बाबा रामदेव के बहाने

लेखक - संजय दुबे

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इस बात में कोई दो मत नहीं है कि हिंदुस्तान में आज से लगभग 20 साल पहले आम लोगो को योग का महत्व सिखाने काd काम बाबा रामदेव ने ईमानदारी से किया था। उनके पहले योग जटिल और अभिजात्य वर्ग के लिए ही सुरक्षित मानी जाती रही थी। शिल्पा शेट्टी योग क्षेत्र में बड़ा नाम थी लेकिन वे सार्वजनिक नही थी।उनका वीडियो तब मायने रखता था लेकिन पर्दे से अच्छाई सीखना इस देश के लोगो का शगल नही है अन्यथा हर फिल्म के अंत मे बुराई पर अच्छाई की जीत देखते हम लोगो को 90 साल तो हो रहे है। बाबा ने देश के लोगो को सुबह उठने का सबसे बड़ा काम करवाया। आज बाग बगीचे,सार्वजनिक स्थानों पर लोग योग अभ्यास करते दिखते है। ऐसा नही था कि बाबा के योग अभ्यास के शिविर से पहले लोग उठते नही थे, पर बड़ी संख्या में लोगो ने सामूहिक रूप से योग को एक जुटता के साथ करना शुरू किया तो येबाबा रामदेव का इकलौता सफल प्रयास था/है। आज देश दुनियां में भारत के योग ,आर्युवेद का डंका बज रहा है तो इसका श्रेय आपको बाबा रामदेव को देना होगा। दुनियां अंतराष्ट्रीय योग दिवस मना रही है तो ये भी बाबा रामदेव के खाते में जाता है। योग , भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है जिसके माध्यम से न केवल शरीर को फुर्तीला बनाया जा सकता है बल्कि मानसिक रूप से अनेक व्याधियों से निजात पाई जा सकती है। बाबा रामदेव ने योग को तो प्रतिष्ठित किया साथ ही आर्युवेद को भी प्रतिस्थापित भी किया। इस देश मे चरक, धवन्तरि जैसे आर्युवेदाचार्य ने वन संपदा से अनेक बीमारियों का बिना अतिरिक्त नुकसान के ठीक करने का काम किया। आज भी देश के करोड़ो लोग आर्युवेद पर भरोसा करते है। उनका मानना है कि कृतिम रूप से बनाई गई एलोपैथिक दवाइयों के साइड इफ़ेक्ट बहुत है। ये बात सच भी है ।इस बात को फायदे के रूप में बाबा रामदेव ने व्यवसायिक रूप से अपनाया औऱ लोगो मे विश्वास भी जगाया। बाबा रामदेव ने भारतीय परंपरा से जुड़ी रोजमर्रा के वस्तुओं के उत्पादन में ईमानदारी से मिलावट के बिना वस्तु की उपलब्धता का भी बड़ा काम किया है जिसके चलते विदेशी कम्पनियो को उनकी कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। इस कारण के चलते अनेकानेक बार बाबा राम देव की पंतजलि कम्पनी की साख को तोड़ने के प्रयास होते रहे है, अनेक बार उनकी कम्पनी से भी गलती हुई जैसी गलती अन्य से भी होती है लेकिन विदेशी वस्तुओं के मामले हम बीमार मानसिकता के लोग है। विदेशी लोग आज़ादी के पहले भी हमे गोरी चमड़ी के कारण लोक लुभावन लगे,भले ही चेहरा कैसा भी रहा हो,व्यक्तित्व एकदम नीरस हो, देह यष्टि साधारण हो लेकिन विदेशी हो तो लार बहने लगती है। बाबा ने सिद्ध कर दिया था कि गोरेपन की सभी क्रीम बेकार का दावा करती है। उनके ही कारण फेयर एंड लवली जैसी क्रीम का सत्यानाश हो गया।अब सच बता रही है तो बिक नही रहा है।। हर व्यक्ति की ये जिम्मेदारी होती है कि जैसे जैसे वह शीर्ष की ओर बढ़ता है उसे अपने व्यवहार, आचरण, शब्द सभी मे सावधानी रखना चाहिए। बाबा भी एलोपैथी को लेकर जिस तरह की बाते कही वो उनके व्यक्तित्व के हिसाब से गरिमामय नही था। इस देश मे बीमार लोग किसी भी तरह जल्दी होना चाहते है,कैसे ये बात मायने नही रखती, इस कारण एलोपैथिक दवाई की महत्ता आर्युवेद की दवाइयों से ज्यादा है। एलोपैथी के डॉ की संख्या आज आर्युवेद के डॉ से कई गुना ज्यादा है। अल्पमत में तो सरकारे नही चलती, आर्युवेद कहां से चलेगा। दरअसल विदेशी संस्कृति की ये खूबी है कि वे खुद को सर्वश्रेष्ठ बनाने और बताने में कोई कसर नही छोड़ती। एलोपैथी का महत्व है लेकिन आयुर्वेद को नकारा नही जा सकता है। बस बाबा रामदेव को वाणी पर संयम रखना चाहिए। उनके पीछे करोड़ो भारतीय लोग योग से खुद को स्वस्थ रख पाए रहे है ये बाबा रामदेव की उपलब्धि है जिससे वे ही लोग इनकार करे जो विदेशी संस्कृति के गुलाम है।


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