रोम,रोम में राम बसे
सजंय दुबे

भारत देश सहित दुनियां में लगभग सभी सुधि लोगों के लिए राम का नाम सर्वव्याप्त है। दो अक्षर के नाम की स्वीकार्यता इतनी है कि इस नाम के जीवन के अंतिम क्षणों में स्मरण करने से सारे पाप से मुक्त होने का विश्वास है।
इस नाम को हिंदू धर्म और संस्कृति में ईश्वर और व्यक्ति दोनों रूप में में स्वीकृति मिली हुई है। वाल्मीकि ने रामायण ग्रन्थ में राम को ईश्वर के रूप में स्थापित किया। वाल्मीकि द्वारा देव भाषा संस्कृत में लिखे रामायण का अवधि भाषा में अनुवाद किया। दोनों ही ग्रन्थ में विचार और दृष्टिकोण में अंतर है।
तुलसीदास के राम चरित मानस लिखने से आसानी ये हो गई कि सरलीकरण के चलते ज्ञानियों के यहां से निकल कर राम, विशिष्ट से साधारण हो कर घर घर व्याप्त हो गए। दोहा, चौपाई और छंद में सृजित राम चरित मानस की स्थिति ये रही कि शाला नहीं गए लोगों को राम चरित मानस कंठस्थ है। राम, भारत में अंग्रेजों के हाय, हैलो,गुड मॉर्निंग,आफ्टरनून, गुड नाइट जैसे कहे जाने वाले उद्बोधन से कही अधिक व्याप्त है। भारत के लगभग साढ़े पांच लाख गांव सहित शहरों में व्यक्ति के व्यक्ति से मिलने पर राम राम ही होती है।
राम के नाम विश्वास कितना है इसका उदाहरण ये है कि लोगो ने अपनी संतानों के नाम राम, या नाम के साथ राम इसलिए जोड़ा की राम विस्मृत न हो सके। वस्तुतः, राम नाम की स्वीकृति के पीछे पुरुष को मर्यादित रहते हुए उत्तम कार्य करने की अपेक्षा होती है। रामायण और राम चरित मानस में राम , आदर्श के प्रतिमान रहे। पुत्र, भाई, पति, सखा यहां तक शत्रु भी हुए व्यक्ति के लिए आदर्श शत्रु रहे।शत्रुता की नहीं लेकिन शत्रु के सामर्थ्य को भी स्वीकार किया।धर्म युद्ध में भी आदर्श का पालन किया।इसी कारण रावण जैसा पुरोहित भी शत्रु होते हुए राम के विजय यज्ञ का साक्षी बना।
भारत, राम का देश है।गांधी ने भी राम राज्य की परिकल्पना की थी लेकिन तुष्टिकरण के स्वार्थ ने राम की जन्म भूमि को ही बावरी मस्जिद जैसे विवादास्पद मुद्दे पर अटका दिया। शुक्र है कि इस देश में बाला साहेब ठाकरे जैसे बेबाक नेता ने इस मामले में गर्व से खुद को हिंदू कहते हुए विध्वंश किया और देश के हिंदुओं को एक नया गर्व का विषय देकर "जय श्री राम," के नारे को आम कर दिया। आज राम नवमी है, देश भर में आज राम का जन्म वैभव पूर्ण तरीके से मनाया जा रहा है।
तुष्टिकरण को प्रश्रय देने वालों के काल में भी बाला साहब ठाकरे ने डंके की चोट पर राम को स्थापित किया। हिंदू धर्म के पैरवीकार लोगों को राम का नाम लेना ईश्वरीय स्वीकृति है लेकिन देश को राममय बनाने में बाला साहब ठाकरे को कभी भी विस्मृत नहीं किया जाना चाहिए

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