जागरूक हो रहे लोग, दाह संस्कार में हो रहा गौ काष्ठ का उपयोग

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कोरोना सहित अन्य बीमारियों की वजह से इन दिनों होने वाली मौतों के बाद होने वाले दाह संस्कार में गोबर से बने गौ काष्ठ और कण्डे का भी उपयोग कर बहुत से लोग अपनी जागरूकता का परिचय दे रहे हैं। दाह संस्कार में गौ काष्ठ का उपयोग बढ़ने से इसके उत्पादन में लगी महिला स्व-सहायता समूहों को फायदा होगा, वहीं सबसे बड़ा फायदा यह भी होगा कि गौ-काष्ठ का उपयोग दाह संस्कार में होने से लाखों पेड़ों की कटाई रूकेगी। नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ शिवकुमार डहरिया ने सभी नगरीय निकायों के अंतर्गत आने वाले दाह संस्कार/मुक्तिधाम स्थल पर गोठानों में निर्मित होने वाले गौ काष्ठ का उपयोग लकड़ी के स्थान पर दाह संस्कार के लिए करने की अपील लगातार कर रहे हैं, साथ ही उन्होंने मुक्तिधाम सहित महत्वपूर्ण स्थानों पर गौ-काष्ठ की बिक्री रियायती दर पर उपलब्ध कराने के निर्देश भी अफसरों को दिया हुआ है। मंत्री डॉ. डहरिया की दूरगामी सोच का ही परिणाम है कि होलिका के बाद अब शव को जलाने में लकड़ी की अपेक्षा गौ-काष्ठ का उपयोग किया जाने लगा है।इको-फ्रेण्डली दाह संस्कार से पर्यावरण का संरक्षण और स्वच्छ तथा प्रदूषण मुक्त शहर की संकल्पना भी साकार हो रहा है।

 

115 स्थानों पर लगी है गौ काष्ठ मशीन

                प्रदेश के लगभग सभी जिलों में इस समय गोठान संचालित किए जा रहे हैं। जिसमें से 166 नगरीय निकाय क्षेत्रों में 322 गोठान संचालित है। इन गोठानों में जैविक खाद के अलावा गोबर के अनेक उत्पाद बनाए जा रहे हैं। गोठानों में गौ-काष्ठ और कण्डे भी बनाए जा रहे हैं। कुल 142 स्थानों में गोबर से गौ काष्ठ बनाने मशीनें भी स्वीकृत की जा चुकी है और 115 स्थानों में यह मशीन काम भी करने लगी है। निकायों के अंतर्गत गोठानों के माध्यम से गोबर का उपयोग गौ काष्ठ बनाने में किया जा रहा है। लगभग 7113 क्विंटल गौ काष्ठ विक्रय के लिए तैयार किया गया है। सूखे गोबर से निर्मित गौ-काष्ठ एक प्रकार से गोबर की बनी लकड़ी है। इसका आकार एक से दो फीट तक लकड़ीनुमा रखा जा रहा है। गौ-काष्ठ एक प्रकार से कण्डे का वैल्यू संस्करण है।

 

वैकल्पिक ईंधन का बन रहा स्रोत

 गोठानों के गोबर का बहुउपयोग होने से जहां वैकल्पिक ईंधन का नया स्रोत विकसित हो रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में रोजगार के नए अवसर भी खुलने लगे हैं। स्व-सहायता समूह की महिलाएं आत्मनिर्भर की राह में कदम बढ़ा रही है। कुछ माह पहले ही सरगुजा जिले के अंबिकापुर में प्रदेश का पहला गोधन एम्पोरियम भी खुला है, जहां गोबर के उत्पादों की श्रृखंला है। प्रदेश के अन्य जिलों में भी गौ काष्ठ और गोबर के उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है। दीपावली में गोबर के दीये, गमले, सजावटी सामान की मांग रहती है। गौ काष्ठ का उपयोग इको फ्रेण्डली ईट बनाने की दिशा में भी करने अनुसंधान चल रहा है।  

  

 

एक दाह संस्कार में 20-20 साल के दो पेड़ों की रूकेगी कटाई

एक जानकारी के अनुसार एक दाह संस्कार में 500 किलो तक लकड़ी की जलाई जाती है। यह 500 किलो लकड़ी 20-20 साल के दो पेड़ों से निकलता है। एक दाह संस्कार के पीछे लगभग दो पेड़ों की कटाई को बढ़ावा मिल रहा है। इसके साथ ही हम पेड़ों की कटाई को बढ़ावा देकर अपने पर्यावरण को भी नुकसान पहुचा रहे हैं। पेड़ के संबंध में मानना है कि एक वृक्ष से 5 लाख का आक्सीजन, 5 लाख के औषधि, 5 लाख का मृदा संरक्षण, 50 हजार पक्षियों के बैठने की व्यवस्था, कीडे़-मकोड़े, मधुमक्खी के छत्ते से वातावरण का अनुकूलन बना होता है। ये पराबैंगनी विकिरण के खतरे से भी बचाते हैं। वृक्ष अपने जीवन में 7 से 11 टन ऑक्सीजन छोड़ता है और 12 टन तक कॉर्बन डाइ आक्साइड ग्रहण करता है। यदि दाह संस्कार में लकड़ी की जगह गोबर के बने गौ काष्ठ और कण्डे का इस्तेमाल करेंगे तो इसके अनेक फायदे भी होंगे। एक दाह संस्कार में लगभग 300 किलो गौ काष्ठ लगेंगे जिससे खर्चा भी बचेगा। गौ काष्ठ के जलने से प्रदूषण भी नहीं फैलेगा और गाय की महत्ता बढ़ने के साथ रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे। पेड़ों की कटाई रूक जाएगी। पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलने के साथ स्वच्छ हवा में सांस ले पाएंगे। 

 

गौ काष्ठ से कराते हैं दाह से संस्कार

रायपुर निगम क्षेत्र में गौ-काष्ठ और कण्डे से अनेक दाह संस्कार करा चुके एक पहल सेवा समिति के उपाध्यक्ष श्री रितेश अग्रवाल कोरोनाकाल में लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उनका कहना है कि अब लोग जागरूक हो रहे हैं। होलिका दहन में भी 40 से 50 स्थानों गौ-काष्ठ का उपयोग किया गया। चूंंकि अभी कोरोनाकाल में मौत के साथ दाह संस्कार की संख्या बढ़ी है , ऐसे में रायपुर में अनेक दाह संस्कारों में गौ-काष्ठ और कण्डे का उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि गौ-काष्ठ से दाह संस्कार पेड़ों को कटने से बचाने के साथ रोजगार के नए अवसर और स्वावलंबन को भी बढ़ावा मिलता है। इसलिए लोगों को लकड़ी के स्थान पर गोठानों में बनने वाले गौ-काष्ठ का ही इस्तेमाल ईंधन के नए विकल्प के रूप में करना चाहिए। उन्होंने बताया कि वे स्वयं और उनकी समिति के सदस्य गौ काष्ठ से दाह संस्कार कराने और इसका फायदा लोगों को बताते हैं। यह लकड़ी की अपेक्षा कम खर्चीला भी है और इससे प्रदूषण भी नहीं फैलता है।


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