अरुणिमा सिन्हा: एक ऊँचाई जिसके साहस को अभिनंदन है!
लेखक: संजय दुबे
मैं कोई फिल्मकार होता तो अरुणिमा के जीवन और उनके साहस की पराकाष्ठा पर जरूर फिल्म बनाता लेकिन ये मेरा सौभाग्य नही है। मेरा सौभाग्य है कि मैं एक साधारण सा लिखने वाला हूं लेकिन असाधारण लोगो के जीवंतता मुझे प्रभावित करती है। अरुणिमा का जीवन भी फिल्मो के कथानक की तरह ही है जिसमे संघर्ष है,दुख है, कठनाई है , फिर संघर्ष करने का माद्दा है इसके बाद क्लाइमेक्स है जिसमे जीत ही जीत है और सम्मान है साथ ही शिक्षा का भी नया आयाम है।
अरुणिमा भी आम औसत भारतीय परिवार की लड़की है जिसके पिता असमय गृहस्थी का बोझ सम्हाल न सके। माँ ने गाड़ी खींचने की कोशिश की बेटी ने खेल को जीवन बनाया वे वॉलीबॉल की खिलाड़ी थी। खेल के कारण ही उनके रोजगार का रास्ता सीआरपीएफ में खुला था लेकिन उनके जीवन मे जो घटा ईश्वर ऐसा किसी लड़की के साथ न घटाये। वे अरुणिमा 12 अप्रेल 2011 को सीआरपीएफ के चयन के लिए ट्रेन पकड़ी थी। उनके साथ कुछ असामाजिक तत्वों ने लूटपाट की कोशिश की ।अपने संपत्ति की रक्षा में अरुणिमा को चलती ट्रेन से धक्का दे दिया गया।वे इस दुर्घटना में अपना एक पैर घुटने के नीचे से गवा बैठी। पैर गवां देने का मतलब साहस गवां देना नही होता है।
अरुणिमा हादसे से निकली और अपने समूचे साहस को जुटा कर खड़ी हुई कृत्रिम पैरों से, उन्होंने समतल राह को सफर के लिए नही चुना बल्कि उन पर्वतों को चुना जो दुनियां भर के आसमान छूने वालो को आकर्षित करते है। अरुणिमा ने दुनिया के सबसे ऊंचेएवरेस्ट(8848 मीटर)एशिया के अलावा,कोनियस्को(7310 मीटर)आस्ट्रेलिया, एकांगुआ(6916 मीटर)अर्जेंटीना, कलीम ज़ारो(5895 मीटर) अफ्रीका अल्बर्स(5642 मीटर) योरोप, विंसों प्लेट्यू(4892 मीटर) अंटार्टिका को लांघ कर बता दिया कि शरीर की असमर्थता उन लोगो की होती है जो मन से हारे होते है।अरुणिमा, तो स्वनामधन्य है जिसने जीवन के कठनाइयों के घने बादलों को चीर कर अरुणिमा ही फैलाई है।
देश अरुणिमा पर नाज़ करता है,गर्व करता है,उनसे सीखता है।
140 करोड़ देशवासी आज अरुणिमा को जन्मदिन पर शुभकामनाएं देता है।
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