मुख्यमंत्री के पिता

लेखक: संजय दुबे

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मुझे तो एतराज है ,आपको भी होना चाहिए आज राजधानी से प्रकशित होने वाले लगभग सभी समाचारपत्रों ने एक शीर्षक :"सीएम के ........" लगाकर एक खबर प्रकाशित किया है। ये शीर्षक हर उस व्यक्ति को व्यथित करनेवाला होना चाहिए जो सामाजिक है। जिसके पिता है, भाई है, या अन्य चाचा,मामा, या अन्य रिश्ता है। यह शीर्षक हर राजनैतिक सरोकार रखने वाले को व्यथित करने वाला होना चाहिए साथ ही संविधान की जानकारी रखनेवाले अधिवक्ताओं सहित जागरूक व्यक्तियों को भी चिंता करने वाला होना चाहिए। सबसे पहले तो हमे ये समझना चाहिए कि सीएम या मुख्यमंत्री पद सामाजिक या राजनैतिक पद नही है बल्कि भारत के संविधान की धारा 163 (1) के तहत राज्यपाल को उसके कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता औऱ सलाह देने के लिए बने मंत्री-परिषद का प्रधान पद है जिसे सीएम या मुख्यमंत्री कहा गया है। संविध में जितने भी संवैधानिक पद है उनके बारे में उनकी सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक अवधारणा का उल्लेख नही है। इस आधार पर मुख्यमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति की सिवाय संवेधानिक पद के अलावा कोई सामाजिक अवधारणा नही की जा सकती है। इस अवधारणा से परे जाकर समाचार पत्रों में शीर्षक लगा दिया गया।

अपराध की अवधारणा में ये माना जाता है व्यक्तिगत और सामूहिक अपराध में शामिल व्यक्ति या व्यक्तियो के समूह में सहमति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अनेक बार ऐसे निर्दोष व्यक्ति भी अंजाने में निरअपराध होते हुए भी मानसिक यंत्रणा की दौर से गुजरते है। जिस समाज मे हम लोग जी रहे है या मरेंगे, उसके पास आलोचना, हास्य परिहास के साथ साथ टीका टिप्पणी, के लिए पर्याप्त समय है। जिसे न भी जानते हो उसके व्यक्तिगत जीवन मे तांक झांक करने का संवैधानिक अधिकार लिए हस्तक्षेप करना आम बात है। समाचारपत्र भी आखिर इसी समाज मे रहने वाले व्यक्तियों के विचार का ही मुद्रीकरण है ।

अब जो बात मुझे कहना है वह यह कि किसी भी व्यक्ति के द्वारा किया जाने वाला अपराध ज्यादातर व्यक्तिगत विचारो पर आधारित होता है।बहुत कम मामलों में परिवार के सदस्यों का उत्प्रेरण होता है। श्री भूपेश बघेल के पिता भी एक व्यक्ति है और अपने विचार चाहे वह समर्थन में हो या विरोध में हो, व्यक्तिगत है उनके कार्यो की सराहना हो या आलोचना उसके लिए भी व्यक्तिगत रूप से वे जिम्मेदार है। इतने सालों से उन्हें एक स्वतंत्र इकाई के रूप में ही देखा जा रहा है।उनके किसी भी कार्य मे श्री भूपेश बघेल की सहमति या असहमति नही सुनी गई है। ऐसी स्थिति में किसी व्यक्ति के किसी अन्य व्यक्ति के पारिवारिक संबंध का सार्वजनीकरण आलोचनीय है। रत्नाकर की सच्चाई आपको ज्ञात ही होगी।एक डाकू द्वारा अपने परिवार के भरण पोषण के लिए यात्रियों को लूट में सहभागिता के सरोकार के मामले में नारद द्वारा प्रश्न किये जाने पर पिता,पत्नी,संतानों से मांगे जवाब में जब ये पता चलता है कि अपराध की व्यक्तिशः जिम्मेदारी रत्नाकर की तय है तो नारद का ये बताना कि पाप का भागीदार औऱ दंड व्यक्तिगत होता है।ऐसे में रत्नाकर के वाल्मीकि बनने की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है।

कुछ समय पहले एक कलेक्टर के रिश्तेदार के भी अपराध को लेकर कलेक्टर पद का भी ऐसा ही सम्बन्ध का सार्वजनीकरण किये जाने पर मैने आपत्ति जताई थी, आज फिर आपत्ति कर रहा हूं।किसी भी व्यक्ति के संबंध या पद को अपमानित करने का अधिकार किसी को नही है,समाचार पत्रों को भी नही। खासकर जब पद संवेधानिक हो तो औऱ भी। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल मुख्यमंत्री या मंत्री पद होते है ,इसमे आसीन व्यक्ति के पारिवारिक संबंध होते है ये अवश्य ख्याल रखा जाए।


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