जाना नरेंद्र कोहली का...

लेखक - संजय दुबे

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अब के जमाने मे हिंदी लेखन उतना ही कठिन होते जा रहा है जितना पढ़ना क्योकि पढ़ने वाले पाठक की पठन भाषा युग के साथ बदल गयी है । क्रॉस वर्ल्ड नाम की किताब दुकानें आपके शहर अगर हो( मध्यम आबादी के नगरों में तो मुनासिब नही है) तो हिंदी में लिखी किताबे एक कोने में उंगलियों में गिनने लायक होती है, खैर ऐसे में अब अनुवाद ही जरिया बचा है हिंदी के लब्धप्रतिष्ठित लेखकों को याद रखे जाने का। मैं फिलहाल इस पचड़े में नही पड़ना चाहता क्योकि मैं अपने युग मे बड़ा हुआ हूं तो मुझे मेरे काल के लोगो से ज्यादा वास्ता है। ऐसा ही वास्ता नरेंद्र कोहली जी से भी था। यद्यपि मैंने कोहली जी को उतना नहीं पढ़ा है जितना उनको पढ़ना शेष है फिर भी पूत के पावँ पलने औऱ लेखक के हाथ उसके शैली, संरचना,और भाषाई अधिकार के साथ साथ विषय पर पकड़ से दिख जाता है।

रामायण और महाभारत हमारे देश के दो ऐसे धर्म ग्रंथ है जिनके माध्यम से हम देश दुनियां के किसी भी भाषा के नोबल पुरस्कार विजेता लेखकों के पूर्ववर्ती शेक्सपियर, टॉलस्टॉय को जमीन सुंघाने की ताकत रखते है।प्रेमचंद अकेले ही सब पर भारी पड़ते है लेकिन विदेशी महिलाओं के प्रति आशक्ति के समान ही परभाषा के प्रति लोभ ने देश के हिंदी साहित्य का बेड़ा गर्ग कर दिया।

बात विषयांतर हो गयी,माफ करे। मैं फिर से नरेंद्र कोहली पर वापस आता हूं। हजारी प्रसाद द्विवेदी के बाद नरेंद्र कोहली ही उपन्यास विधा के बड़े हस्ताक्षर हुए। 4000 पृष्ठ की "महासमर"महाभारत के अनेक अनछुए विषयो को छूते चलती है। हमने महाभारत को उतना ही जाना है जितना रवि चोपड़ा ने दिखाया या आगे चलकर स्टार प्लस ने बताया। जीवन के यथार्थ को जानने के लिए व्यक्ति के भीतर चलते महाभारत युद्ध के साथ साथ पात्रों के रूप में जीने की बेबसी को समझने के लिए मेरा सुझाव है कि महासमर को पढ़े। नरेन्द्र कोहली ने न केवल महाभारत बल्कि इसके पात्रों को भी प्रश्नचिन्ह पर लाकर उत्तर खोजने की भी सफल कोशिश की है जिसके लिए ये देश उनके प्रति कृतज्ञ रहेगा।

"रामकथा" भी नरेंद्र कोहली की सशक्त हस्ताक्षर है। राम को मर्यादित जीवन जीने के लिए जाना जाता है लेकिन नरेंद्र कोहली के राम आज के परिवेश में गुत्थियों को सुलझाने वाले है जो समाज के समस्या और समाधान को समक्ष रखते है। नरेंद्र कोहली ने भक्तिकाल के राम को आधुनिक राम के रूप में प्रतिष्ठित करने का बड़ा काम किया है। 35 साल का उनकी लेखन यात्रा में उनकी रचनात्मकता को चंद शब्दो मे लिखना संभव नहीं है।कल वे महाप्रयाण कर गए।अपने बीच से अपनो का जाना दुख बढ़ाता है , विन्रम श्रद्धांजलि


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