शर्म आती है मगर आपसे कहना होगा

लेखक : संजय दुबे

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रायपुर,18 मार्च 2020 दुनियां में कोरोना का संक्रमण बढ़ते जा रहा था।चीन का वुहान शहर केंद्र बिंदु था। देश दहशत के दौर में आ रहा था। मास्क, जो केवल ऑपरेशन थियेटर की अनिवार्यता थी वह सामान्य मांग में शामिल होने लगा था। दोपहर 2 बजे रायपुर में पहला कोरोना पॉजिटिव मरीज मिला था। बहदवासी ऐसी बढ़ी मानो शहर के हवा में कोरोना घुल गयी हो।पूरा शहर भाग रहा था घर की तरफ, चंद घंटे में सन्नाटा पसर चुका था। शहर के एक रिहायसी एरिये में पूरा प्रशासन उतर चुका था। चीखते एम्बुलेंस में राज्य के पहले कोरोना संक्रमित को एम्स पहुँचाया गया था।

फेसबुक ,व्हाट्सएप में इसकी खबरे चली,राजनीति हुई, महज 5 दिन बाद देश मे थाली बज चुकी थी।सारा देश थम गया था क्योंकि अनजान बीमारी के निदान के लिए कोई योजना नही थी। साल गुजर गया, अच्छी खबर आई कि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला टीका आ गया है। आबादी औऱ उपलब्धता के बीच ऊंट के मुँह में जीरा जैसी सुविधा थी। जो लोग जान माल बचाने में अग्रणी रहे वे प्रथम पंक्ति में थे,होना भी चाहिए था। देश के लापरवाह राजनीतिज्ञों सहित नागरिकों ने मान लिया कि कोरोना हार गया हम जीत गए। सरकारी गैर सरकारी, निजी आयोजनों के भरमार हो गयी। पिछले साल मजहबी तौर पर बीमारी फैलाने वालों को कुम्भ के आयोजन पर कोई साजिश नही दिखी, सरकारे आपके द्वार पहुँचने लगी मजमा लगाकर वार्डो में, सड़क सुरक्षा के नाम पर क्रिकेट के भगवान शहर पधार गए।

उनको देखने 40 हज़ार लोग अवतरित हुए, कोरोना लेकर आये थे,कोरोना देकर चले गए,क्रिकेट के भगवान भी लपेटे में आ गए तो तुहर द्वार के घर पहुँची सरकार का ये हश्र तो होना था। रही सही उदंडता देश के राजनीति प्रमुख और घरेलू मंत्री ने सरेआम दिखा दी। समरथ को दोष नही गोसाई। रैली का रैला चलता रहा, कोरोना का कारवां देश मे लाखो लोगो के फेफड़े में संक्रमण कर चुका है। रेमेडेसिवर का इंजेक्शन अपर्याप्त है,ऑक्सीजन सिलेंडर कम है,अस्पतालों में बेड कम है, बस मरीज ज्यादा है तो क्या करे? भाइयो और बहनों माइक्रो कंटेन्मेंट एरिया बनाइये,पड़ोस वाले कि मदद करिये। साहबान, जरा बताएंगे लॉक डाउन में घर से बाहर कैसे निकले,बन्द संस्थानों में सामान कैसे खोजे, ऑक्सीजन सिलेन्डर मिल भी जाये तो किसमे रख कर लाये?

आप लोगो की असक्षमता,आप लोगो की अदूरदर्शिता, आप लोगो के द्वारा मौके की नजाकत को न समझना,आप लोगो की योजना न बना पाने की भूल को देश के ज्यादातर वो लोग भुगत रहे है जिनके पास अपनी छोटी सी दुनियां है, साधारण ज़ जीवन है,कम अपेक्षा है,ज्यादा शिकायत नही है। ऐसे लोगो से आप कौसों दूर है देश के किसी भी हिस्से में भी रहकर। ये लोग कुछ नही कर सकते सिवाय मरने के औऱ इससे पहले आपको लानत भेजने के।


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