कबीर, निर्भीक विचार के आधार स्तम्भ
लेखक - संजय दुबे
जात न पूछो साधु की,ये बात कह कर विद्धवान व्यक्तियों की पूछ परख का संदेश इस दुनियां को देनेवाले महान विचारक का आज जन्मदिन है। भक्तिकाल के दौर में कबीर ने तब के दौर में आज की सार्थक बात कहनेवाले कबीर ने जुलाहे के समान अलनी विचारों की ऐसी चादर बनाई जिसे जिसने ओढ़ा वह समझदार ही बना। कबीर ने अपनी बातों को कहने के लिए दो पंक्तियों को साझा करते रहे।ऐसी भाषा का उपयोग किया कि जो साधारण व्यक्ति को व्यवहारिक रूप से जीवन के मर्म को समझा सके, इसी कारण कबीर, तुलसीदास के समान ही सरल रहे,सहज रहे। उनके प्रचलित दोहे तो आज भी लोगो के जुबान पर है लेकिन कदाचित उनके बेहतरीन विचारपरक दोहे जिन्हें पढ़ने सुनने को कम मिलते है आज उनसे रूबरू होने का भी दिन मान लेते है
*अनंत कोट ब्राह्मण में बंदी छोड़ रहाये
सो तो एक कबीर है जो जननी जन्मा नमाये
*साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय
सार सार को गही रहे थोथी देय उडाय
*माटी एक नाग बना के पूजे लोग लुगाया
जिंदा नाग जब घर मे निकले ले लाठी धमकाया
* एक बार ही परखिये ना वा बारम्बार
बालू तो है किरकिरी जो छूटे सौ बात
*तेरा संगी कोई नहि सब स्वारथ बंधी लोई
मन परिनीति न उपजे जिन विश्वास न होई
*कबीर नांव जजीरे कूड़े खेवनहार
हल्के हल्के तिरी जाये बूड़े तिनी सर भार
* मल मल धोये शरीर को धोएं न मन का मैल
नहाए गंगा गोमती रहे बैल के बैल
उनके लिखे दोहे एक ऐसे सभ्य समाज की स्थापना थी जिसमे समझ का मूल्यांकन होना चाहिए था। वे किसी पाठशाला के विद्यार्थी नही थे लेकिन अंधविश्वास में लिपटे हिन्दू और मुश्लिमो को उन्होंने शब्द की ऐसी मार लगाई थी जिसे पढ़ने के बाद हम मान सकते है कि इज़ दुनियां में आये पहले समझदार व्यक्ति ने ऐसा सुनियोजित षड्यंत्र रचा कि व्यक्ति जाति के घेरे में फंस कर खुद ही खुद का दुश्मन हो गया
हिन्दू कहे मोहि राम प्यारा, तुर्क कहे रहमान
आपस मे दोई लड़े मुये मरम न कोई जान
मुझे कबीर नाम हमेशा से एक वैचारिक नाम लगा क्योकि ये एक ऐसा नाम है जिसको सुनते ही निर्भीक सच बोलने का साहस मन मे आ जाता है। कबीर ने ज्ञान को हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया उन्होंने ज्ञानी को जाति, धर्म,सम्प्रदाय लिंग से ऊपर रखा इसलिए वे कहते थे
जात न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान
मोल करो तलवार की पड़ी रहन दो म्यान
राजनीति के सरोकारों ने कबीर को तो याद रखा लेकिन म्यान को प्राथमिकता दे दी।
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