दोनों पैर कटने के बाद भी किसान लखन सिंह के जीवन को मिली रफ्तार

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    रायपुर : अंधकार के पीछे हमेशा प्रकाश होता है, जरूरत है हमें हिम्मत से उस तक पहुंचने की। प्रसिद्ध नृत्यांगना और कलाकार सुधा चंद्रन के जीवन की तरह मध्यप्रदेश के ग्राम पंचायत बीजाटोला जिला बालाघाट निवासी किसान लखन सिंह की कहानी भी यही सिखाती है कि जीवन रूकने का नहीं चलने का नाम है। मेहनत से खेती किसानी कर अपना जीवन यापन कर रहे 54 वर्षीय लखन सिंह मेरावी के पैरों में खून का बहाव बंद हो जाने के कारण डॉक्टरों की सलाह से 2007 में उनका दायां पैर और फरवरी 2020 में बायां पैर काटना पड़ा। दोनों पैर कटने के बाद भी लखन सिंह ने हिम्मत नहीं हारी और अब वह पैर कटने के बाद भी चल सकते हैं, वह किसी पर निर्भर न होकर अपना काम खुद करते हैं।

    एक समय था जब दोनों पैर कटने के बाद लखन सिंह जीवन से निराश हो गए थे और उन्होंने जीने की उम्मीद छोड़ दी थी। उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा था और उन्हें परिवार के भरण पोषण की चिंता भी सताने लगी थी। इसी बीच पड़ोसी गांव के परिचित के माध्यम से उन्हें छत्तीसगढ़ रायपुर के माना स्थित समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेन्टर (पीआरआरसी) के बारे में जानकारी मिली। परिचित ने पीआरआरसी से कृत्रिम पैर बनवाया था। परिचित ने बताया कि पीआरआरसी में आवश्यकतानुसार कृत्रिम हाथ, पैर, व्हीलचेयर, सीपी चेयर के अतिरिक्त सहायक उपकरण भी निःशुल्क उपलब्ध कराए जाते हैं। परिचित से मिली जानकारी से लखन सिंह के मन में भी जीवन के प्रति उम्मीद की किरण जागी।

    श्री लखन सिंह रायपुर के रिहैबिलिटेशन सेंटर पहुंचे। यहां उन्हें रिहैबिलिटेशन टीम द्वारा निःशुल्क कृत्रिम पैर बनाकर दिया गया। इसके साथ ही टीम द्वारा एक सप्ताह तक कृत्रिम पैरों से चलने और संतुलन बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। बिना सहारे खुद से चल पाने के कारण श्री लखन सिंह बहुत खुश हैं। उन्होंने बताया कि पैर लगने के बाद उनमें फिर से जीवन जीने की आस जागी है। अब वह खेती-किसानी के कामों में अपने बेटे का हाथ बटाने लगेे हैं। इसके साथ ही वह दुकान खोलकर व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं। जिससे वह अच्छी तरह अपनी बेटियों का विवाह कर सकें। उन्होंने बताया कि एक पैर कटने के बाद वह जयपुर पैर लगाते थे,लेकिन उसमें थोड़ी परेशानी होती थी। पीआरआरसी में लगे पैर से वह आराम से चल पा रहे हैं। अच्छी तरह चलने की ट्रेनिंग देने के लिए उन्होंने रिहेबिलीटेशन टीम की तारीफ की है। इसके साथ ही निःशुल्क कृत्रिम पैरों के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को धन्यवाद दिया है।

     वर्कशॉप मैनेजर शरद पाण्डे ने बताया कि लखन सिंह की तरह छत्तीसगढ़ के फिसिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेन्टर (पीआरआरसी) ने हजारों लोगों के जीवन को रफ्तार दी है। अब तक यहां 2 हजार 708 मरीजों को 3 हजार 920 कृत्रिम अंगों और सहायक उपकरणों से लाभान्वित किया जा चुका है। अब दूसरे प्रदेशों से भी लोग कृत्रिम अंग बनवाने आने लगे हैं। यह पुनर्वास केन्द्र इंटरनेशनल कमिटी ऑफ रेडक्रॉस (आईसीआरसी) के सहयोग से दिव्यांगों को निःशुल्क कृत्रिम अंग बनाकर देने के साथ उन्हें अंग संचालन और संतुलन की ट्रेनिंग भी देता है। सेरिब्रल पाल्सी (प्रमस्तिष्क घात) से पीड़ित सहित ऐसे मरीज जिनमें संतुलन की कमी होती है, उन्हें निःशुल्क व्हील चेयर और सिटिंग चेयर तैयार करके दी जाती है, जिससे मरीज को खाना-खाने, पढ़ने, बैठने में आसानी हो सके। यहां कृत्रिम अंगों के माध्यम से फिर से अपने पैरों पर चलते, हांथों को उठाते, अपने बेजान हिस्सों में गति आते देखकर हजारों चेहरे मुस्कान से खिल जाते हैं। यह केन्द्र कृत्रिम अंगों के साथ लोगों में जीवन जीने की एक नई आशा भी भर देता हैं।


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