मेरे अटलबिहारी
लेखक - संजय दुबे
हर व्यक्ति के बचपन से लेकर जवानी औऱ आगे के जीवन मे कुछ लोग बड़े ही आदरणीय होते है,विशिष्ट होते है।ऐसे लोगो का संघर्ष, त्याग देखकर यकीन नही होता कि ईश्वर ऐसे लोगो को भी सृजित करता है। राजनीति मेरा क्षेत्र नहीं है। मैं किसी भी दलगत राजनीति का हिस्सेदार नहीं हूं लेकिन कोई भी सजग व्यक्ति राजनीति से सरोकार रखने वालों के आदर्श से परे नही हो सकता है। इस लेख को पढ़ कर ये आंकलन न हो कि अटल जी का प्रशंसक होने का अर्थ कुछ और भी है।अटल जी विरोध और समर्थन दोनो के समवेत स्वर थे। उन्हें जो अच्छा लगा उसे अच्छा कहा बुरा लगा सो बुरा कहा। वे मतभेद को स्वीकारने औऱ मनभेद से दूर रहने वाले व्यक्ति थे। इंडिया से भारत और भारत से हिंदुस्तान का सपना उनका अपना था जिसके लिए वे संघर्ष की पराकाष्ठा तक गए। सफल हुए। देश मे अनेक सुभीता औऱ सुविधा के प्रधानमंत्री बने लेकिन अटल जी जुदा थे। उनकी लोकप्रियता का मुकाबला न तो नेहरू न इंदिरा गांधी न ही राजीव गांधी और न ही नरेंद्र मोदी कर पाएंगे क्योकि वे अल्पमत के बहुमत थे। उनकी सृजन शीलता उन्हें राजनैतिक व्यक्तित्व से कही ज्यादा एक संवेदनशील व्यक्ति बनाती थी। वाकपटुता ऐसी कि लगता उनको बस सुनते रहो।
1975 के आपातकाल के बाद अटल जी को मैंने 1976 में छिंदवाड़ा में सुना था। 16 साल की किशोरावस्था में एक व्यक्ति आपको बिना जाने प्रभावित कर दे ऐसे तो केवल शिक्षक ही निरंतर सामने मौजूद रह कर सकते है। उम्र के बढ़ते दौर में अटल जी कवि और व्यक्ति के रूप में मन मे बसने लगे। उनके प्रति आदरभाव बढ़ते गया। शायद वे नई परम्परा के वाहक जो होने वाले थे।उनको देखकर लगता कि मोहल्ले के किसी चौक पर खड़ा व्यक्ति ही है जो आत्मीय है। मैंने उन्हें 13 दिन, 13 महीने औऱ 4साल कुछ माह के प्रधानमंत्री के रूप में देखा, वे हमेशा देश के वटवृक्ष दिखते थे। शहर से गावँ की राजनीति का ट्रांसफॉर्मेशन उनके युग की देन थी। सड़को का मायाजाल उनकी ऐसी सफल सोच थी जिसके चलते शहर गावँ से जुड़े।विकास का ये पथ उनका दिया हुआ है। एक बारगी मुझे खड़गपुर से कोलकाता कार से जाना पड़ा। किराए की कार का चालक अब्दुल शरीफ ने कार चालू करने से पहले कार में लगे अपने 786 को चूमने के बाद अटल जी की फ़ोटो को हाथ से छूकर उतनी ही शिद्दत से चूमा जितना 786 को। मेरे लिए ये क्षण विस्मय का था।पूछने पर बताया कि" खड़कपुर से कोलकाता की सड़क जो बेहद खराब थी। दिन में एक बार जाने के बाद आना मुश्किल होता था लेकिन अटल जी ने सड़क की तस्वीर बदल कर रख दी है। अब दो बार आना जाना हो जाता है। अल्लाह ने बस नाम बदला है।" अब ऐसे व्यक्ति के कार्य की सराहना मैं न करू?
आज ही के दिन अटल जी मृत्यु को टाल नही सके थे। वैसे उनका जीवन एक दशक पहले ही मौन साध चुका था। मेडिकल साइंस के नाम पर वे जीवित थे।देह त्यागने के बाद वे विचारो से अभी भी जिंदा है जिंदादिल है जिंदाबाद है।
ये कृतज्ञ राष्ट्र आपको आज भी उतना ही प्यार,आदर, सम्मान देता है जितना आप जीवित थे। आपको चरण छूकर आपकी आत्मा को अपने करीब पाता हूँ।
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