बस्तर की लोक नृत्य, लोक संस्कृति एवं भाषा को एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक स्थान्तरित करने पर जोर

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जगदलपुर :मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ शासन के विगत समय बस्तर प्रवास के दौरान, बस्तर लोकनृत्य, लोक संस्कृति एवं भाषा अकादमी की स्थापना हेतु निर्देशित किया गया था। ताकि बस्तर के आदिवासी क्षेत्र की स्थानीय संस्कृति, लोकनृत्य, लोकगीत, स्थानीय भाषा हल्बी,गोन्डी, भतरी आदि को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थान्तरित किया जा सके और बाकि देश दुनिया को इसका परिचय कराया जा सके।

    इसी तारतम्य में कलेक्टर रजत बंसल के मार्गदर्शन में कार्य को सुचारू रूप से क्रियान्वयन हेतु चार भाग क्रमशः अद्योसंरचना, लोकनृत्य एवं लोकगीत, भाषा संकाय तथा लोक साहित्य पर निरंतर कार्य किया जा रहा है। इसमें पृथक-पृथक प्रभाग के कार्यों को गति देने हेतु अलग-अलग कार्य संचालित किए जा रहे हैं। कार्य के प्रथम भाग में अद्योसंरचना का निर्माण ग्राम आसना में पूर्णता की ओर है। ताकि आगामी दिनांे में संस्था प्रारंभ कर बस्तर के पारंपरिक गेड़ीनृत्य, डंडामी माड़िया नृत्य,परब नृत्य, धुरवा नाचा आदि इसी तरह लोकगीतों में चईतपरब, लेजागीत, भतरीनाट, जगारगीत आदि को जानकारों के माध्यम से जनसामान्य को परिचित कराया जा सके। समय-समय पर इसका प्रदर्शन कर अन्य देश-दुनिया को भी परिचय कराया जा सके। इन कार्यों को पूर्ण कराने में उपायुक्त आदिवासी विकास विभाग श्री विवेक दलेला निरंतर प्रयासरत हैं।

        क्षेत्र को जानने एवं क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थानीय बोली-भाषा का जानना भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। पर्यटकों को बस्तर के दर्शनीय स्थलों को समझने के लिए और राज्य के अलग-अलग क्षेत्र से बस्तर में पदस्थ अधिकारी-कर्मचारियों में स्थानीय बोली हल्बी,गोन्डी में आवश्यकता के अनुरूप ज्ञान वृद्वि करने के लिए और कभी-कभी होने वाली प्रशासन एवं जनता के मध्य की दूरी को कम करने के लिए और बस्तर की हल्बी,गोन्डी संस्कृति को देश-दुनिया से परिचित कराने के लिए हल्बी एवं गोन्डी में स्पीकिंग कोर्स लगभग पूर्ण किया जा चुका है। इसकी मौलिक रचना एवं संकलन क्रमशः शिवनारायण पाण्डे ’’कोलिया’’ एवं अबलेश कुमार ’’दशरू’’ द्वारा तैयार की गई है ताकि निकट भविष्य में मैदानी क्षेत्र में कार्यरत अधिकारी-कर्मचारियों को हल्बी,गोन्डी का प्रशिक्षण दिया जा सके।

    अकादमी के अंतिम हिस्सा में लोक साहित्य को संरक्षण करने के लिए बस्तर की हल्बी ,गोन्डी, भतरी एवं अन्य बोलियों के सभी लोकगीत, लोक-कथाएं, दंत-कथाएं को संकलित कर लिपिबद्व करने हेतु बस्तर संभाग के साहित्यकारों एवं जानकारों की अनेक बार बैठक आयोजित की गई है। और संकलन हेतु कार्य निरंतर प्रक्रियाधीन है। इस तरह से बस्तर में, बस्तर लोक नृत्य, लोक संस्कृति एवं भाषा अकादमी की स्थापना हेतु जिला प्रशासन सतत रूप से प्रयत्नशील है।


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