जो मन को स्नेह से बांधे वह भाई
लेखक - संजय दुबे
संस्कृति हमेशा परस्पर सद्भाव औऱ स्नेह के साथ सम्मान को भी सदियों से हर धर्म को सिखाते आ रहा है।इस सीख में चाहे माता-पिता हो या अम्मी- अब्बू या मदर- फादर इनके संतानों के बीच रक्त संबंधों के चलते बहन भाई का रिश्ता पवित्र रिश्तों में सबसे अहम रिश्ता है। इस रिश्ते को बंधन से बांधने की परंपरा पता नही कब से अनवरत जारी है लेकिन सावन के पूर्णिमा के दिन देश मे रंग बिरंगी राखी अमूमन हर कलाई में सजी दिखती है। त्यौहारों के देश मे रंगों की छटा केवल होली में नही बल्कि राखी में भी देखने को मिलती है। बाजार में न जाने कितनी विविधता के साथ रक्षा सूत्र निखरी रहती है।
रक्षा, स्त्रियों की एक अनिवार्य आवश्यकता है क्योंकि वे सम्मान की प्रतीक है, सम्मान को हमेशा आदर भाव का सर्वोच्च औऱ सर्वश्रेष्ठ स्थान मिला हुआ है। इस कारण संस्कृति औऱ संस्कार ने इसे पर्व के रूप में स्थापित किया हुआ है। इस दिन केवल बहने भाई को रक्षा सूत्र बांध कर पर्व को परिष्कृत करती है और भाई ,रक्षा का धर्म निभाते का काम कर रहे है।
प्रश्न एक औऱ उठता है और उठना भी चाहिए कि क्या रक्षा सगे भाई ही बहन करे? मुझे याद है कि जब जब देश पर आक्रमणकारियों ने हमला किया है तब तब देश के अंजानो जवानो को अंजान बहनों ने राखी बांध ,तिलक लगा कर अपने देश की रक्षा का संकल्प मांगा है। गर्व की बात ये भी रही कि उन अंजान भाइयो ने जान गवा दी लेकिन देश को सुरक्षित रखने का जज्बा नही छोड़ा। आदिकाल में ब्राह्मणो ने क्षत्रियो को राखी बांध कर स्वयं के साथ शिक्षा के मंदिरों की रक्षा का वरदान लिया। राणा सांगा की पत्नी कर्णावती ने अपने राज्य की रक्षा के लिए हुमायूं को राखी भेजी थी तो हुमायूं ने भी भातृत्व धर्म को निभाया था। महाभारत काल मे जाए तो कृष्ण का सुभद्रा से रिश्ता का अलौकिक दृश्य को आप सभी जगन्नाथपुरी में देख सकते है। रक्षा सूत्र जरूरी नही है राखी ही हो, महज एक कपड़े के टुकड़े में भी रक्षा का वरदान द्रोपदी ने कृष्ण से प्राप्त कर लिया था। कृष्ण के उंगली में लगी चोट पर द्रोपदी के द्वारा बंधे कपड़े के टुकड़े ने चीरहरण में नारी के सम्मान की रक्षा का अनवरत आवरण बना था।
रिश्ता,रक्त का भी होता है और बिना रक्त संबंधों का भी होता है। इस रिश्ते की पवित्रता के प्रति समाज की सोंच संकीर्ण भी होती है और मानसिकता भी संकुचित होती है। दकियानूसी विचार के चलते भाई बहनों के रिश्ते पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते है। पुरुष स्त्री की मित्रता को प्रेमी प्रेमिका के दायरे में बांधते है। इस प्रकार के दायरे से समाज के पुरुष महिलाओं को बचने की नसीहत देना भी जरूरी है। किसी महिला को आप परेशान देखे तो मदद जरूर करे ये आज के त्यौहार का आदर्श है। जरूरी नही है कि रक्षा के लिए बंधन के रूप में सूत्र की जरूरत है। जो मन से स्नेह को बांधे , वह भी भाई है।
आप सभी को रक्षा का भान रहे,बंधन में आप अपने आप बंध जाएंगे
शुभकामनाएं
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