25 जून

लेखक - संजय दुबे

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भारत के इतिहास में 25 जून के अपना लोकतांत्रिक महत्व है। ये दिन दो मायनो में अपनी महत्ता रखता है पहला राजनीति में दूसरा खेल में। राजनीति का रस ऐसा है कि इसे हर कोई पीना चाहता है। हम पलट कर 15 अगस्त 1947 में चलते है। आजादी में कांग्रेस को इकलौता श्रेय मिला था सो देश मे विपक्ष की गुंजाइश नही के बराबर थी।1952 से 1971 तक के लोकसभा चुनाव में सत्ता कांग्रेस ही कांग्रेस थी। 24 जून 1974 को सर्वोच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के लोकसभा के लिए चुनाव को अवैध होने के इलाहाबाद के निर्णय पर मुहर लगा दी थी। हार की खीज को आपातकाल में बदलने की तारीख 25 जून 1975 तय हो गया। देश के लोकतंत्र में ये तारीख विपक्ष के सशक्तीकरण की भी तारीख बनी। आपातकाल आया चला गया लेकिन विपक्ष के सरकार बनने का बीजारोपण हो चला था। 1977 में पहली बार देश मे जनता दल ने हलधर किसान के चुनाव चिन्ह पर सत्तारोहण किया था। कालांतर देश मे सत्ता का एकाधिकार खत्म होने लगा और देश की जनता ने विकल्प की राजनीति को प्रश्रय देना आरम्भ कर दिया। इस खेल में एक ही कमी ज्यादातर देखने को मिला कि विपक्ष बहुत कम ही समय दमदार रहा।पहले भी अब भी। एक पवित्र लोकतंत्र के लिए सदैव ही विपक्ष को संख्याबल में इतना होना चाहिए कि अधिनायकवादी लोगो के त्रिया चरित्र पर प्रभावी ढंग से नियंत्रण किया जा सके। जरूरत से ज्यादा बहुमत शासकों को कम सुनने की आदत डाल देती है और वे अपने करनी को बहुमत की स्वीकारोक्ति मान लेते है।

 25 जून के दूसरा बड़ा महत्त्व क्रिकेट की दुनियां में है। इसी दिन भारत ने 1932 में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट खेलने की शुरुवात लॉर्ड्स में कर्नल सी के नायडू के नेतृत्व में किया था। इसी दिन याने 25 जून 1983 को कपिलदेव की कप्तानी में भारत ने वेस्टइंडीज को हराकर एकदिवसीय क्रिकेट में अपनी ताजपोशी की टीबी। इस तारीख के बाद भारत क्रिकेट जगत में सुरक्षात्मक खेल के परकोटे से निकल कर आक्रामक क्रिकेट की दुनियां में आया था। जीत के लिए आतुर जीत के लिए बेकरार

  25 जून को देश की तारीखों में अविश्वसनीय तारीख बनाने वाले जयप्रकाश नारायण ,कर्नल सी के नायडू और एक समय मे दुनिया के सबसे अधिक434 विकेट लेने वाले कपिलदेव का देश के 140 करोड़ लोगों का अभिनंदन तो बनता है।


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