खूबसूरत प्रधानमंत्री...
लेखक: संजय दुबे
राजीव गांधी को इस दुनियां से रुखसत हुए तीस साल का समय गुजर गया। वक़्त जब पंख लगाकर अपनी चाल, जिसे व्यवस्थित गति का आधार माना जाता है चलता है तो वह कैसे पल,क्षण,पहर,रात ,दिन, सप्ताह,महीने और साल के युग्म के रूप में बदल जाता है ,पता ही नही चलता। वो जमाना जिस दौर में राजीव गांधी की क्रूरता पूर्वक सुनियोजित ढंग से हत्या को अंजाम दिया गया था, वो दौर दूरदर्शन के शहरीकरण का दौर था।खरसिया (रायगढ़) में दूरदर्शन की सुविधा नहीं पहुँची थी।21 मई के सुबह सुबह 5 बजे किसी राष्ट्रीय नेता के बम विस्फोट में मृत्यु की आधी अधूरी जानकारी मिली तो आकाशवाणी के सुबह 6 बजे के समाचार में दुखद पुष्ट जानकारी मिली कि पेरंदूर में श्रीलंकाई आतंकवादी संघठन लिट्टे ने राजीव गांधी की मनावबम के माध्यम से हत्या कर दी है। ये खबर एक परिवार के मुखिया के जाने के रूप में दर्दनाक तो थी ही ,भावी प्रधानमंत्री के भी जाने के कारण पीड़ादायक थी क्योकि 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में वापस आयी थी।
राजीव गांधी, देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र होने के बावजूद आज के नेताओ के अहंकारी पुत्रो के समान न होकर अत्यंत ही शिष्ट और अपने काम से काम रखनेवाले व्यक्ति थे। इंडियन एयर लाइन्स के पायलट रहे थे ,आसमान उनकी पसंदगी का दायरा था। वे रायपुर भी आया करते थे विमान उड़ाकर।1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन्हें नये रनवे पर अपने को स्थापित करने की जिम्मेदारी मिली। राजनीति , शायद उनकी पसंदगी नहीं थी लेकिन उन्हें इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ गयी। वे देश के साथ दुनियां के तत्समय के राष्ट्राध्यक्षों में कम उम्र के प्रधानमंत्री थे,बेहद ही खूबसूरत, यथा नाम तथा गुण।वे राजनीति के चालाकी से दूर थे और जिम्मेदारी बहुत बड़ी थी सो उनके सलाहकारों ने जैसा समझाया वे उस समझ से ज्यादा बाहर निकलने की कोशिश नही किया जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। उनके ही खास सहयोगियों ने उनका दामन छोड़ा,महज पांच साल में 405 सीट जीतने वाली पार्टी को महज 5 साल में बहुमत से वंचित होना पड़ा।
इस गलती के बाद राजीव गांधी के राजनैतिक सुधार का दौर चला। वे स्थापित हो रहे थे, जिस कुशाग्रता की जरूरत राजनीति में होती है वे उससे वाकिफ होते जा रहे थे। उन्हें पता नही किसने सलाह दिया था कि लोकप्रियता के लिए भीड़ में जाने से सफलता मिलती है वह भी सुरक्षा व्यवस्था को अनदेखा कर के।उन्हें सलाह भी दी गयी थी के वे खतरे में पड़ रहे है लेकिन ये लापरवाही उनके लिए जानलेवा साबित हुई। एक संभावना का अंत विस्फोट से हो गया। वे मन से ईमानदार व्यक्ति थे प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होने के बाद उन्होंने स्वीकार किया था केंद्र से भेजा जाने वाले 1 रुपये हितग्राही तक पहुँचते पहुँचते 15 पैसा हो जाता है।
राजीव गांधी,रेबेन के सनग्लास के साथ आकर्षक से अतिआकर्षक हो जाते थे,मुस्कान ऐसी की आप उन्हें देखते तो देखते रह जाते। मैने भी उन्हें दो बार देखा है तो अपलक देखते रह गया था। उन्हें देश मे कम्प्यूटर युग के आधारशिला रखने वाले प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जा सकता है
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