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मानव अधिकार दिवस
लेखक : संजयदुबे
आज 10 दिसम्बर है। 70 साल पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने पहले दो विश्व युद्ध के पहले और बाद में उपजे परिस्थितियों के चलते ये महसूस किया था कि व्यक्ति जन्म से स्वतंत्र है और उसके साथ जाति, धर्म,लिंग,पद के आधार पर भेदभाव नही किया जाना चाहिए। इसके साथ साथ सभी व्यक्ति के मूलभूत अधिकार के संरक्षण पर ध्यान रखने के लिए पूरी दुनियां में मानवाधिकार आयोग के गठन का भी विषय रखा। भारत मे 1993 में ऐसे आयोग अस्तित्व में आये वैसे देश के संविधान में मूलभूत अधिकारोवक उल्लेख है साथ ही उनके हनन होने पर सर्वोच्च न्यायालय को सुरक्षा देने का दायित्व भी सौपा गया है लेकिन अशिक्षा के चलते व्यक्ति अपने अधिकार को समझ ही नही पाता है और शोषित होते रहता है।
देश मे सर्वाधिक शोषण लिंग के आधार पर हो रहा है। अंग्रेजी स्कूलों के जन्म लेने के बाद लड़के लड़कियों के साथ साथ शिक्षा व्यवस्था के बावजूद देश में वैचारिक पिछड़ापन है। दुख की बात तो ये है कि स्त्री ही स्त्री के अधिकारों की सबसे बड़ी शोषक है। अपनी बेटी और बहू के लिए मापदंड दोहरा है माँ अपनी बेटी के मायके में अपनी बेटी को अधिकार सम्पन्न देखना चाहती है लेकिन अपनी बहू को वंचित रखती है ये कैसा मानवाधिकार है और सबसे बड़ी बात कि इस प्रकार के मानव के अधिकारों के उल्लंघन के लिए मंच नही है।
मानव अधिकार चार्टर को पढ़े तो व्यक्ति के अधिकारों का संरक्षण होना चाहिए उसका पद के आधार पर भेद भाव नही होना चाहिए इस मामले में देश के मानवाधिकारी दोगले है वे पुलिस के द्वारा की गई दुष्कृत्यों पर आग बबूला होते है लेकिन यदि नक्सली हमले में जवान मरते है तो देश भर के मानवाधिकारियो को सांप सूंघ जाता है। इस प्रकार के दोयम दर्जे के मानवाधिकारियो के कारण देश मे इनको समर्थन के। विरोध ज्यादा है।
बेहतर हो कि मानव के प्रति मानव उसके अधिकारों के लिए समान रहे। सास बहू के समान न हो।
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