बलराज से सुनील दत्त की यात्रा
लेखक - संजय दुबे
सुनील दत्त, रील के नहीं बल्कि सही मायने में रियल लाइफ में भी एक प्रेमिका,पत्नी , बच्चो के लिए भी एक आदर्श रहे। उनके जैसा नायक हर पत्नी और बच्चे जरूर चाहते होंगे क्योकि उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चे की जिंदगी को बचाने के लिए जितने ईमानदार प्रयास किये वैसा बहुत कम देखने को मिलता है। वे सुचिता के राजनीतिज्ञ भी रहे और निष्ठा के साथ ईमानदारी की भी मिसाल कायम की ।वे चाहते तो दीगर राजनीतिज्ञों की तरह अथाह और अकूत संपत्ति अर्जित कर सकते थे लेकिन वे एक मिसाल रहे। अब की स्वार्थपरक राजनीति में सुनील दत्त ध्रुव तारे की तरह है जो दिशा दिखाने के लिए है लेकिन देखने वाले अंधे है तो सुनील का क्या दोष!
एक बस डिपो के क्लर्क से लेकर रेडियो में उदघोषक की छोटी सी यात्रा के बाद बलराज फिल्मो के प्लेटफॉर्म पर आए। उनके ऊंचे कद ओर बेहतरीन आवाज़ ने फिल्मो में मौका क्या दिया वे सफलता के साथ कदम ताल करते गए। 1957 में देश की सबसे स्थापित फिल्म "मदर इंडिया" आयी।इस फिल्म ने नरगिस को औऱ भी स्थापित किया लेकिन एक विद्रोही युवक बिरजू की भूमिका में सुनील दत्त ने अमिट छाप छोड़ी इसका परिणाम ये हुआ कि सुनील दत्त को लगभग 20 फिल्मो में डाकू बनना पड़ गया।उस समय देश मे अन्याय होने पर बागी बनकर डाकू बनना ही मजबूरी थी सो डाकुओं को समाज मे न्यायसंगत बनाने या उन्हें खलनायक बनाने की ही परंपरा थी। सुनीलदत्त सफेद धोती औऱ काले शर्ट में काले सफेद घोड़े पर बंदूक रख खूब जंचे। डाकू खत्म हुए बाद में लेकिन सुनील दत्त ने विविधता पूर्ण भूमिकाएं निभाना समानंतर जारी रखा। मेरा साया, हमराज,वक़्त, खानदान, मिलन,चिराग उनकी शानदार फिल्मो में शुमार है। अपनी दूसरी पारी में सुनील दत्त प्राण जाए पर वचन न जाये, जख्मी,नागिन में में खूब जंचे,। मैं सुनील दत्त की भूमिका को अन्य फिल्मो के साथ साथ पड़ोसन फिल्म के माध्यम से याद रखता हूं। दो बड़े कॉमेडियन किशोरकुमार औऱ महमूद के बीच सुनील दत्त ने शुद्ध हास्य को यादगार बना दिया था
सुनील दत्त ने अजंता आर्ट्स प्रोडक्शन हाउस भी बनाया ।इसके बेनर तले फिल्म तो बनाई ही बनाई देश के जवानों के हौसले अफजाई के लिए उनके केम्प में भी सलाना जाते रहे। एक फिल्म "दर्द का रिश्ता" बड़ी ही मार्मिक फिल्म थी, एक कम उम्र की बच्ची का कैंसर जैसे रोग से जूझना रील में दिखाया गया था सुनील दत्त के रियल लाइफ में भी नरगिस को गम्भीर बीमारी का सामना करना पड़ा। नरगिस ,सुनील दत्त को उनको आग से बचाने के कारण मिली थी उसी नरगिस को बचाने के लिए सुनील दत्त पूरे अस्पताल की परिक्रमा करते थे।ऐसा प्रेम बहुत कम देखने को मिलता है। नरगिस छूटी तो समस्या संजय दत्त बन गए। नशे से बचाने के लिए सुनील ने जो मेहनत की उसके चलते वे एक आदर्श पति से पिता भी बने। सुनील दत्त पहले हिंदी फिल्मों के नायक थे जिन्होंने प्रत्यक्ष चुनाव में जीत के साथ सांसद बने, मंत्री बने अन्यथा राज्यसभा में जगह मिल ही जाती थी।
रील औऱ रियल लाइफ के सही नायक सुनील दत्त,बलराज में रूप में आज ही के दिन इस दुनियां में आये थे। वे अगर नज़रों के आगे रहे हम यू ही मस्त नगमे सुनाते रहे। नीले गगन के तले
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