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केन्द्र की निर्ममता से बेमौत मर रहे किसानः मोहम्मद असलम
रायपुर : प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता मोहम्मद असलम ने कहा है कि केन्द्र सरकार की हठधर्मिता के कारण देश के किसान कड़ी ठंड में अपने अधिकारों के लिए सड़क पर संघर्ष कर रहा है। देश में सरकारें नया कानून और कानून में संशोधन इसलिए करती हैं ताकि लोगों की समस्याओं का समाधान हो सके और अड़चनों से जनता को निजात मिल सके, लेकिन केन्द्र सरकार ने नए कानूनों से किसानों को न सिर्फ मुसीबत में डाल दिया है बल्कि कानून में किए गए प्रावधानों से उन्हें खेती से वंचित करने का पूरा-पूरा जतन कर दिया है। ऐसे कानून बनाने की आखिर जरूरत क्या थी जिसके चलते देश में कानून व्यवस्था बनाए रखना भी मुश्किल हो जाए।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता मोहम्मद असलम ने जारी बयान में कहा कि केंद्र सरकार कृषि कानून के विरोध में किसानों द्वारा किए जा रहे आंदोलन को लेकर गंभीर नहीं है और उसे बदनाम कर शाहीन बाग की तरह कुचलने की तैयारी में है। जिस तरह के अनर्गल आरोप किसानों, किसान संगठनों पर लगाए जा रहे हैं वह इसका स्पष्ट उदाहरण है। सरकार की नीयत पर सवाल उठ रहा है। तानाशाही रवैया अपनाया जा रहा है और सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने वालों के ऊपर झूठे, मनगढ़ंत आरोप लगाकर उन्हें बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। जब तक देश का 18 करोड़ किसान जागरूक होकर उठ खड़ा नहीं होगा, तब तक सरकार में बैठे मौकापरस्त लोग गोरों के समान इसी तरह लोगों को आपस में लड़ा कर देश में विघटनकारी स्थिति पैदा करते रहेंगे। किसानों पर जो आरोप मढ़े जा रहे हैं वह ना सिर्फ निंदनीय है अपितु बेहद शर्मनाक भी है। सरकार की असंवेदनशीलता का ही नतीजा है कि कड़ाके की सर्दी में किसान खुले आसमान के नीचे सड़क पर पिछले 23 दिनों से आंदोलनरत हैं। खबरों के मुताबिक किसान आंदोलन में अब तक लगभग तीन दर्जन किसान अपने प्राण गवां चुके हैं।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता मोहम्मद असलम ने कहा कि दिल्ली में कड़ाके की ठंड पड़ रही है, पारा लुढ़क कर 4.1 हो गया है लेकिन आलीशान बंगलों में हीटर की गरमी के साथ आनंद से निर्णय ले रही सरकार को ठिठुरते ठंड में सड़कों पर तीन हफ्तों से बदहाल पड़े किसानों की कोई चिंता नहीं है, यह कैसी निर्मम सरकार है। विपक्ष द्वारा किसानों को भ्रमित करने का केन्द्र का आरोप भी निराधार है। विपक्ष न तो किसानों को भ्रमित कर रहा है और न ही किसी तरह की साजिश रच रहा है। विपक्ष तो पहले दिन से ही इस काले कानून के विरोध में आपत्ति दर्ज कराते रहा है लेकिन एनडीए सरकार अपनी जिद में अलोकतांत्रिक तरीके से तानाशाही रवैया अपनाते हुए बिल को कानूनी रुप देनें में सफल रही। एनडीए के समर्थक दल भी सरकार को छोड़कर चले गए, बचे हुए एनडीए के समर्थक दल भी भीतर ही भीतर किसानों के पक्ष में हैं। ऐसे में सरकार को हालात को समझते हुए किसानों की मांग पर बिना देरी किए तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेना चाहिए।
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