"ध्यानचंद भारतरत्न" क्यो नहीं...?
लेखक - संजय दुबे
क्या राजीव गांधी खेल रत्न के नाम परिवर्तन कर ध्यानचंद खेल रत्न नाम करना ध्यानचंद को भारत रत्न न देने की साज़िश है? ये बात जेहन में बहुत दिनों से घूम रही है क्योकि पहले तो यदि किसी व्यक्ति के नाम पर कोई पुरस्कार योजना चल रही है तो पहले तो उस नाम को चलने देने में कोई आपत्ति नही होना चाहिए। हर देश मे राजनैतिक दलों ने ये आज़ादी ली हुई है कि उनके सत्ता काल मे वे अपने सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व को याद रखने के लिए योजनाये बनाएंगे, सड़क, ओवरब्रिज , नहर, पुल, बांध, भव्य इमारत, अस्पताल,हवाई अड्डा, बनाएंगे तो उनके नाम का करण करेंगे। देश मे दलो की राजनीति चलती रहती है परिवर्तन भी होता है जिसके कारण विचार भी नए आते है। फिलहाल देश मे गुलामी को याद दिलाने वाले ऐसे बहुत से स्थानों के नाम परिवर्तन को हम देख रहे है। अच्छा है गुलाम मानसिकता से निजात मिलना चाहिए और देश को उन व्यक्तियों को याद रखने और सम्मान देने के लिए इतिहास को खंगालना चाहिए जिन्हें भले ही देश को गुलाम रखनेवालों ने आतंकवादी माना या उनके नामो को विस्मृत कराने की साज़िश रची। उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी माना जाना चाहिए और वे लोग जो गुलामी के दौर मे कला सहित अन्य क्षेत्र में विभूति रहे उनको सम्मान देने की स्वस्थ परंपरा बननी चाहिए।
माफ करे ,विषयांतर हो गया।
आज 29 अगस्त है।स्वाभाविक रूप से एक ऐसे शख्सियत का जन्मदिन है जिसको इस देश के लोग उतना ही जानते है जितना गांधी,नेहरू,पटेल,राजेंद्रप्रसाद,अम्बेडकर, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु,सुभाषचंद्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी,अटलबिहारी बाजपेई ए पी जे कलाम,सहित नरेंद्र मोदी लता मंगेशकर, सत्यजीत रे,एम एस सुब्बलक्ष्मी, रविशंकर अमिताभ बच्चन,सचिन तेंदुलकर, अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा जाने जाते है। ये व्यक्ति सारी दुनियां में 1926 से लेकर 1948 तक हॉकी की स्टिक लिए हुए देश का परचम फहराते रहा। जीत दर जीत को पुख्ता करते गया। एक नही दो नही बल्कि हॉकी में गोल्डमेडल कई हैट्रिक लगाने के लिए जादूगर बन गए। विदेश के पारखी लोग उनकी स्टिक को देखते परीक्षण कराते कि कही चुम्बक तो नही लगा है। ये व्यक्ति कोई और नही मेजर ध्यानचंद ही थे जिनके खेल को देखने आम लोग तो आते ही थे हिटलर जैसा महत्वाकांक्षी व्यक्ति भी मैदान में होता था। आस्ट्रिया में इसी व्यक्ति के चार हाथ वाली मूर्ति लगी है जिसके चारों हाथो में हॉकी है। ये खिलाड़ी उसी भारतीय हॉकी टीम का 1932 ओलंपिक खेलो में सदस्य था जिसकी टीम ने अमेरिका को 24-1 गोल के अंतर से हराया था।1936 के बर्लिन ओलंपिक में प्रदर्शन मैच में जर्मनी ने भारत को 4-1 के अंतर से हराकर सतर्क रहने का संकेत दे दिया था फाइनल में यही टीम सामने थी।हिटलर स्वयं मौजूद था लेकिन टीम के कप्तान ध्यानचन्द ने बीमार हालत में 2 गोल कर 3-0 में अंतर से हराकर हॉकी को देश का राष्ट्रीय खेल बनाने की बुनियाद रख दी थी।
अब ऐसे व्यक्ति को भारत रत्न क्यो नही दिया जाता है ये हर देशवासियों के जेहन में उठने वाला सवाल है। 2017 में खेल मंत्रालय ने अधिकृत रूप से मांग भी की थी। एन ओलंपिक खेलों में हॉकी टीम की जीत के साथ ही खेल रत्न पुरस्कार को राजीव गांधी की जगह ध्यानचंद के नाम पर करना उनको भारतरत्न से वंचित रखने की चाल से ज्यादा कुछ नही है। किसी भी व्यक्ति के समर्थन करने का उद्देश्य किसी का विरोध नही होना चाहिए।अगर ये कृतज्ञ देश ध्यानचंद को भारत रत्न न देने के निर्णय पर अडिग ही है तो देश को दुख है। भारत रत्न कतई रूप से राजनैतिक लाभ लेने का मंच नही है।
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