भारत" कुमार
संजय दुबे

हरि कृष्ण गोस्वामी से मनोज कुमार का सफर अंततः आज थम गया। 87साल की उम्र में मनोज कुमार की आत्मा ने अपने देह काया को छोड़ दिया । उनके कर्म के रूप में उनका योगदान भारतीय फिल्मों के लिए धरोहर है।
मनोज कुमार केवल नायक के रूप में ही नहीं बल्कि एक लेखक, निर्माता और निर्देशक भी रहे। फिल्मों में अधिकांश निर्माता निर्देशक मसाला फिल्मे बनाकर व्यावसायिक मुनाफा बनाने के फेर में रहते है लेकिन मनोज कुमार परे रहे। एक नायक, लेखक, निर्माता और निर्देशक के समग्र में पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान सहित क्रांति फिल्म उदाहरण है कि मनोज कुमार ने समय विशेष के मुद्दे को फिल्म के माध्यम से सामने रखा।
भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर "उपकार" जैसी ऐसी फिल्म बनाई जिसमें देश प्रेम की भावना लहरें मारते दिखी। ये फिल्म मनोज कुमार के भारत कुमार बनने की नींव थी। ये फिल्म एक स्थापित खलनायक प्राण के चरित्र अभिनेता बनने की भी फिल्म थी।मलंग बाबा की भूमिका में प्राण ने नए आयाम को छुआ था। दिलीप कुमार की फिल्म शबनम देख स्वयं को मनोज कुमार नाम देने वाले हरि कृष्ण गोस्वामी 1961से लेकर 1981तक सक्रिय रूप से प्रासंगिक रहे लेकिन अंतिम चार साल (1985तक) निरर्थक रूप से देवानंद हो चले थे।
कलयुग और रामायण क्लर्क और जयहिंद जैसे अप्रासंगिक फिल्मे बनाते रहे। एक भावपूर्ण अभिनय के लिए मनोज कुमार कांच की गुड़िया फिल्म से सफलता का स्वाद चखना शुरू किया। डा विद्या, हरियाली और रास्ता, वो कौन थी, गुमनाम, हिमालय की गोद में, पत्थर के सनम, अनिता, आदमी, नीलकमल, पहचान, , पूरब और पश्चिम, शोर, बेईमान, रोटी कपड़ा और मकान, संन्यासी ,दस नंबरी, सहित क्रांति फिल्म में सफलता के झंडे गाड़ते रहे।
मैने उनकी 1965में अभिनीत फिल्म "शहीद"। 1985 में देखा। इस फिल्म में मनोज कुमार अमर शहीद भगत सिंह की भूमिका अदा की थी। मेरे जेहन में महज 23साल की उम्र में शहीद होने वाला भगत सिंह आज तक मनोज कुमार के रूप में ही जिंदा है। मनोज कुमार के लिए सम्मान का एक कारण भी है। बटुकेश्वर दत्त के द्वारा लिखित सच्चाई पर शहीद फिल्म बनी थी।
इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो मनोज कुमार ने भगत सिंह की मां विद्यामति कौर को मंच पर ले गए थे। शुक्र है शहीद लाल यू शास्त्री के प्रधान मंत्रित्व काल में बनी थी वरना उस काल के दीगर प्रधान मंत्री राष्ट्रीय पुरस्कार भगत सिंह की फिल्म को न देते। सही मायने में अगर आज भगत सिंह प्रासंगिक है तो बहुत हद तक श्रेय मनोज कुमार को जाता है।
एक कलाकार एक व्यक्तित्व को ओढ कर ऐसा जी जाए कि उसे लोग मानने लग जाए, ये बहुत बड़ी बात है। मनोज कुमार, भगत सिंह को कितना मान देते है ये उनकी फिल्म " उपकार" में तिरंगे के लिए गाये गए गाने से पता चलता है - रंग लाल है लाल बहादुर से, रंग बना बसंती भगत सिंह। ऐसे मनोज कुमार के जाने का दुख है।

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