स्मृति जगजीत सिंह "तुम जीता किये सबसे, जग तुमसे हारा"..

लेखक - संजयदुबे

feature-top

शायद गीत हमारे रग रग में भरा हुआ है,धमनियों में दौड़ता है इस कारण गाना भले न आये लेकिन सुनना हमारी जरूरत है। जब फिल्में नहीं थी तब भी गायन था फिल्में आयी तो गायन अनिवार्य तत्व बन गया। फिल्मो में गीत लिखने वाले जानते थे कि कठिन शब्दो से लोग जुड़ नही पाएंगे इस कारण सरल गीत लिखे जाते रहे इन्हें सुगम गीत कहा जाता रहा।अनपढ़ ने भी "चलत मुसाफिर मोह लियो रे पिंजरे वाली मुनिया" गाया गुनगुनाया। हिंदी को अगर विस्तार मिला तो बहुत बड़ा योगदान हिंदी गीतकारों को जाता है।इसके साथ साथ गायकी में एक और विधा समांतर चलती रही ।हिंदी की सगी बहन उर्दू भी रफ्ता रफ्ता चलते चलते रही।

शायरी,गजल, भी गायकी का सगल हुआ करता था लेकिन खालिश उर्दू समझना आम लोगो के दिमाग के बाहर की बात थी। ग़ालिब को हम उर्दू जुबान के पहले नामवर सुखनवर मानते है जिनकी भाषा कठिन नही थी। मुशायरा होते रहे शमा जलती रही ,महफ़िल जमते रही ,। शेर,शायरी रोशन होते रहे। देश से अलग हुए पाकिस्तान के गजलकारों ने बेइंतहा खूबसूरत गजलें अता की लेकिन उर्दू की कम समझ औऱ शब्दो के साथ जुड़े अन्य शब्दो ने इसे आम होने नही दिया। मेहंदी हसन सीमा पार से हमारे जमाने के पहले शायर रहे जिन्हें हमने सुना लेकिन समझ मे कम आते थे।गुलाम अली आये तो समझ बढ़ी लेकिन सही मायने में गजल को सिखाया समझाया तो जगजीत सिंह ने। 18 साल की उमर को वय संधि की उम्र मानी जाती है जहां युवक की जिंदगी में युवतियों के आगमन का भी काल होता है। मैं भी इससे जुदा न था। बस जगजीत के साथ हो लिए। वे कठिन गजलों से परे आसान गजलों के पैरवीकार रहे ।तब के शायरों औऱ उर्दू को नफासत के साथ परोसने वालो ने भृकुटि चढ़ाई थी लेकिन बात निकली तो दूर तलक जाती रही।

 जगजीत,जग जीतने निकले थे,आगे बढ़ते गए। मुझे याद है मेरी उमर 16साल की थी।1976में जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की आवाज़ में पहला लांग प्लेयर (एलपी) रिकार्ड निकला "अनफोरगेटेबल"। 10 गजलों से सजी थी। "बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी","सरकती जाए है रूख से नकाब आहिस्ता आहिस्ता", "बहोत पहले से उन कदमो की आहट जान लेते है" जैसी गजलों से सजी धजी इस आगमन ने देश मे कठिन गजलों के सरलीकरण का आगाज़ था। इस देश के लोगो ने गजले गाई तो आवाज़ में जगजीत थे। हरेक बात पे कहते हो कि तू क्या है तुम्ही कहो कि ये अंदाज जुस्तजू क्या है फरमा कर जगजीत मिर्ज़ा ग़ालिब को आम लोगो तक पंहुचा गए। लता मंगेशकर के साथ सजदा किया तो गम का खजाना तेरा भी है मेरा भी है गा गए। आशा भोसले के साथ "जब सामने तुम आ जाते हो जानिए क्या हो जाता है।" गुनगुनाये। श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपेयी जी की कविताओं को जान दी। गुलज़ार के नज्मो में अपने आवाज़ की खलिश को बढ़ाते गए। 39 गजल संग्रह उनके नाम है मोटा मोटी 390 गजल को जगजीत गाये ।चित्रा उनकी परछाई रही वे पतली आवाज़ की किरदरा थी तो उनके पलट जगजीत दमदार आवाज़ के मालिक थे।

आज इस शख्स का जन्मदिन है।उनके गीतों को होठो से छूकर गीतों को अमर करने का दिन है। जगजीत जी, पता नही आप किस महफ़िल में शुमार है लेकिन आपकी बात निकल रही है औऱ दूर तलक जा रही है


feature-top