निराश नहीं होना मनु

लेखक - संजय दुबे

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ओलंपिक खेल शुरू होने से पहले भारत ने जिन बेटियो ने से उम्मीद किया था उनमे एक शूटर भी थी जिसे हम सब मनु भाखर के नाम से जानते है। मनु प्रतिभाशाली है और प्रतिभासंपन्न भी। अपने किशोरावस्था से ही उन्होंने बड़ी सफलता देखी है वे विश्व स्तरीय शूटिंग स्पर्धा में स्वर्णपदक की कतार लगा चुकी है। टोक्यो ओलम्पिक में वे सफल नही हुई। उनके पिस्टल ने साथ नही दिया। तकनीकी कारणों से वे 10 मीटर पिस्टल में फाइनल में जगह नही बना सकी। वे पराजित हो गयी यही से उनका आत्मविश्वास डगमगा गया ।वे हर स्पर्धा में पिछ्ड़ते गयी। ओलंपिक खेल की मूल भावना है खेल भावना सबसे महत्वपूर्ण भावना है। पदक तो किसी क

तीन के हिस्से में आएगा। यहां ये भी सीख मिलती है कि जीतो तो गर्व नही हारो तो शर्म नही।। आप अभी उम्र के उस दौर में है जहां आपने सफलता भी देखा है और असफलता को भी देख ली है। निश्चित रूप से आपको टोक्यो कुछ सिखाया ही है। समाचार पत्रों में भारतीय राइफल्स संघ ने कुछ मुद्दे उठाए है जिसके चलते निजी कोच के न होने पर परिणाम प्रभावित होने की बात कही गई है। अगर ऐसा है तो सचमुच दुखद है। आप अपने से जीतना सीखिए। आने वाला वक़्त आपका है। आपको शुभकामनाएं,अगला ओलंपिक आपका है।


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