भविनाबेन पटेल: वे व्हील(wheel) नहीं विल(will) चेयर पर खेलती है

लेखक: संजय दुबे

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 आज सुबह आये अखबार में एक समाचार, सुखद समाचार था। ये समाचार था कि टोक्यो पैराओलम्पिक खेलो में भारत की भविना बेन पटेल ने टेबल टेनिस एकल खेल में पूर्व विजेता सर्बिया की बोरिस्लावा को हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश कर लिया था अभी अभी उन्होंने चीन की खिलाड़ी को हराकर फाइनल में प्रवेश कर लिया है। उनके औऱ गोल्डमेडल के बीच अब सिर्फ एक खिलाड़ी है।  देश टोक्यो ओलंपिक खेलों में मोनिका बत्रा को देश की तरफ से टेबलटेनिस खेलो में पहली बार प्रवेश की उपलब्धि को देखा था। भले ही मोनिका का सफर क्वार्टर फाइनल में ही समाप्त हो गया लेकिन मोनिका बत्रा ने  उस मिथक को तोड़ा की  ओलंपिक  के टेबलटेनिस खेल में भारत के खिलाड़ी प्रवेश ही नही कर सकते है या एकात राउंड भी नही जीत सकते है। 
          दुनियां में अनेक व्यक्ति जन्म या दुर्घटना के कारण सम्पूर्ण नही हो पाते है। समग्र अंग न होने के कारण उनमे  सम्पूर्ण शक्ति की कमी रह जाती हैं। ऐसे लोगो को पहले समाज मे  सहानुभूति भी नही मिलती थी बल्कि उपहास की दृष्टि से अवहेलना की जाती थी। समय के साथ साथ नजरिया भी बदला और शारीरिक रूप असक्षम लोगो मे से अनेक लोगो ने अपनी कमी में भी खूबी खोजी। वे उन कामो को करने के लिए  सक्षम हुए जो साधारण लोग आसानी से कर लेते है। पढ़ाई के क्षेत्र में तो वे मिसाल कायम कर रहे है साथ ही हर क्षेत्र में वे अपनी संभावना को बढ़ाते जा रहे है। भविनाबेन पटेल भी ऐसी ही एक हस्ताक्षर है जिन्होंने 34 साल की उम्र में पैरा ओलंपिक खेलों में देश को टेबलटेनिस खेल में जीत का जज्बा दिखाकर गौरवान्वित किया है।
टेबलटेनिस खेल में टेबल के हर कोने  से लेकर पास, दूर तक इधर उधर  जाती बाल को वापस करना पड़ता है। व्हील चेयर पर ये काम साधारण नही है बावजूद इसके भविनाबेन ने पूर्व चेम्पियन को हराया है जिससे यह उम्मीद तो है कि वे देश को गोल्डमेडल दिलाने में कोई कसर नही छोड़ेंगी। देश के 140 करोड़ लोगों की पहले तो बधाई फिर शुभकामनाएं उनके साथ है। वे न केवल शारीरिक रूप से कमजोर लोगो के लिए प्रेरणा है बल्कि हम जैसे लोगो के लिए भी आदरणीय है । उनसे हमे भी विपरीत परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने का हौसला लेना चाहिए।
#संजयदुबे


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