40 साल पहले का एक दूजे के लिए
लेखक - संजयदुबे
भारत मे प्रेम एक ऐसा विषय है जिसे हर नौजवान अपने जीवन के प्रारंभिक दौर में लेता जरूर है। पास ,फैल से परे। पूरक का भी पात्र बनता है लेकिन प्रेम मे पडता है,इश्क़ करता है । महिलाएं प्रेम में कम पड़ती है क्योकि उनकी अपनी बंदिशें होती है वे शायद मन मे प्रेम करती है और उनका प्रेम मन मे ही दफन हो जाता है ।भले ही आज के दौर में जब से co educatoin शुरू हुआ है तब से मिथक टूटे है।महिलाओं के आर्थिक स्वालंबन ने उन्हें अपने शर्तो पर जीने की आज़ादी के साथ साथ पुरुषों के समकक्ष खड़े होने का अहसास दिलाया है लेकिन पुरुषसत्तात्मक समाज मे फिलहाल मंजिल दूर है लेकिन हमें आशावादी होना चाहिए कि महिलाएं भी एक दिन इस स्थिति में वे आये कि अपने जीवन साथी का चयन सार्थक रूप से कर सके।
आज एक फिल्म अपनी 40 वी वर्षगांठ मना रही है। वैसे तो कई फिल्में इस साल अपना 40 वा साल पूरा कर रही होंगी लेकिन 1981 में एक फिल्म में देश भर के युवक युवतियों सहित अभिभावकों को भी झकझोर कर रख दिया था। ये फिल्म थी -एक दूजे के लिए।
प्रेम के लिए भाषाई अथवा जातीयता मायने नही रखती इस विषय को आधार बना कर पी बालाचंदर ने एक दूजे के लिए बनाई थी। कमल हासन जो दक्षिण के राजेश खन्ना माने जाते थे वे दक्षिण से निकल कर राष्ट्रीय नक्षत्र पर उदयीमान हुए। वे अभिनय के पराकाष्ठा है इसमे कोई दो मत नही है, प्रतिभा उनमें इतनी है कि भावपूर्ण अभिनय में वे जीते है। मैं स्वयं उनका मुरीद हूं और मानता हूं कि कमल हासन जैसा कलाकार देश की बड़ी महंगी संपत्ति है। वे एक दक्षिण भाषी नायक के रूप में आये ,उनके साथ आई थी रति अग्निहोत्री, रति को भी दक्षिण ने अभिनेत्री के रूप में स्वीकार कर चुका था लेकिन वे हिंदी भाषी क्षेत्र से थी सो वे भी इस फिल्म की केंद्र बिंदु पर थी। कमल और रति ने बखूब अपने किरदार में ऐसी जान फूंकी कि सारा देश दोनों को देखता रह गया। इस फिल्म का सबसे महत्वपूर्ण बात कथानक मे अभिनय था तो इस फिल्म के हर गाने में सुकून था, दर्द था,आत्माभिव्यक्ति थी। ए प्यार तेरी पहली उमर को सलाम, तेरे मेरे बीच मे कैसा है बंधन अंजाना, लता मंगेशकर और बाला सुब्रमण्यम के आवाज़ के जादू का चर्मोत्कर्ष था।फिल्मो के नाम से जुड़े गाने मेरे जीवन साथी प्यार किये जा अभिनव प्रयोग था।
आरम्भ से लेकर अंत तक दर्शक इश्क़ के घाट के किनारे किनारे चलते हुए शर्त की कसौटी पर रुकता थमता एक दुखद अंत पर कुर्सी छोड़ता तो कसक रह जाती कि प्रेम का इतना दुखद अंत क्यो? आज चालीस साल बाद ये प्रश्न जेहन मे है और रति भी और कमल भी और एक संवाद भी कि हिंदी बहुत मीठी है।
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