आईटी एक्ट धारा 66A निरस्त : सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी किया नोटिस

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सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी कानून यानी आईटी एक्ट की धारा 66A को गैर-संवैधानिक घोषित किए जाने के बावजूद इसके तहत मुकदमे दर्ज किए जाने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। साथ ही, इस पर रोक लगाने के लिए राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और सभी उच्च न्यायालयों को नोटिस जारी किया है।

क्या है धारा 66A :

इसमे कंप्यूटर या किसी अन्य संचार उपकरण जैसे- मोबाइल फोन या टैबलेट के माध्यम से संदेश भेजने पर सज़ा को निर्धारित किया है जिसमें दोषी को अधिकतम तीन वर्ष की जेल हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा :

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कंप्रिहेंसिव ऑर्डर पास करेगा ताकि आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत मुकदमे दर्ज करने का चलन हमेशा के लिए खत्म हो जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘ऐसे नहीं चल सकता। हम कोर्ट और पुलिस के लिए समग्र आदेश पारित करेंगे।’ इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने इस मामले में दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान देशभर के हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार को भी नोटिस जारी किया गया है।

 

सुप्रीम कोर्ट के नोटिस पर केंद्र सरकार ने जवाब दिया था कि कानून-व्यवस्था का मामला राज्य का विषय है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश से जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66ए को 2015 में ही गैर-संवैधानिक ठहरा दिया था इसके बाद भी देशभर में हजारों केस इसी धारा के तहत दर्ज किए गए हैं।

 

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई को सुनवाई में यह जानकर हैरानी जताई थी कि छह साल पहले निरस्त किए गए कानूनी प्रावधान के तहत मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। फिर केंद्र सरकार ने 14 जुलाई को राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वो पुलिस को आईटी ऐक्ट की धारा 66ए के तहत मामला दर्ज नहीं किया करे। यह धारा ऑनलाइन टिप्पणी करने से जुड़ी है। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन ‘अपमानजनक’ टिप्पणी करने को अपराध की श्रेणी में डालने वाली विवादित धारा 66ए को खत्म कर दिया था।


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