धान के कटोरे का एक दाना
लेखक - संजय दुबे
छत्तीसगढ़ को देश दुनियां में अंग्रेजियत के जानकार लोग rice bowl of the india कहते है और हम जैसे हिंदी भाषी लोग धान का कटोरा कहते आ रहे है। कोई भी राज्य मौसम और मृदा के कारण किसी खास फसल का उत्पादनकर्ता बनता है छत्तीसगढ़ भी इन्ही मौसमी औऱ मृदा के खासियत के कारण धान का कटोरा बना है। वर्षाकाल में जिधर भी नज़र घुमाइए धान के पौधों की हरियाली का सुखद नज़ारा देखने को मिलता है।
छत्तीसगढ़ में राजनीति का पसार भी धान से ही जुड़ा हुआ है
राज्य निर्माण के बाद धान ने ही राज्य में राजनैतिक दलों को आने - जाने का अवसर दिया है। छत्तीसगढ़ में धान का फसल लगाने वाले ज्यादातर किसान सीमांत कृषक है यानी 5 एकड़ से कम जमीन के मालिक। इन्ही किसानो सहित कुछ सम्पन्न और सुविधायुक्त किसानों को साल में दो बार धान उत्पादन करने का भी सौभाग्य मिलता है लेकिन मानसूनी जुआं खेलने वालों की बहुतायत में राजनीति का रंग भी निखरता है।
छत्तीसगढ़ में किसानों की पैरवी ने ही सत्ता में परिवर्तन का दौर देखा है। इसी क्रम में कल जन्मदिन मनाने वाले भूपेश बघेल का भी राज्याभिषेक हुआ है। वे भारत सरकार के द्वारा खरीफ वर्ष में धान के लिए दिए जाने वाले समर्थन मूल्य के साथ साथ ढाई हजार रुपये प्रति क्विंटल राशि देने का संकल्प लेकर चुनावी समर में उतरे थे,जीते भी वह भी तीन चौथाई बहुमत के साथ। उनके किसान हित की बातों ने न केवल ग्रामीण क्षेत्र से बल्कि शहरी क्षेत्र से भी उनको समर्थन देता दिखा क्योकि छत्तीसगढ़ के शहरों की अर्थव्यवस्था भी गाँव से ही रेंगती,चलती ,दौड़ती है। राज्य का किसान यदि भारत सरकार के द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से अधिक राशि भले ही राजनेतिक चातुर्य के कारण प्राप्त करता है तो भी किसान की आर्थिक सक्षमता उसके जीवन स्तर के सुधार का सकारात्मक नजरिये से देखा जाना चाहिए। एक तरफ केंद्र की सरकार सीमांत कृषको को अर्थ लाभ दे रही है दूसरी तरफ राज्य की सरकार राजीव न्याय योजना के तहत अर्थ सहयोग दे रही है तो ये किसान हित की बात है जिसकी सराहना भूपेश बघेल जी के जन्मदिन पर होना चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि सीमांत किसान चाह कर भी जिस भूमि सीमा के भीतर जन्म लेता है उसका दीर्घ रूप नही बना पाता है बल्कि समय के अंतराल में परिवार का बढ़ता आकार जमीन की चौहद्दी को औऱ भी लघु कर देता है। सीमा का अंत नही होता है और किसान संपन्नता को देखने के बजाय अपनी आवश्यकताओं में ही सीमित करते करते खप जाता है। आजकल उन्हें खाद,बीज, कृषि उपकरण असान तरीको से मिलने लगे है लेकिन खेती किसानी करने वाले मजदूरों का अकाल भी एक चिंता है ,जिसका राजनैतिक हल निकले तो अच्छा है।
कहते है जन्मदिन के अलावा अगले दिन की शुभकामनाएं ज्यादा असरकारक होती है तो छत्तीसगढ़ के दाऊ जी को कोटिशः शुभकामनाएं वे राज्य के किसानों के भी दाऊ से ऊपर जाकर बलदाऊ बने।
शुभकामनाएं अनंत।
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