सुनील मन को हरने वाले मनोहर गावस्कर

लेखक : संजय दुबे

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 1971 का साल देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी की जगह क्रिकेट को लेने के लिए याद किया जा सकता है क्योंकि देश तो 1932 से क्रिकेट खेल रहा था लेकिन ध्यानचंद के रहते तक देश जब ओलंपिक खेलों में गोल्ड मैडल की कतार लगाए हुए था तब कोई सोच भी कैसे सकता था? 1971 के पहले देशहमारा देश विदेश में हारने या ड्रा कराने जाता था। 1971 के वेस्टइंडीज दौरे में अजित वाडेकर की टीम में 21 साल का एक ओपनर बैट्समैन भी शामिल हुआ था नाटा था कद में, पहला टेस्ट खेल नही सका लेकिन दुसरे टेस्ट से लेकर पांचवे टेस्ट के खत्म होने की स्थिति आयी तो भारत के लोग हॉकी से क्रिकेट प्रेमी बनने के ट्रांसफॉर्मेशन के दौर में आना शुरू कर चुके थे। भारत देश मे क्रिकेट को अगर आम भारतीयों के नस नस मे बहाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो इस लिटिल मास्टर को जाता है जिसे सारी दुनियां सुनील मनोहर गावस्कर या सनी गावस्कर के नाम जानती है।

भारतीय क्रिकेट के भीष्म के रूप में सुनील उभरे थे। 4 टेस्ट में 774 रन बनाकर वे दुनियां को बता चुके थे कि कैलिप्सो की धुन पर वेस्टइंडीज के सबसे तेज़ गेंदबाज़ों को नचाने के बाद दुनियां के सर्वश्रेष्ठ तेज़ गेंदबाज़ों के सामने एक ऐसा महारथी खड़ा हो रहा है जो तकनीक के नाम पर परफेक्ट से कही ज्यादा भरपूर है। 1971 से लेकर 1986 तक के 15 साल के काल मे सुनील गावस्कर दुनियां भर के क्रिकेट स्टेडियम में भारत का पताका लिए घूमते रहे। अपने पहले ही टेस्ट सीरीज में उन्होंने 51 साल पहले वेस्टइंडीज के बल्लेबाज जार्ज हेडली द्वारा बनाये4 टेस्ट में 703 के रिकार्ड को तोड़ने के बाद डॉन ब्रेडमैन जिनके नाम सर्वाधिक 29 शतक का रिकार्ड था उसे ध्वस्त करने के लिए दुनियां के सर्वश्रेष्ठ तेज़ गेंदबाज़ों की लाइन लेंथ बिगाड़ते रहे। अंततः जब सुनील गावस्कर ने क्रिकेट को राम राम कहा तो वे आने वाले महारथियों के लिए 34 शतक का रिकार्ड बना चुके थे, ये भी एक संयोग रहा कि सुनील का ये रिकॉर्ड तोड़ा भी तो किसी भारतीय बल्लेबाज ने।सचिन तेंदुलकर ने 2005 मे 35 वा शतक लगाकर दूसरे लिटिल मास्टर बने। सुनील गावस्कर दुनियां के पहले बल्लेबाज़ बने थे जिन्होंने क्रिकेट में 5 अंकों के प्रथम अंक 10000 को छुआ था। जब उनसे पूछा गया कि क्या अन्य कोई इस अंक तक पहुचेगा? उनका जवाब था क्रिकेट में रिकॉर्ड बनते ही टूटने के लिए है 

सुनील गावस्कर के आने से पहले भारत की क्रिकेट टीम को आधे बल्लेबाज़ों की टीम कहा जाता था लेकिन 1971 में वेस्टइंडीज को उनके ही सरजमीं पर हराया गया तो डेढ़ बल्लेबाज़ों की टीम बनी,इसी डेढ़ बल्लेबाज़ों की टीम ने इंग्लैंड को इंग्लैंड में हरा दिया था। इन दो जीत के हक़दार अकेले सुनील गावस्कर ही थे।1983 के एकदिवसीय विश्वकप स्पर्धा में जिस जिस मैच में सुनील खेले जिसमे सेमीफाइनल और फाइनल भी शामिल है भारत विजेता बना।1986 में ऑस्ट्रेलिया मे बेसन एंड हेज़ेज़ कप जीते तो सुनील गावस्कर कप्तान थे। सुनील गावस्कर 1971 से 2021 तक क्रिकेट से पहले 15 साल प्रत्यक्ष रूप से मैदान के भीतर रहे तो बाकी 35 साल अप्रत्यक्ष रूप से प्रबंधन कमेंट्री, में सक्रिय है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल उनसे तकनीकी जानकारी हमेशा लेती रहती है आखिरकार वे अपने बाल्य काल से स्ट्रेट ड्राइव के महारथी जो ठहरे

 


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