पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी ने पीएससी अध्यक्ष को लिखा पत्र, युवाओं के भविष्य को लेकर जताई यह चिंता..

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 रायगढ़ : लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी ने छत्तीसगढ़ की भर्ती संबंधित संस्थाओं के प्रति विश्वास पूर्ण माहौल निर्मित करने के संबंध में पांच पेज लंबा पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने छात्र-छात्राओं, युवाओं, बेरोजगारों के लिए आवाज उठाई है। जिसे ओपी चौधरी ने अपने फेस बुक के माध्यम से साझा किया है।

ओपी चौधरी ने पीएससी कैलेंडर जारी करने की मांग की है और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे की एसीएफ रेंजर की भर्ती में हो रही देरी के बारे में सवाल खड़े किये और 10 सुझावात्मक बिंदु का भी जिक्र किया। साथ ही असिस्टेंट प्रोफेसर, सहायक संचालक कृषि और पीएससी के गठित विशेष समिति पर पर भी टिप्पणी की है।

 

देखें, पूर्व आईएएस ओपी चौधरी पत्र में क्या लिखा

 

भारत के लोकतंत्र का एक बहुत बड़ा आयाम भर्ती से संबंधित संस्थायें भी हैं। भारत में लोकतंत्र की ही ताकत है। जिसके कारण किसी दूर-दराज के गांव में बैठा एक बच्चा भी बड़े प्रशासनिक ओहदे पर पहुंचने का सपना देख पाता है। आप स्वयं भी धमतरी जिले के एक गांव से निकलकर पीएससी में चयनित होकर अपना प्रशासनिक सफर प्रारंभ किए और आज इस संवैधानिक पद पर पहुंचे हैं। मैं भी रायगढ़ जिले के एक छोटे से गांव में 12वीं तक की पढ़ाई करते हुए आईएएस बनने का सपना संजोया और यह भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती ही है। जिसने मुझे यूपीएससी के माध्यम से आईएस बनाया था। अपने जिंदगी के अनुभव के कारण यूपीएससी में मेरी अगाध श्रद्धा है और मैं यूपीएससी एवं भर्ती संबंधी अन्य संस्थाओं के प्रति बहुत सम्मान रखता हूँ।

ये संस्थायें, महज संस्थायें ही नहीं हैं,बल्कि युवाओं के आशा और विश्वास के केंद्र भी हैं। जब पीएससी जैसी संवैधानिक संस्था से जरा भी चूक होगी,तो स्वभाविक है कि युवाओं के बीच हताशा और निराशा का वातावरण निर्मित होगा। जो किसी भी प्रगतिशील राज्य और समाज की दृष्टि से खतरनाक है। कई मामले आये हैं, जिन्हें हमारे छत्तीसगढ़ के अनेक युवा भाई-बहनों ने मुझसे सामने लाने का आग्रह किया है। ऐसे कतिपय महत्त्वपूर्ण विषयों का मैं इस पत्र में जिक्र करना चाहूंगा।

1. विभिन्न स्रोतों के अनुसार असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती परीक्षा में अलग-अलग विषयों से कुल 105 प्रश्नों को विलोपित करने की बात आई है। अनेक अभ्यर्थियों का यह भी आरोप है कि दर्जन भर प्रामाणिक स्रोतों के रिफरेंस को भी नजरअंदाज किया गया है, नहीं तो विलोपित प्रश्नों की संख्या 200 से भी अधिक हो सकती थी। इस तरह की कार्यप्रणाली न्यायालय में याचिकाओं की स्थिति निर्मित कर सकती है और भर्ती प्रक्रिया में अनावश्यक विलम्ब हो सकता है।

2. इसी तरह सहायक संचालक-कृषि की परीक्षा में 150 में से 14 प्रश्नों को विलोपित किये जाने की जरूरत पड़ी।

3. अनेक मामलों में अभ्यर्थियों ने पीएससी द्वारा गठित कुछ विशेषज्ञ समितियों से अडिय़ल रवैया अपनाने का भी आरोप लगाया है। दावा-आपत्ति के बाद भी मॉडल उत्तर में सुधार नहीं करने की स्थिति निर्मित हो रही है। 26 दिसंबर 2020 को स्वयं छत्तीसगढ़ पीएससी के ही एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी, जिससे स्पष्ट होता है कि 9 फरवरी 2020 को प्री-2019 की परीक्षा आयोजित हुई। दावा-आपत्ति के बाद संशोधित मॉडल आंसर 29 मई 2020 को जारी किया गया।

दावा-आपत्ति में अनेक युवा भाई-बहनों के तर्कों को नजरअंदाज किया गया,तभी वे उच्च न्यायालय की शरण में जाने को बाध्य हुए। उदयन और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ शासन का केस चला। युवाओं का तर्क सही था, तभी उच्च न्यायालय में उनकी जीत हुई और फिर से 5 सदस्यीय समिति पीएससी को गठित करनी पड़ी। विशेषज्ञ समिति ने भी कई प्रश्नों में युवाओं के तर्क को सही पाया और इसी कारण प्रश्न क्रमांक स्श्वञ्ज-्र-2, स्श्वञ्ज-क्च-88, स्श्वञ्ज-ष्ट-63, स्श्वञ्ज-ष्ठ-42 को विलोपित कर नया मॉडल आंसर जारी करना पड़ा और अब 1 साल बीतने को है, पीएससी 2019 की मुख्य परीक्षा ही आयोजित नहीं हो पाई है। अभी तक तो डेट की भी घोषणा नहीं हुई है।

4. किसी भी परीक्षा के किसी प्रश्न-पत्र में न्यूनतम मानवीय भूल तो हो सकती है। लेकिन असिस्टेंट प्रोफेसर की परीक्षा में पूछा गया था कि तातापानी कहां हैं, मॉडल उत्तर में सूरजपुर लिया गया था। जबकि छत्तीसगढ़ के बच्चे बच्चे को पता है कि तातापानी तो बलरामपुर जिले में है। इस स्तर की बड़ी गलतियां कदापि स्वीकार्य नहीं हो सकती। ऐसे बड़ी गलती करने वाले तथाकथित विशेषज्ञ का नाम सार्वजनिक किया जाना चाहिये और ऐसे तथाकथित विशेषज्ञ को आजीवन ब्लैक लिस्टेड किया जाना चाहिए था।

5. यूपीएससी हर साल विभिन्न परीक्षाओं का कैलेंडर पहले ही जारी कर देती है। इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों के लोक सेवा आयोगों ने भी अपने-अपने कैलेंडर जारी कर दिये हैं। लेकिन हमारे छत्तीसगढ़ के पीएससी ने कोई कैलेंडर ही जारी नहीं किया है।

6. वन विभाग से संबंधित एसीएफ और रेंजर के 178 पदों के विज्ञापन में परीक्षाओं का अता-पता ही नहीं है। कैलेंडर नहीं होने के कारण ही यह सब स्थितियां निर्मित हो रही हैं।

7. अनेक मामलों में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के आरटीआई के अंतर्गत सूचना प्रदान न करने की स्थिति भी निर्मित होती रही है। अनेक सूचनाओं के लिए राज्य सूचना आयोग तक अभ्यर्थियों को जाना पड़ता है। इससे अनेक संदेह की परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं।

इस तरह के बिंदुओं के सामने आने से युवाओं के मन में निराशा आती है। प्रश्न भले ही विलोपित कर दिये जाते हैं। लेकिन विलोपित किए गए गलत प्रश्नों के पीछे परीक्षा हॉल में किस अभ्यर्थी का कितना समय नुकसान हुआ,इसकी गणना कोई नहीं कर सकता ।

कई भर्ती परीक्षायें जब एक बार पूरी हो जाती हैं, तभी शेष बचे वैकेंसी के लिए दूसरी परीक्षा आयोजित होती है। पहली भर्ती परीक्षा में विलम्ब होने से रिक्त पदों के लिए कई युवा अपना अवसर, उम्र बढ़ जाने के कारण खो देते हैं ।

उन्होंने लिखा है कि यह पत्र किसी भी प्रकार के राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप की दृष्टि से मैं नहीं लिख रहा हूं। सरकार किसी भी पार्टी की रहे, भर्ती सदैव सटीक ढंग से चलनी चाहिए। मेरे सीमित अनुभवों के आधार पर कुछ सुझावात्मक बिन्दुओं का जिक्र करना चाहूंगा :

1. सबसे पहले किसी भी हालत में 2014 से चले आ रहे इस श्रेष्ठ परिपाटी को बरकरार रखा जाए कि प्रत्येक संविधान दिवस अर्थात् 26 नवम्बर को पीएससी का विज्ञापन जारी हो जाए। और अगले प्रीलिम्स से पूर्व किसी भी स्थिति में पहले साल की परीक्षा पूर्ण कर ली जाए।

2. 26 नवम्बर को ही आने वाले वर्ष के लिये पूरे साल का कैलेण्डर जारी कर दिया जाए।

3. मानक पुस्तकों और प्रामाणिक शासकीय दस्तावेजों पर आधारित आंकड़ों को प्रश्रय देने की संस्कृति का विकास किया जाये।

4. किसी भी भर्ती परीक्षा के पूर्व,स्तरीय प्रश्न तैयार कराके उनके विकल्पों को परीक्षा पूर्व ही विशेषज्ञों से जाँच करा लिया जाए। ताकि गलतियों की आशंकायें और मानवीय भूल न्यूनतम हो जाएं।

5. देश और दुनिया में चल रहे उच्चतम श्रेणी के विशेषज्ञता युक्त कौशल को पीएससी के साथ जोड़ा जाए। ताकि तातापानी जैसी हास्यास्पद स्थितियाँ उत्पन्न न हों।

6. पारदर्शिता की दृष्टि से उत्तर पुस्तिकाओं की कार्बन कापी प्रदान करना प्रारंभ किया जाए।

7. सूचना प्रदान करने में पीएससी उदासीनता न बरती जाए।

8. आयोग में एक तो त्रुटियाँ कम हों और यदि हों तो आयोग के विशेषज्ञ हठधर्मिता के बजाय संवेदनशीलता से तत्काल निराकरण करें। इससे अभ्यर्थियों को न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और अनावश्यक विलम्ब से बचा जा सकेगा।

9. सबजेक्टिव पेपरों में भी जाँच के लिये मानक निर्धारित करके वस्तुनिष्ठता और समानता लायी जाए। और पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए।

10. मेरी जानकारी के अनुसार अभी हमारे छत्तीसगढ़ में 16 परीक्षा केन्द्र हैं। प्रत्येक जिले में एक अर्थात् 28 परीक्षा केन्द्र की तत्काल घोषणा की जाये। कम से कम प्रीलिम्स परीक्षा की दृष्टि से तो 28 केन्द्र होने ही चाहिए।

मुझे पूरा भरोसा है कि आप इस विषय को पूरी गंभीरता और संवेदनशीलता से लेंगे। छत्तीसगढ़ के युवा भाई-बहनों के दर्द को समझेंगे। तत्काल अपने महत्त्वपूर्ण संवैधानिक पद की शक्तियों का प्रयोग

करते हुए बड़े निर्णय करेंगे। इससे न केवल हमारे छत्तीसगढ़ के युवाओं के बीच हताशा और निराशा फैलने से रूकेगा बल्कि पीएससी जैसी संवैधानिक संस्था के प्रति आशा और विश्वास भी बढ़ेगा।


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