शाबाश बेटियों!

लेखक: संजय दुबे

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दोयम दर्जे की मानसिकता पर न्यायपालिका का प्रहार
 एक समय सुना करते थे कि समाज मातृसत्तात्मक हुआ करता था। पुरुष  शारीरिक श्रम करता था और महिला  नीतिगत निर्णय किया करती थी। सम्भवः महिला जो कि घर को एक रखने की संगठनात्मक शक्ति रखती है वह कदाचित कारणों से एक दायरे में घिरते गयी और  श्रम के मामले में कंधे से कंधा मिलाकर न चलने की मनोदशा ने उसे बराबर का नही रहने दिया। पुरुष सत्तात्मक समाज बनते बनते महिलाएं वहां तक पिछड़ी जहाँ से उसे सम्मान,चरित्र, लिंग भेद के आड़ में घर और पर्दे के भीतर करने की बेहतरीन साज़िश सफल भी हो गयी।
 इसी परिवेश में रहते रहते उन्ही महिलाओ में से कुछ ने साहस दिखाया,विपरीत परिस्थितियों में वे संघर्ष के राह पर चली,देश दुनियां में उन क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जहां ये माना जाता था कि महिला वर्जित है।  वर्जनाओं को तोड़ना ही इस दुनियां में स्वयं के सामर्थ्य को स्थापित करना है और दूसरों को प्रेरित करने का बेमिसाल माध्यम है। कल  उच्चतम न्यायालय ने   बेटियो के लगाए गए समानता के अधिकार के हनन का मामले राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थान  के लिए  होने वाली परीक्षा में लड़कियों को शामिल न करने के मामले में बड़ा अहम निर्णय दिया। संघ लोक सेवा आयोग को राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थान(NDA) परीक्षा  में लड़कियों को भी शामिल करने का आदेश दिया है। केंद्र शासन जो  महिलाओ  को पुरुष के बराबर अधिकार देने के नाम पर  तथाकथित गाल बजाता है उसके दोयम दर्जे का व्यवहार भी उच्चतम न्यायालय के साथ साथ देश के सामने में भी सार्वजनिक हुआ जब उनकी तरफ से  तमाम पैरवी इस बात  किया कि सुरक्षा  व्यवस्था में वे कमीशन आधार पर चयन कर रहे है,साथ ही लिंग के कारण होने वाले परेशानियों का भी जिक्र किया, केंद्र शासन इजरायल के कमांडो  की सार्वजनिक खुलासा करते थकता नही है लेकिन ये भूल जाता है कि इजरायल की महिला कमांडो  कैसी सक्षमता रखते है।  इस आधार पर लड़कियों को अब तक NDA प्रवेश परीक्षा  में शामिल न करने की पैरवी पर की।
 सबसे अच्छी बात ये रही कि उच्चतम न्यायालय ने साहसिक निर्णय में केंद्र को असमता का पक्षधर मानने पर भौ टेढ़ी की। भौ टेढ़ी करना महिलाओके नाराज़गी  के भाव प्रदर्शन का नायाब तरीका है।
  मायने रखने वाली बात ये भी है कि महिलाओं को संविधान में समानता के अधिकार के अनुच्छेद 14,15,16 औऱ 19 के लिए लड़ने वाले कुश कालरा है।
 बेटियो के लिए बेटे भी लड़ते है।
अब बेटियो को भी जोश,जुनून, दिखाने के लिए  प्रवेश परीक्षा का रास्ता खुल गया है। इस साल परीक्षा दीजिये और चयनित होकर बनिये सेकंड लेफ्टिनेंट।
चलो आसमान छूने।


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