किरण बेदी याने एक आंधी

लेखक - संजय दुबे

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देश की आधी आबादी में प्रेरणास्पद, प्रेरणादायक औऱ प्रेरणास्रोत महिलाओं के नामो की फेहरिस्त बनाई जाए तो मैं किरण बेदी को प्रमुखता से स्थान देना चाहूंगा । आज़ादी से पहले और बाद में बहुतेरी महिलाओं के नाम राजनीति में आये,चिकित्सा के क्षेत्र में आये, लेखिका के रूप में भी चर्चित हुए लेकिन महिलाओं को शासकीय सेवाओ वह भी पुलिस जैसे दुःसाहसिक विभाग में सर्वश्रेष्ठ अधिकारी के रूप में चयनित होना वह भी प्रथम महिला के रूप में तो सचमुच ये मानना पड़ेगा कि किरण बेदी में जुनून का स्तर बहुत ही ऊंचा था। कपड़ा विक्रय करनेवाले परिवार की लड़कियों के लिए पढ़ाई आज से 60 साल पहले बहुत मायने रखता था बावजूद इसके किरण बेदी ने पढ़ाई को अपना लक्ष्य बनाया और महज 22 साल की उम्र में वे देश की पहली आईपीएस अफसर बनकर ये सिद्ध कर दिया कि दुनियां में याद सिर्फ पहले को किया जाता है। उसके बाद केवल अनुशरण कर्ता ही होते है। किरण बेदी, महिलाओं के लिए एक मिसाल बनी और प्रेरणास्त्रोत भी कि महिलाएं भी पुरुषसत्तात्मक समाज मे अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकती है। 

 किरण बेदी ने पुलिस सेवा में एक के बाद एक नये काम को अंजाम दिया जो सामान्य स्तर का सोच रखने वाले अधिकारी कर ही नही पाते थे।सरकारी विभाग में दो तरह के अधिकारी कर्मचारी होते है। एक वे होते है जो घोड़े के तरह तांगे में बंधने से पहले आंख में चश्मा लगा लेते है जिससे दाएं बाएं कुछ नही दिखता है। ये लोग केवल दिन गुजारते है महीने के खत्म होने में, इनको सुरक्षित नौकरशाह माना जाता। इनमें से ज्यादातर ईर्ष्यालु होते है। खुद को होशियार औऱ दुसरो को मूर्ख मानने की फितरत होती है।गलती निकालने में माहिर अधिकारी की नज़र में उसके छोड़ बाकी के प्रति वैमनस्यता कूट कूट कर भरी होती है। ऐसे वातावरण में किरण बेदी ने नई लकीर खींचना शुरू किया। गोवा में पोस्टिंग के दौरान उद्घाटन के लिए प्रतीक्षा करते पुल को देश की प्रधानमंत्री के आने से पहले ही खुलवा कर उन्होंने पंगा लेने की शुरुआत की थी, दिल्ली में वकील को हथकड़ी लगा दिया, उनके दुःसाहस को देख परंपरागत रूप से पुरुषों को मिर्ची लगनी थी सो लगी। किरण ने माफी नही मांगा तो कद और बढ़ गया।राजनीति की दुकान में दबंग लोग चलते नही है सो किरण बेदी के लिए भी कांटे बिछाए गए। वे तिहाड़ जेल की महानिदेशक बनी तो जेल को आश्रम में बदल दिया। उन्हें यातना देने के नाम पर भेजा गया था लेकिन उन्होंने कारावास को सुधारघर में बदल दिया। किरण बेदी के अनोखे प्रयास ने उनको अंतरास्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिया। एक अकेला क्या नही कर सकता इसका महिला जगत में किरण बेदी सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। उनके जीवन का संघर्ष देश की महिलाओं को ये सोच तो देती है कि आपको अपना स्थान बनाने के लिए वह भी पुरुषसत्तात्मक समाज मे संघर्ष करना पड़ेगा,वजूद बनाना पड़ेगा , सफलता मिलेगी ये तय है।


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