हिंदी है हम
लेखक- संजय दुबे
बहुत साल पहले देश की भाषायी दुविधा को लेकर प्रेम विषयक फिल्म आयी थी- एक दूजे के लिए। इस फिल्म में हिंदी भाषी युवती रति अग्निहोत्री से एक तमिल भाषी युवक कमल हासन के देह से परे मन के प्रेम का दुखांत था। भाषा को लेकर दुविधा ओर सामाजिक सरोकार की ये उत्कृष्ट फिल्म थी। इस फिल्म में तमिल युवक द्वारा हिंदी सीखने के दौरान शिक्षिका द्वारा बताया जाना कि---" हिंदी बहुत मीठी होती है" हिंदी के प्रति भले ही ये फिल्मी संवाद था लेकिन वास्तविकता थी कि वास्तव में हिंदी बहुत ही मीठी भाषा है। सम्पुष्ट, अपने आप मे संपूर्णता लिए हुए।व्यकरण की अपरिमित विस्तार के साथ शब्दो के जोड़ से बने हर वस्तु के नाम के साथ उनके अनुलोम, विलोम, अर्थ के साथ हिन्दी अत्यंत ही सम्रद्ध भाषा है।
भले ही हमारा संविधान राष्ट्र भाषा के रूप में रूप में हिंदी को नही अपना सका और 1956 में भाषा के आधार पर राज्यो की सीमा को सीमित कर हिंदी की व्यापकता को सीमित करने में सफलता प्राप्त कर ली लेकिन देश की बढ़ती आबादी का हिंदी भाषी राज्यो में अपनी पकड़ को बनाये रखने के कारण हिंदी देश मे भले ही लिखने की भाषा के रूप में आगे न हो लेकिन समझ की भाषा के रूप में देश के हर कोने में स्थापित हो चुकी है।
हिंदी को गैर हिंदी भाषी राज्यो में समझ की भाषा के रूप में प्रचारित करने में बहु अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के द्वारा दक्षिण,पश्चिम, पूर्वी क्षेत्रो में बनाये गए रोजगार के अवसरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे पहले ये काम हिंदी फिल्मों और दूरदर्शन में कब्जा करनेवाले हिंदी कार्यक्रमो ने भी बहुत किया है। इनक़े बाद हिंदी के लेखकों कवियों का नाम आता है जो हिंदी की अलख को जगाने के लिए भगीरथ प्रयास कर रहे है। भारतीय प्रशासनिक सेवा से जुड़े लोग जो दीगर भाषा के होने के बावजूद हिंदी भाषी क्षेत्र में काम कर रहे है वे सभी बधाई के पात्र है जो हिंदी में लेखन कर रहे है।
आज हिंदी दिवस है।
बहुत से ऐसे लोग जिनके संतान औ1ऱ उनकी संतान अंग्रेजी भाषा के विद्यालयों महाविधालयो में अपने संतानों को पढ़ाकर हिंदी के प्रति चिंता करते है उनके घरों में भी जाकर देखे तो देश के एक बहुत बड़े आबादी के लोग दिखावे के लिए आंग्ल भाषा बोलकर खुद को प्रकांड दिखाने की कोशिश करते है वे भले बी खुद को प्रतिष्ठित भले ही समझते हो या वे लोग आंग्ल भाषा न जानते हो वे भले ही हीनग्रंथि बना कर रखे लेकिन उन्हें ये समझना चाहिए कि जिन विदेशों के वे अंधानुकरण करते है उनकी बोलने समझने की अपनी भाषा है।140 करोड़ लोगों में से बामुश्किल दो करोड़ लोग ही विदेश जाने का अस्थाई सुख पाते है उनको अंतरास्ट्रीय भाषा की जरूरत हो ठीक है लेकिन रुतबे की भाषा आंग्ल नही है हिंदी है।। जो वास्तव में बहुत मीठी है।
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