लोकमान्य और सर्वमान्य

लेखक: संजय दुबे

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एक ईश्वर के रूप को आकार देकर आज़ादी की लड़ाई को संगठित करनेवाले बाल से गंगा धर औऱ उस पर भी तिलक याने बाल गंगाधर तिलक के ऋण को ये देश आज़ादी के पहले से लेकर आज तक और आनेवाले सदियों तक नही चुका पायेगा। तिलक ने सभा सम्मेलनों के लिए सार्वजनिक रूप से प्रथम पूज्य ईश्वर की स्थापना की शुरुवात की औऱ आज़ादी के मतवालों ने धर्म से डराने वालो को ही भयभीत करके रख दिया। कालांतर में इसी परम्परा ने आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां पर आप सभी को मानना होगा कि आजादी की लड़ाई में बाल गंगाधर तिलक की भूमिका चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, राजगुरू, बटुकेश्वर दत्त विपिनचन्द्र पाल लाला लाजपतराय के बराबर थी जिनके प्रयासो से ये देश आजाद हुआ था। आज़ादी के बाद हर पूजा में प्रथम पूज्य के सार्वजनिक औऱ निजी स्थापना की परंपरा अनवरत जारी है।

गणेश,गणपति, लंबोदर, सिद्धि विनायक, रिद्धि सिद्धि गजानन, जैसे नामो से सुशोभित के प्रथमपूज्य होने की कथा से लेकर महाभारत लेखन की लोकोक्ति को सभी भलीभांति जानते है गणों के स्वामी है ये भी भिज्ञ है। मांगलिक कार्यो में वे प्रथम है । ईश्वर स्वरूप में वे सभी निजी मंदिरो में इष्ट देवताओ के साथ विराजे रहते है। इस प्रकार वे हर दिन पूजे जाते है, स्मृत किये जाते है।

देशभर में वे एक दिन से लेकर दस दिन तक सार्वजनिक रूप से भी स्थापित होते है।मोहल्ला संस्कृति में एकजुटता के वे गणेश सबसे बड़े प्रतीक है। आजकल के दौर में उनकी स्थापना भव्यता औऱ प्रतिष्ठा का भी मापदंड बन गया है। शिवसेना के महाराष्ट्र में प्रतिष्ठित होने के पीछे भी जगह जगह में अपनी एकता को दिखाना था जिसे बाला साहेब ठाकरे ने बड़े ही सुनियोजित ढंग से कर हिंदुत्व को सकेला था।धर्म को राजनीति से जोड़ने की कला को आप बालासाहेब ठाकरे से सीख सकते हैं।

मेरा दर्शन गणेश के प्रति कलात्मकता लिए हुए है। अब का युग तो संसार के बहुत छोटे होने का हो गया है। तब के जमाने मे जब गणेश जगह जगह विराजे जाते थे तब उन्हें देखने के लिए भी जगह जगह जाना पड़ता था।साक्षात देखने की आतुरता कइयो किलोमीटर पैदल चलवा देती थी। गणेश स्थापना के साथ सामयिक घटनाओं से जुड़े झांकी का अलग ही मजा था। वक़्त के साथ झांकी विसर्जन के समय मे जुड़ गई। पुरस्कार पाने के लिए बाल गणेश समितियां बढ़ गयी। 6 इंच से लेकर 35 फुट ऊंचे गणेश स्थापित होने लगे। उनकी सुंदरता में चार चांद लगने लगे। गणेश परंपरागत रूप से निकल कर अन्य ईश्वरीय रूप में सुशोभित होने लगे। मिट्टी से निकलकर न जाने कितने वस्तुओं से गणेश निर्मित होने लगे। ये सब व्यक्ति के मन की परिकल्पना को साकार करने की शानदार अभिव्यक्ति है। आमतौर पर इंसान भगवान से उसके व्यक्तित्व को बहुरंगी करने के मामले में पंगा लेने से डरता है । सिद्धिविनायक के मामले में अभिव्यक्ति की आज़ादी को कला का रूप स्वीकारना एक नयनाभिराम आनंद ही है। आज इस साल फिर गणेश स्थापित हो रहे है।वे आपके विघ्नहर्ता के रूप सदैव आपके साथ रहे।


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