मस्त बहारों का ये आशिक़

लेखक: संजय दुबे

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  अगर मैं कहूं कि मेरा बचपन जिन फिल्मसितारो के साथ किशोरावस्था, युवावस्था  गुजरा तो उनमें एक कलाकार जितेंद्र भी है। फिल्म इंडस्ट्री में एक कतार स्थापित नंबर 1 सितारों की रही है जो अपने अभिनय क्षमता के दम पर स्थापित रहे है। जितेंद्र के समय मे राजेश खन्ना,अमिताभ बच्चन जैसे अतिप्रतिभावान सितारे थे जिनके लिए बड़े बड़े निर्माता निदेशक थे,लेकिन जिस देश मे अस्सी करोड़ दर्शक हो और अनेकता की भरमार हो तो ऐसे कलाकारों की जरूरत भी रही जो मसाला फिल्मो के नायक रहे।इस मसाला संस्कृति फिल्मो से राजेश खन्ना औऱ अमिताभ भी नही बच सके थे।खैर बात तो उस कलाकार की है जिसने देश के लोगो को डांस का सही अर्थ समझाया, सालो तक जस का तस दिखने के लिए उपाय समझाया,औऱ सबसे बड़ी बात अपनी बेटी को अपने पैर में खड़े होने का साहस दिया। आज देश विदेश में बालाजी टेली फिल्म प्रोडक्शन , मनोरंजन का बहुत बड़ा हाउस है। एकता,जितेंद्र की बेटी है जो किसी समय मे मंडी हाउस दिल्ली में जमे दलालों के प्रभुत्व के बीच अपनी जगह बनाई थी वो भी 18 साल की उम्र में। जब टेलीविजन में निजी चैनल्स की भरमार हुई तो ये बेटी एक नंबर की सिरियल निर्माणकर्ता बन चुकी थी।"कहानी घर घर की" एक नाटकीयता ही सही लेकिन सच  थी। "क्योंकि सास  भी कभी बहु थी" सच ही तो था। बेटियां आसमान छूना  चाहती है तो मुझे लगता है कि हर पिता में एक जितेंद्र होना चाहिए।
 जितेंद्र, को जम्पिंग जैक कहा जाता था क्योंकि वे नाचते समय अपने स्टेप में नृत्य के व्यायाम को भी जुड़वा लेते थे।ठुमके वे नायिकाओं से बेहतर लगा लेते थे।  जब तक वे नाच  कर फिल्म चला सकते थे तब तक नाचे, जब लगा कि आंसू बहाव सामाजिक फिल्मो से काम चल जाएगा तब तक वैसी भी फिल्मो में काम किया। जब प्रयोगवादी फिल्मो में काम करना चाहा तो गुलज़ार  का पजामा कुर्ता,चश्मा,मूछ उधार लेकर परिचय,किनारा जैसी फिल्मों में आ गए। उम्र ने उनको बड़ा किया तो दक्षिण की फिल्मो का हिन्दीकरण कर श्रीदेवी, जया प्रदा के साथ साथ कादर खान,शक्ति कपूर की जोड़ी  बना कर "हिम्मतवाला" बने।  गुलजार की मूछ को पतली सी मूछो में बदल कर जितेंद्र मसाला फिल्मो के नए किरदार बन गए।  वे बहुत उम्र तक जवान रहे,फिट रहे, वे जानते थे कि मीठा औऱ मोटापा  सगे संबंधी है इस कारण वे मीठे से  सफलतापूर्वक बचते रहे। बाला जी पर उनका विश्वास अटल  है,अपने हर काम को वे ईश्वर को सौप देते है, जो मिला उसे प्रसाद मान लेते  है
आज जितेन्द्र  78 के हो रहे है।उनको आज चुस्त दुरुस्त,जवान दिखने की आदत है सो कृत्रिम जवानी उनके साथ है।
 वे आज भी मस्त बहारों के आशिक़ है
धन्यवाद, जितेंद  जन्मदिन  में एक बंजारा गाता है, जीवन के गीत सुनाता है।
 


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