आखिर रिश्तों की बदनामी क्यो?

लेखक - संजय दुबे

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एक व्यक्ति के अपने निजी पारिवारिक संबंध होते है ।इस संबंध में वह माता पिता ,बेटी बेटा, बहन भाई, पत्नी पति, के अलावा अनेक नातो में बंधा होता है। महज एक अपराध के आरोपी बनने से उसके रिश्तों को तार तार करने का अधिकार समाज या मीडिया स्वस्फूर्त क्यो ले लेता है?

 अपराध का मुख्य संबंध पुरुष वर्ग से 100 में 90 अपराध पुरुषों के द्वारा किये जाते है।मेरे अनुमान से कुछ को छोड़कर कोई भी व्यक्ति के द्वारा किया जानेवाला अपराध नितांत व्यक्तिगत होता है जिसकी भनक उसके परिवार के किसी भी सदस्य को नही हुआ करता है।संदेह हो सकता है कि गतिविधि संदिग्ध है लेकिन प्रमाण नही होता है। अपराध के घटित होने के बाद घर के सदस्यों को जानकारी मिलती है तो उनके पास सिवाय अपनो को बचाने के अलावा कोई विकल्प शेष नही रह जाता है। ये बचाव भी किसी रिश्ते की बेबसी होती है क्योंकि अपराध के साबित होने से पहले तक सच जानने के बावजूद परिवार अपने रिश्ते को बचाने की जद्दोजहद करता है।

 कल से राज कुंद्रा चर्चित चेहरे बने हुए है। उन पर आरोप भी समाज के तथाकथित चरित्र के अवमूल्यन का लगा है। उन पर न्यायालयीन कार्यवाही चलेगी, चलना भी चाहिए लेकिन क्या इस मामले में मीडिया के द्वारा ये बताया जाना कि वे शिल्पा शेट्टी के पति है अनिवार्य है? रोज अपराध होते है, रोज आरोपी पकड़े जाते है, मीडिया कितने पुरुषों की पत्नी का गुणगान करता है,किसी आरोपी के माँ, बहन, पुत्रियों, सहित पुत्रो या अन्य रिश्तेदारों के उल्लेख करता है, ? वस्तुतः यह निषिद्ध कार्य है जिसे किसी को लेने का अधिकार नही मिलता है न मिलना चाहिए लेकिन संविधान में मिले अभिव्यक्ति के अधिकार का सर्वाधिक उल्लंघन होता है। 

राज कुंद्रा के कार्यो का भान अगर शिल्पा को होता तो शायद वे अपने पति को कम से कम इतने बुरे कार्यो के लिए इजाजत नही देती।शिल्पा के पास धन की भी कमी नही है कि उनके पति को धन कमाने के लिए ऐसे रास्ते अख्तियार करने की आवश्यकता होती औऱ वे इसमे सहमत होती। वस्तुतः पुरुष अपने दम्भ में इतना मगरूर होता है कि वह केवल अपने लिए व्यक्तिगत निर्णय लेते वक्त केवल अपना भला सोचता है परिवार की थोड़ी सी भी चिंता कर ले तो शायद बहुत से अपराध हो ही नही। वाल्मीकि के अपराध में परिवार के हिस्सेदारी की कथा सभी को याद होगी।

 इस देश के विधि विधान के निर्माताओं सहित, न्यायालय औऱ मीडिया को इस बात पर गहन विचार करना चाहिए कि व्यक्ति के व्यक्तिगत अपराध के लिए उसके परिवार का कितना अपयश किया जाना उचित है खासकर जन्म देने वाले पिता का। न्यायालय में होने वाले निर्णय में आरोपी से अपराधी बनने की सम्पूर्ण प्रक्रिया में एक व्यक्ति जिसे पिता का दर्जा मिला हुआ है वह बारंबार अपमानित होता है।

 आज शिल्पा के व्यंग चित्र बनाये जा रहे है, उन पर तंज कसे जा रहे है,उपहास किये जा रहे है। एक परेशान परिवार की व्यथा को अनदेखा कर विनोद करना कितना उचित है ।मंथन करिएगा


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