मेरे धर्मेंदर

लेखक: संजय दुबे

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मेरे और धर्मेंद्र जी मे एक समानता है। 1960 में मेरा जन्म हुआ और 1960 में ही उनकी पहली फिल्म "दिल भी तेरा हम भी तेरे" प्रदर्शित हुई। ये भी संयोग रहा कि मेरे स्मृति में देखी पहली फिल्म भी धर्मेंद्र की "देवर" ही थी सो मेरे लिए वे फिल्मो के पहले नायक है। उनकी फिल्म देवर का ये गाना"आया है मुझे फिर याद वो जालिम गुजरा जमाना बचपन का" उनको मनो मस्तिष्क में बैठाए रखा है। वे भावपूर्ण अभिनेता नही थे लेकिन हीरो थे।आज जिस तरह की फिल्में सलमान खान कर 500 करोड़ का व्यवसाय कर रहे है और शर्ट उतार रहे है ये काम धर्मेंद्र ही 70 के दशक में कर आये है। उनके आने के साथ ही गठीले बदन के नायक फिल्मो के उच्च श्रेणी में दिखे अन्यथा दारा सिंह ही कुश्ती लड़ने के लिए बदन उघाड़ते थे।धर्मेन्द्र के शर्ट उतारने के बाद फूल और पत्थर फिल्म की नायिका मीना कुमारी ही दिल दे बैठी थी। धर्मेंद्र सच्चे रूप में खिलंदड़ भूमिका के बेहतर नायक थे लेकिन उनके लिए फिल्में जासूस,चोर जैसी ज्यादा रही। उनकी सबसे दमदार कही जाने वाली फिल्म शोले,चरस,सीता और गीता,दो चोर,ड्रीम गर्ल, को देखे तो वे अमूमन ऐसी ही भूमिका करते दिखे। आप उनकी फिल्मोग्राफी देखेंगे तो सत्तर फीसदी फिल्म आपको ऐसे ही दिखेंगी। सत्यकाम,चुपके चुपके,दिल्लगी, जीवन मृत्यु और दोस्त उनको विशेष फिल्में रही जिनमे उनके भीतर का अभिनेता जीते दिखा अन्यथा वे सॉलिड घूँसा मारने वाले नायक ही रहे। जिसे देख दर्शक खुद चिल्ला पड़ता था "मार,और मार"। वे तब के दशक के नायक रहे है तब फिल्मो में नायक नाचा नहीं करते थे। राजकुमार राजकपूर, देवानंद,दिलीपकुमार के समान ही धर्मेंद्र भी नाच न आये आंगन टेढ़े वाले थे। उनको कोई भी कोरियोग्राफर नचा नहीं पाया। एक खूबसूरत से नायक थे, आज 85 साल पूरा करने वाले धर्मेंद्र अपनी बड़ी सुसज्जित दंत पंक्तियों के लिए जाने जाते रहे है। उनकी मुस्कान और हंसी जानलेवा थी।यही वजह रही होगी कि देश की ड्रीमगर्ल हेमामालिनी भी उन्हें दिल भी तेरा हम भी तेरा तेरे कह बैठी।वैसे तो दिल उनको करोड़ो लोगो ने दिया है और वे भी उनके है। अब जबकि फिल्में शायद बेमानी हो उनके लिए लेकिन एक किसान के रूप में वे सफल है।उनको आप उनके फॉर्महाउस से सीधा देख सकते है। धर्मेंद्र जी को जन्मदिन की 85 शुभकामनाएं।वे स्वस्थ रहे, चियर्स।
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