लता दीदी, जिनकी आवाज़ ही पहचान है

लेखक: संजय दुबे

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मेरे जीवन के प्रारंभिक दौर देखी हुई एक फिल्म थी- आखरी खत, इस फिल्म के एक आवाज़ ने एक गीत गाया था जिसका मुखड़ा था - बहारों मेरा जीवन भी सवारों, इस गीत मेके अंतरे में एक पंक्ति थी- तुम्ही से दिल ने सीखा है धड़कना। 7 -8 की उम्र में स्वर, तो कवि-लेखक,गीतकार, गायक गायिका, संगीतकार की समझ नही थी फिर भी इस गीत की गायिका की आवाज़ बहुत बहुत बहुत अच्छी लगी थी। कालांतर में समझ के साथ जब रेडियो युग का दौर था तब जैसे ही गाना खत्म होता , रेडियो के पीछे झांक कर देखते गाने वाले कहां चले गए। इतने छोटे से रेडियो में ये गाने वाले घुसते कैसे है? - ये जिज्ञासा बचपन मे रही लेकिन माध्यमिक शिक्षा के दौरान भौतिक शास्त्र से पाला पड़ा और ध्वनि के अध्याय में माजरा समझ मे आया तो साथ मे सारी दुनियां को अपनी सुमधुर आवाज़ की स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर दीदी के आवाज़ से भी आत्मसात का दौर शुरू हुआ। अपने बच्चे होने से लेकर अपने बच्चों के बड़े होते और खुद को उम्र के उत्तरार्द्ध में आते तक शायद ही कोई दिन या रात गुजरी हो जब लता दीदी के किसी गाने को न सुना हो। सालो पहले एक अवसर हाथ से निकल गया था जब लता दीदी को साक्षात देखने और सुनने का मौका मिल सकता था।छत्तीसगढ़ के छत्तीस गढ़ो में खैरागढ में इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय में लता दीदी औऱ आशा दीदी दोनो एक कार्यक्रम में आये थे। सभी को लगा था कि लता दीदी जिन्होंने हज़ारो गाने गाये है उनमें से एक गाना सुना देंगी लेकिन अपने गायन में लता दीदी ने गायन परंपरा में अपने इष्ट भगवान का स्मरण कर भजन सुनाया तो उन्हें न देखने और न सुनने के बावजूद उनके प्रति आदर आराधना में बदल गया। वे मेरी आराध्य हो गयी। उनकी स्वर साधना की महज नौ साल से शुरू हुई थी और अनवरत ससत्तर वर्ष तक जारी रही। उम्र के अंतिम पड़ाव में जब दंत विन्यास अपना सामर्थ्य खोने लगते है, तब स्वर औऱ व्यंजन की सशक्तता भी क्षीण होने लगती है। आवाज़ में स्पष्टता का अभाव होने लगता है ये दौर भी हर व्यक्ति के जीवन मे आता है लता दीदी के जीवन मे भी आया। वे सक्रिय गायन से "तुमको ,तुम्ही से चुरा लूँ" के बाद लता दीदी फिल्मों के गीत से मौन साध लिया लेकिन स्वर साधना वैसी ही है जैसे आज से त्रियासी साल पहले था।

वे देश के समकालीन गायकों गायिकाओं के साथ गाने गाई ही नए पौध के साथ भी उनके गायन यात्रा चलते रही। शोभना समर्थ, नूतन औऱ काजोल - तीन पीढ़ी रहे है नायिकाओं के दौर के लता दीदी ने तीनों के लिए गायन स्वर बनी ।इससे बड़ा समर्पण किसी विधा के लिए क्या हो सकता है।

स्वर कोकिला उनका दूसरा नाम है अब भी उनकी पहचान उनकी आवाज़ है। जिसके कारण न उनका नाम गुमेगा न ही उनका चेहरा हम लोगो के लिए बदलेगा उनकी पहचान ही उनकी आवाज़ है, हमे याद रहेगा दीदी,आप स्वस्थ रहे। जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं।


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