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शाबाश बेटियों!
लेखक: संजय दुबे
रानी रामपाल कप्तान,वंदना कटारिया, नवनीत कौर, सुनीता लकारा, दीपग्रेस एक्का, तेजस्वनी राजशेखर, लारेमसाईजी, मोनिका मलिक,रीना खोखर, रजनी इतमपरु,गुरजीत कौर, नमिता टोप्पो, लिलिमा मिंज, नवजोत कौर, नेहा गोयल, सुशीला चानू, निशा वारसी, उदित इहाँन,सलीमा टेटे, शर्मिला देवी निक्की प्रधान और अंत मे सबसे बड़ा नाम सविता पुनिया(गोलकीपर) ये नाम उन बेटियो के है जिनसे मिलकर भारतीय महिला हॉकी टीम बनी है ये वही टीम है जिनके पूर्व विजेता ऑस्ट्रेलिया के जीत पर देश ने जश्न मनाया था और पदक की उम्मीद टूटने पर आँसू भी बहाया। जीत हार भी सुख दुख के समान एक सिक्के के दो पहलू ही है। कभी इधर तो कभी उधर।
हॉकी , में हम भले ही हारे या जीते लेकिन इसके राष्ट्रीय खेल होने पर शक सुबह हो सकता है पर इंकार नही है क्योंकि जब से देश ने खेल को अंतरास्ट्रीय स्तर पर जाना है तब से दिल धड़कता है हॉकी के नाम पर। हमारे पास ओलंपिक के सभी प्रकार के स्वर्ण,रजत,कांस्य पदक है।1932 से जब हम स्वर्णपदक जीतने की आदत डाल रहे थे तब क्रिकेट में हम हार की बुनियाद पर टिके थे। हम चट औऱ घांस के बादशाह थे,प्राकृतिकता हमे सुहाती थी लेकिन जब एस्ट्रोटर्फ आया हॉकी में पावर गेम आया तो हमे क्या हॉकी का सबसे मजबूत पड़ोसी देश भी कदमताल में पिछड़े,। खेल में राजनीति घुसी तो सत्यानाश स्वाभाविक था।हम हॉकी में पिछड़े क्रिकेट में आगे बढ़े।निरंतर हार खीज़ के साथ साथ निराशा भी हाथ आती है। स्वाभाविक रूप से चढ़ते सूरज को सलाम करने वालो की बहुतायत में कुछ खोते तो है लेकिन रानी रामपाल की टीम के सभी खिलाड़ी ये तय करते है कि हमे कुछ भूलना नही है। इस टीम ने ये दिखाया कि वे धारणा तोड़ने में विश्वास रखती है। जीत को तलाशती है।
एक समय जब पुरुष टीम को ओलम्पिक प्रवेश के लिए लाले पड़ते थे तब महिलाओ के बड़े खेलो के लिए सोंच ही नही थी। हम चक दे इंडिया में विश्व विजेता बनने की नाटकीयता देखते थे। इस बार रानी रामपाल की टीम ने क्वार्टर फाइनल में ही फाइनल खेल लिया था। हमे हमारे शानदार खेल का सर्टिफिकेट मिल गया था।। सेमीफाइनल हमारे लिए पदक का द्वार था उस पार नही जा सके लरकीं देश की बेटियो ने जो जज्बा दिखाया,ललक दिखाई,अपने को झोकने का इरादा दिखाया,पिछड़ने के बाद भी जीत के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ दिया उस भावना की जितनी भी तारीफ की जाए,जितनी देर तालियां बजायी जाए,जिनते अश्रु आंखों से बहाये कम होगा।
रानी रामपाल, सख्त मिजाज़ की कप्तान है उन्होंने कदम दर कदम आगे बढ़ने का इरादा किया और देश को विश्व की सर्वोच्च चार टीमो में ला कर खड़ा कर दिया। गोलकीपर सविता पुनिया ने प्रतिद्वंद्वियों के दांत खट्टे कर दिए। नवजोत, वंदना,नवनीत, सुशीला चानू,सलीमा ने हमे जीत की इबादत सिखाया । टीम ने बताया कि वे हक़दार है उस जश्न की जो एक पदक मिलने पर होता है।
देश आप सभी को दिल से शुभकामनाएं देता है,आपको बधाई देता है कि आप लोगो ने न केवल देश का बल्कि हर घर की बेटियो का सम्मान बढ़ाया है,। 140 करोड़ लोगों के 280 करोड़ हाथ आपके लिए ताली बजाती है(देर तक) आप लोगो के प्रदर्शन से अभिभूत होती है। आपके लिए पलक पावड़े बिछाती है।
जब देश ने कदम रखे तो गर्व से कहियेगा हम सेमीफाइनलिस्ट रहे है।किसी से कम नहीं। मैडल न जीतना एक अवसर की चूक है लेकिन अरबो दिल जीतना मायने रखता है।
मेरे तरफ से आप सब को ढेर सारी शुभकामनाएं। खूब जश्न मनाना, आगे आसमाँ ओर भी है।
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