क्या हमें विनम्र अपील करना चाहिए?

लेखक: संजय दुबे

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 छत्तीसगढ़ राज्य के 20 जिलों में लॉकडाऊन लगा हुआ है वजह है कि कोरोना संक्रमण नियंत्रण से बाहर हो रहा है। संक्रमित लोगो की संख्या जिलों के अस्पतालों  में उपलब्ध बिस्तरों, ऑक्सीजन , वेंटिलेटर संख्या से कही ज्यादा है। गम्भीर रूप से संक्रमित मरीजों को अनिवार्य  चिकित्सा एवम जीवनरक्षक इंजेक्शन मिलने में कठनाई हो रही है। देखा जाए तो  मानवीयता ही खतरे में है। ऐसे में लगातार ऐसी खबरें आ रही है कि अवसरपरस्त लोग इतनी कठिन परिस्थिति में भी अपने जमीर को बेचने में कोई कोताही नही बरत रहे है। अस्पतालों के बेड सरकारी वेबसाइट पर खाली दिखते है लेकिन जाने पर भरे दिखाए जाते है। भाव ताव करने पर सुविधा मुहैया हो जा रही है।ऐसी ही स्थिति ऑक्सीजन, वेंटिलेटर को भी लेकर है। रेमेडेसिवर इंजेक्शन जो इस संक्रमण बीमारी में तेज बुखार को नियंत्रित रखने के लिए रामबाण है उसकी अनुपलब्धता चिंताजनक है। एक मरीज को 5 इंजेक्शन लगाने की अनिवार्यता है। बाजार में विभिन्न कंपनियों के इस प्रकार का इंजेक्शन 500 रु से लेकर 1000 रु का है लेकिन समाचार जो मिल रहे है उसमें इसका मूल्य 8000 से 15000 रु तक एक इंजेक्शन मिलने की सूचना  है। इस हिसाब से 4500 या 5000 रु का एक वायल 40000 रु से 75000 रु का पड़ रहा है। जो लोग अर्थ से सामर्थ्य रखते है उनकी जान महंगी होगी सो वे दांव लगा सकते है लेकिन मध्यम और निचले तबके ले लिए तो सिवाय मरने के अलावा कोई विकल्प शेष नही बचता है। ये भी जानकारी मिल रही है कि अस्पतालों को सरकार मरीजों की संख्या के हिसाब से इंजेक्शन उपलब्ध कराया जा रहा है उसके बावजूद मरीजों को इंजेक्शन लाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। ऐसा होने से अस्पताल को मिले इंजेक्शन की कालाबाज़ारी हो रही है। ये अत्यंत ही चिन्ताजनक स्थिति है। क्या जिंदा व्यक्ति को लाश में बदलने के लिए भी सौदेबाज़ी हो सकती है? अगर चिकित्सक या चिकित्सा सेवा से जुड़े दवाई विक्रेता भी ऐसी सौदेबाज़ी कर रहे है तो देवताओं का नही बल्कि दानवों का कार्य है। पिछली बार जब कोरोना की पहली लहर चली थी तो लोगो ने डॉक्टरो के  सेवाओ को ईश्वरीय कार्य में कर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाए थे ।आखिर एक साल में ऐसा कैसे ह्रदय परिवर्तन हो गया है कि स्वयं ईश्वर ही नफा  के लिए  व्यवसाई हो  गया है।जमाखोर हो गया है , मुनाफाखोर हो गया है,हरामखोर हो गई है।ये देश  आशीर्वाद -श्राप का देश है जिसमे अच्छा काम करने पर आशीर्वाद देने और गलत काम करने पर श्राप भी देने का काम है और उसका परिणाम भी है सो वे लोग जो ऐसे गलत काम कर मानवीय संवेदनाओं को तार तार कर रहे है वे ये भी जाने की ये संक्रमण उनके घर मे भी उनके परिवार के सदस्य को हो सकता है इसलिये हम विनम्र अपील ही कर सकते है कि कठिन दौर में जो लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चिकित्सा सेवा से जुड़े है वे इंसान ही रहे राक्षस न बने।
 


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