अच्छे गुरु

लेखक: संजय दुबे

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इंसान जब से जन्म लेता है तब से लेकर तब तक सीखने की प्रक्रिया में होता है जब तक सीखने की ललक उसमें होती है। जिस दिन ललक खत्म हो जाती है उस दिन से उसके मस्तिष्क में जमी जमाई अनुभव के आधार पर कार्य करते रहता है या यूँ कहिए संतुष्ट हो जाता है ।ये दिन मस्तिष्क को मिलने वाली ऊर्जा के एकत्रिकरण का अंतिम दिन होता है।मस्तिष्क के मृत्यु की आधारशिला रख दी जाती है।

कुछ इंसान ऐसे होते है जो जन्म से लेकर मृत्यु की कालावधि में भी सीखने के दौर में होते है।भगवान राम औऱ अर्जुन दो शानदार उदाहरण हमारे सामने है। रावण के अंतिम काल से पहले उन्होंने लक्ष्मण को राजनीति के गुर सीखने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना था।अर्जुन ने हर व्यक्ति से कुछ न कुछ सीखा ही था उनका औऱ वे लोग जो कृष्ण को जानते है मानते है उनके लिए आज भी कृष्ण सर्वश्रेष्ठ गुरु है जो आध्यात्मिक औऱ सांसारिक ज्ञान के लिए अजर अमर है। दुनियां प्रबंधन से चलती है कृष्ण ये ज्ञान देने के लिए ही है।

एक जमाने मे जब शिक्षा के लिए कोई संस्थान नही हुआ करते थे तब परिस्थिति ही सर्वश्रेष्ठ गुरु हुआ करती थी। लुढ़कते हुए पेड़ के तने से लोगो ने पहिया बनाया और यही पहिया आज विकास का पर्याय है। दो वस्तु के टकराव से निकली आग ने हमे लोहा पिघलाना सीखा दिया। अंधड़ पानी मे किसी गुफा के खोह नेहमी आसमान छूते घर बनाना सीखा दिया। परिस्थिति के बाद हमारी बनती सामाजिक परिस्थिति, हमारी शिक्षा में व्यवस्था आ गयी। महिलाओ ने घर और पुरुष ने बाहर को सम्हाला तो पूर्व के अनुभव हमारे गुरु होते गए। गुरु आये गुरुकुल आया तो हमने शिष्य परंपरा की व्यवस्थित शुरुआत की । कालांतर में ये प्राथमिक शाला से लेकर विद्यालय, महाविद्यालय औऱ संस्थान के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। शिष्य का स्वरूप भी बदला।धोती, कुर्ता पायजामा से लेकर हम समरूप परिधान में आ गए। देश विदेशी संस्कृति के वाहकों ने, जिसे मैं मानसिक गुलाम कहता हूँ उन्होंने आंग्ल भाषा को इस देश की शिक्षा पद्धति में घुसेड़ कर हमारी राष्ट्रीयता को निज भाषा के ज्ञान के वंचित कर दिया।आज चीन,जर्मनी फ्रांस जैसे देश अपनी भाषा का गर्व लिए खड़े है और हमारे देश महज अंग्रेजी बोलने वाला " पढ़ा लिखा" है। जिन्हें ये भाषा न आती हो वह इस देश मे हीन भावना से ग्रस्त होता है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी शिक्षक से राष्ट्रपति तक के पद पर सुशोभित रहे। यदि वे राष्ट्रपति न बन इस देश के प्रथम शिक्षा मंत्री होते तो ये देश इस क्षेत्र में आसमान छूता लेकिन देश का हमेशा दुर्भाग्य रहा कि अव्यहारिक लोग इस मंत्रालय को सम्हालते रहे और परिणाम सामने है कि हिंदी शाला में पढ़ने वाले बच्चे को टाई पहना कर धोबी का कुत्ता बनाकर न घर का रखा जा सक रहा है न ही घाट का।

बहरहाल, आज शिक्षक जयंती है। शिक्षकों को याद करने का दिन। जो अच्छे शिक्षक थे,है और आगे मिलेंगे उनके प्रति कृतज्ञता सदैव मन मे रही है,है,औऱ भविष्य में भी रहेगी। आज के जमाने मे स्वार्थी लोग, एक विशिष्ट प्रकार के गुरु है।अपने स्वार्थ के लिए इनका आपको उपयोग करने के बाद आपको ही कठिन परिस्थिति में डाल देने वाले लोग आपके बड़े गुरु होना चाहिए। ये लोग ऐसा आवरण ओढ़ कर आते है कि आपका सारा सामर्थ्य तेल ले लेता है।इनके स्वार्थसिध्द होने के बाद जब आप ठगे जाते है तब आप के ज्ञानचक्षु खुलते हैं।अगर इनको समय पर पहचानने के लिए आप स्वयं के गुरु बन पाए तो ऐसा गुरुत्व विरला ही होगा।

मुझे पहले तो समझ नही थी लेकिन अब मैं दोस्त में छिपे दुश्मन औऱ निःस्वार्थ व्यक्ति के स्वार्थ को समझ पाने में थोड़ा सा सर्तक हुआ हूं। आप भी इस शिक्षा के लिए स्वयं के गुरु बने। आपका मान सम्मान बना रहे, पुनः अपने गुरु स्वयं बने।


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