भाषा नहीं सिखाती भाषा से बैर करना

संजय दुबे

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एक अत्यंत रोचक मुकदमा उच्च न्यायालय मुंबई से न निर्णीत होने के बाद उच्चतम न्यायालय दिल्ली पहुंचा और खारिज हुआ। मुद्दा था अकोला (महाराष्ट्र) जिले के पातुर नगर परिषद के साइन बोर्ड में उर्दू भाषा में लिखे नारे का।

इसी नगर की पूर्व पार्षद वर्षा ताई संजय बागड़े ने महाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण (आधिकारिक भाषा) अधिनियम 2022 के तहत केवल मराठी भाषा का उपयोग करने को कारण बताया था। जाति,धर्म, सम्प्रदाय के नाम पर गलत होने पर विवाद होना स्वाभाविक है, हुआ भी है होगा भी।

धर्म, जाति, सम्प्रदाय के नाम पर अंग्रेज दो देश बना गए।जिसका खामियाजा आज तक भुगतना पड़ रहा है। देश का संविधान बना तो राष्ट्र भाषा नहीं बन पाई क्योंकि बहुभाषी रियासत थे।भाषा के आधार पर राज्य 1956 में जरूर बन गए। उत्तर प्रदेश न हिंदी और ऊर्दू आधिकारिक भाषा है।

भाषा के आधार पर बने राज्य अपने नागरिकों की सुविधा के लिए स्थानीय भाषाओं में शिक्षा और शासकीय कार्य का संपादन आज भी कर रहे है। भाषा पर विवाद केंद्र और राज्यों का मुद्दा है इसका हल नहीं है लेकिन एक नगर परिषद का मुद्दा उच्चतम न्यायालय तक जाए, रोचक है।

मुद्दा उठा अकोला (महाराष्ट्र) जिले के पातुर नगर परिषद द्वारा साइन बोर्ड में उर्दू भाषा में नारा लिखने पर, पूर्व पार्षद वर्षा ताई संजय बागड़े ने 202 में बने स्थानीय भाषा अधिनियम अंतर्गत "मराठी "के बजाय उर्दू भाषा में नारा लिखने को लेकर था। देश के संविधान में राष्ट्र भाषा नहीं है। मान्य भाषाओं की संख्या 22है जो राज्यों के अनुसार है।। देश मे हिंदी के समकक्ष अंग्रेजी भाषा खड़ी है।

अंग्रेजी, अन्य राज्यों के लिए संपर्क भाषा के साथ साथ प्रतिष्ठा की भाषा है।आज भी जानने वाले, न जानने वालों को हेय की दृष्टि से देखते है।भाषाई विवाद इतना है कि दक्षिण भाषी राज्यों में हिंदी का जबदस्त विरोध आज भी है। यही कारण भी रहा होगा कि पातुर नगर परिषद की पूर्व पार्षद को बात लग गई होगी। वैसे भी मराठी माणुस, राष्ट्र में "महा" जोड़कर महाराष्ट्र बोलते लिखते है।

बाला साहब ठाकरे ने मराठा सम्मान को जगा कर शिवा जी सहित मराठी को प्रतिष्ठित कर चुके है। अब बात आती है उर्दू की, उर्दू की लिपि जानने वालें मुख्यत: मुस्लिम है या गीतकार गुलजार जैसे लोग है जिन्हें रचना धर्मिता के लिए इस भाषा की जरूरत पड़ी। फिल्म स्टार धर्मेंद्र ,बहुत अच्छी उर्दू लिखते बोलते है। उर्दू, भाषा में नफासत जबदस्त है। इबादत भी है अदावत भी है।

उर्दू जुबान में अदब भी है।आप लखनऊ चले जाईए हर व्यक्ति शराफत से बात करेगा।हिंदी बोली में उर्दू इतनी घुल मिल गई है कि कई उर्दू शब्द ऐसे है जिनके हिंदी पर्यायवाची याद नहीं आते है। कुमार विश्वास ने हिंदी और ऊर्दू को सगी बहन बता कर उर्दू को अपनी मौसी बताया है। देश दुनियां में धर्म, जाति, सम्प्रदाय, संस्कृति के नाम पर लड़ने की वजह है।

भाषा, दूर ही रहे तो अच्छा है। हर धर्म में दूसरे धर्म को समझने के लिए उस धर्म की भाषा को सीखने की नसीहत है। अनुवाद जैसे कार्य के लिए लोग भाषा सीखते है। भारत में 122 भाषाएं और 234बोलिया है। बोली का अर्थ है लिपि विहीन भाषा। मुझे लगता है भाषा का कोई धर्म होता है तो वह ज्ञान को बढ़ाने का होता है। हिंदी, बहुत मीठी है उर्दू में मिठास है।


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